Sunday 30 September 2018

Article: पितृपक्ष ! बस 15 मिनट.......

पितृपक्ष ! बस 15 मिनट.......


हिन्दू लोगों में ईश्वर ही प्रथम पूज्य हैं। इतने देवी-देवता हैं, कि हम हर रोज़ अलग अलग देवी-देवता की आराधना भी करते हैं। हमारे आराध्य के कुछ विशेष दिन भी होते हैं। जिसमें हम अपने आराध्य की विशेष पूजा भी करते हैं। जैसे शिवरात्रि, जन्माष्टमी, गणेश चतुर्थी आदि।
इन सब के साथ शायद हिन्दू समाज में ही, कुछ और विशेष दिन भी होते हैं। जिसमे पितरों की पूजा आराधना की जाती है। ये विशेष दिन हर साल 15 दिन के लिए निर्धारित किए गए हैं, इन्हें पितृपक्ष कहते हैं। जिसमें परिवार के सभी पूर्वजों को याद किया जाता है। इन दिनों में पूर्वजों को ईश्वर तुल्य मान प्रदान किया जाता है।
कभी आपने सोचा, जो चले गए हैं, उनके लिए कुछ विशेष दिन क्यों निर्धारित किए गए हैं? ऐसा इसलिए किया गया है, जिससे हम अपने अस्तित्व की पहचान कराने वालों को धन्यवाद प्रदान कर सकें । उन पूर्वजों के अथक परिश्रम के परिणाम स्वरूप ही हमें एक पहचान मिलती है। जब हम इस दुनिया में आते हैं, तब हमें अपने कुल, गोत्र, परिवार से ही पहचाना जाता है। और उस कुल, गोत्र, परिवार के मान-सम्मान के पीछे हमारे पूर्वजों का परिश्रम ही होता है।
और कहते हैं, जो इन दिनों में अपने पूर्वजों को खुश कर लेता है, उससे ईश्वर भी खुश हो जाते हैं। और आपको पता है, पुरखों को प्रसन्न करना, ईश्वर को प्रसन्न करने से ज्यादा आसान होता है। क्योंकि ईश्वर के लिए तो सभी मनुष्य एक समान हैं। पर आपके पुरखे तो केवल आपके ही हैं, तो वो आप से ही सबसे पहले प्रसन्न भी होंगे। वैसे भी माता-पिता को अपने बच्चों पबहुत जल्दी प्यार-दुलार आता है। और कोई गलती हो जाने से भी वो सबसे जल्दी माफ भी कर देते हैं। इसलिए साल भर में से मात्र 15 दिन भी पितरों की सेवा के लिए पर्याप्त हो जाते हैं।
जब हम ईश्वर की आराधना के दिनों में से 15 दिन अपने पूर्वजों के लिए निकाल सकते हैं, तो क्या हम अपनी ज़िंदगी के हर दिन में से केवल 15 मिनट अपने माँ-पापा को रोज़ नहीं दे सकते हैं?
सच मानिए अगर आप केवल 15 मिनट भी हर रोज़ दे देंगे। तो वो आपको उतनी देर में ही पूरे दिन के लिए इतना आशीर्वाद दे देंगे, कि आपका कोई अनिष्ट नहीं होगा।        
आप कहेंगे, ऐसे तो संसार में कुछ बुरा होगा ही नहीं। पर आप ये बताएं, जो भी आपके साथ बुरा हुआ, क्या उससे बुरा नहीं हो सकता था? जी हाँ, हो सकता था। पर जो उसमे कमी आई, वो उनके आशीर्वाद का ही फल है।
और जो अच्छा हुआ है, वो भी इतना अच्छा माँ-पापा के आशीष से ही होता है।
तो अब से पितृपक्ष के 15 दिनों में भले आप पंडित को भोजन खिलाये ना खिलाएँ, दान पुण्य करें या ना करें। पर इन 15 दिन हम अपने पितरों को याद तो कर ही सकते हैं। उनके अथक परिश्रम को धन्यवाद तो दे ही सकते हैं। या उस दिन उनकी याद में गरीबों या अनाथों को थोड़ा-बहुत कुछ भी उनकी पसंद का दे सकते हैं।
उसी तरह बस केवल 15 मिनट हर रोज़ अपने माँ-पापा को भी दे कर उनके अगाध प्रेम की छोटी छोटी किश्त चुका सकते हैं। जिसे देने में उन्होंने अपना सर्वस्व लुटा दिया। और जब लुटा रहे थे, तो कभी ये सोचा भी नहीं, कि उसके बदले में उन्हें क्या मिलेगा।
जो अपने माँ-पापा को प्रसन्न रखता है, उससे ईश्वर तो अपने आप ही प्रसन्न हो जाते हैं। और उन्हें खुश करने के लिए आपको कोई महान तप नहीं करना है। सिर्फ कुछ उनकी सुननी होती है, और कुछ उनकी करनी होती है। आपका जीवन सुख से भर जाएगा, ये कर के तो देखिये, बस 15 मिनट......

Friday 28 September 2018

Tips :For boiled potatoes to go longer

For boiled potatoes to go longer


If you want that your boiled potatoes go longer, then:
  • Don’t peel it and keep in the fridge.
  • The container should be either without lid or airy.

Thursday 27 September 2018

Recipe : Lauki ke kofte

Bottle Guard is normally perceived as a veggie for health conscious/patients. But my today’s post is a mouth watering recipe prepared with bottle guard. So don’t just perceive, but try it.

Lauki ke kofte


Ingredients:


  • Bottle Gourd (Lauki)     500 gm.
  • Gram Flour (Besan)       50gm.
  • Salt                                 as par  taste
  • Onion                               3 medium
  • Garlic                              5to 6 pods
  • Tomato                           2 medium
  • Turmeric Powder          ¼ tsp
  • Coriander Powder         ½ tsp
  • Chilli Powder                 as per taste
  • Oil                                     for frying & gravy
  • Fresh  Coriander            for garnishing
Method:


  1. Make masala paste of onion, garlic & tomato and keep it ready.
  2. Peel and grate the bottle gourds. After doing so, squeeze them up, so that excess water is drained out. Keep this water aside for the gravy.
  3. Now, add gram flour and salt to it & mix them well.
  4. Side by side, take a wok and heat up the oil in it.
  5. Make balls of about 1” out of the mixture, by pressing it tightly in your fist (मुट्ठी). It will further release some excess water. Also, collect the water released in this process.
  6. (If you are unable to form balls as in the step above, add a little gram flour, mix it well and then try.)
  7. Now, gently slide the balls one by one along the surface of the wok into it.
  8. Keep the flame sim.
  9. When the balls start browning from one side, flip them up. This will result in the balls getting golden-brown evenly.
  10. After the balls are done, strain them out. Then, reduce the oil from the wok.
  11. Now, add the masala paste of onion, garlic & tomato, salt, turmeric powder, coriander powder & chilli powder to the wok. Sauté them well.
  12. Then, add the collected water in steps above into the wok. Add further water, for gravy.
  13. Boil the gravy for consistency.
  14. Before serving, place the balls into the gravy and put on the flame for one boil.
  15. Garnish it with fresh coriander and serve it.

Wednesday 26 September 2018

Poem : साँवरी सूरत रूप सलोना


साँवरी सूरत रूप सलोना


साँवरी सूरत रूप सलोना
ओ हसीना तेरा क्या कहना
नैनों में कैसा जादू भरकर
तूने तो मेरा होश है छीना
जुल्फें सँवारी हैं या
करी जादूगरी है
लगे अप्सरा सी
उतरी कोई है
होंठों पे लाली
माथे पे बिंदिया
चुरा रही है साजन की निंदिया
प्यार ही प्यार
तेरी आँखों से छलके
साजन भला कैसे
झपकेंगे पलकें

Tuesday 25 September 2018

Story Of Life : डर (भाग-२)

अब तक आपने पढ़ा निहारिका अपने ऑफिस में काम करती है, अचानक एक दिन हुए सिर दर्द से परेशान वो आँखों के डॉक्टर, फिर ब्रेन के डॉक्टर के पास तक चली जाती है, जहाँ उसे ब्रेन कैंसर बता दिया जाता है। तभी उसका दोस्त यश, उसे ठीक करने कि बात करता है..... अब आगे  

डर (भाग-२) 


अगले दिन माँ के बहुत कहने पर वो यश से मिलने चली गयी। दोनों Dr. ने पूरा test दो-दो बार किया। पर वो दोनों बार एक ही निर्णय पर रहे कि निहारिका को कोई भी problem नहीं है। पर निहारिका ने जिस Dr. को पहले दिखाया था, वो भी अच्छे Dr, थे। यश ने रचित से पूछा, कि आखिर माजरा क्या है? उन लोगों ने निहारिका से पूछा, जब तुमने test कराया था, तो बहुत ही भीड़ थी क्या? हाँ निहारिका बोली। रचित बोला, cancer निहारिका को नहीं, इस report वाले को है।
अरे फिर मुझे इतना सिर दर्द क्यूँ होता है, और धुंधला क्यूँ दिखता है। ok , चल वो भी check कर लेता हूँ।
यश ने मज़ाक मज़ाक में बोला मैं जादूगर हूँ , अभी सब ठीक कर देता हूँ। सुन कर निहारिका खिलखिला दी, अब उसका डर कम जो हो रहा था। अच्छा निहारिका ये बताओ, अभी भी सिर दर्द हो रहा है? थोड़ी देर सोच के बोली, नहीं! अच्छा अब जरा, रचित के laptop  में पढ़ कर देखो, तुम्हें धुंधला दिखाई दे रहा है। निहारिका ने पढ़ा, तो सब साफ साफ  दिखाई दे रहा था। यश बोला madam , मुझे मेरी मन मांगी मुराद देने को तैयार हो जाओ। इस जादूगर ने आपकी सारी problem दूर कर दी है। कुछ सोचती हुई सी निहारिका बोली, नहीं एक रह गयी है यश, मुझे पहले धुंधला क्यूँ दिखाई देता था।
ok चलो तुम्हारे office चल कर ये problem भी दूर कर देते हैं। office पहुँचते ही निहारिका को उसकी colleague राधिका बोली, निहारिका तुम बहुत सही समय से आई हो। राजन तुम्हारे computer  पर ही काम करने लगा था, उसे भी धुंधला दिखाई देने लगा था और उसके भी सिर में बहुत ही दर्द रहने लगा था। आज ही वो पूछ रहा था, कि तुमने कौन से Dr. को follow किया है?
यश बोला उससे कह दो, अब इस office  में किसी के भी सिर में दर्द नहीं होगा। क्योंक Dr. यश जहाँ होता है, वहाँ दर्द नहीं होता है। उसकी इस बात पे सबसे तेज़ निहारिका हँस रही थी। वो बोला problem इस computer में ही है, इसे किसी Engineer  को दिखाओ। वैसा ही किया गया, problem  computer के software  में ही थी।
लौटते हुए, यश बोला, निहारिका अब मुझे इनाम मिलना चाहिए? और वो क्या है? निहारिका मुस्कुरा के बोली।
तुम मुझ से शादी करके America  चलोगी, पिछली बार मैं आया था, तब तुम नहीं मानी थीं, पर अब मैं तुम्हारी एक नही सुनुंगा। अच्छा एक बात और बता दो, मेरी eye sight का क्या है? सब ठीक है।
कुछ Dr. अपना clinic चलाने के लिए ऐसे ही patient  बना लेते हैं। तुम्हारे glasses में power भी नहीं हैं, इसलिए उस Dr .ने तुम्हें glasses भी अपने यहाँ से ही दिये थे। और हाँ तुम्हारे retina में भी कोई problem नहीं है।

निहारिका ने यश को हाँ कर दी, वो आज बहुत खुश थी, उसे अपने बेमतलब के डर से आज़ादी जो मिल गयी थी। जो बीमारी उसे कभी थी ही नहीं, उसे उसके डर ने बना के उसे सचमुच का बीमार बना दिया था। यश भी बहुत खुश था, उसकी dream girl हमेशा के लिए उसकी जो होने जा रही थी।  

Monday 24 September 2018

Article : No Choice

No Choice



जब हम लोग बच्चे थे, तो हमारी life, No choice  हुआ करती थी। पर अगर आप सोचेंगे, तो आप पाएंगे, कि वो समय बहुत अच्छा था।
तब हमारे पास TV के बहुत सारे channel नहीं थे, हमे सिर्फ दूरदर्शन ही देखने को मिलता था। कोई choice नहीं थी, किसी के पास, कुछ और देखने की। अतः सारा परिवार मिलकर TV देखा करता था। और हमें उसके सारे program बड़े ही भाते थे। कितना इंतज़ार हुआ करता था, Friday  के चित्रहार का, Sunday की रंगोली का।
तब सिर्फ Sunday  का ही दिन ऐसा था, जब पूरे दिन program आया करता था। सुबह रंगोली, फिर बच्चों के program, शाम को film । पूरे हफ्ते में TV पर बस एक ही film देखने को मिलती थी। पर तब Sunday, Sunday  हुआ करता था।
अब तो जितने channel हो गए हैं, उतनी ही हमारे पास choice भी हो गयी है। हर segment के भी कई कई channel हो गए हैं। चाहे वो बच्चों के program  हों, या गानों का, फिल्म का हो या न्यूज़ का या फिर ढेरों सीरियल का। जो हर रोज़ दिन भर आते भी रहते हैं। साथ ही programs का कई बार repeat telecast भी होता है। आपके पास अपनी पसंद के program देखने की बहुत सारी choice है।
पर सोचिए क्या अब भी उतना ही मज़ा आता है। नहीं! क्योंकि अब सब का साथ नहीं है, और असली मज़ा सबके साथ ही आता है।
हर रोज़ दिनभर ही प्रोग्राम के आने से किसी भी प्रोग्राम का उतना मज़ा नहीं रह गया है। और इससे एक और बात हो गयी, Sunday भी पहले सा Sunday नहीं रह गया है।
ये choice वाली बात सिर्फ entertainment में ही नहीं, जीवन के अन्य पहलुओं पे भी लागू होती है। मसलन, तब हमारे पास आज के बच्चों जैसे बहुत सारे कपड़े नहीं हुआ करते थे। क्योंकि तब कपड़े भी कुछ ही अवसर, जैसे जन्मदिन, होली, दिवाली, या घर में किसी के विवाह के अवसर में ही मिलते थे। पर हम अपने कपड़े बड़े जतन से रखते थे। साथ ही उन अवसरों का भी बड़ी बेसब्री से इंतज़ार किया करते थे। तब हमारे पास choice कम थी पर मज़ा कई गुना होता था। आजकल हम लोग बच्चों को इतनी dresses दिला देते हैं, कि कुछ तो बिना पहने ही छोटी हो जाती हैं। और बच्चों में भी किसी भी अवसर में कपड़े लेने की कोई इच्छा नहीं रहती है, ना ही उन्हें कपड़ों की कोई कद्र होती है।
हमारे पास खाने की भी बहुत choices नहीं रहा करती थी। उस समय खाने में इतनी variety नहीं थी, ना ही खाना पसंद ना आने पर कुछ और होने की गुंजाइश होती थी। हमें तो जो मिलता था, सब खा लेते थे। तब माँ हम लोगों के पीछे पीछे खाना ले के नहीं दौड़ा करती थी। और आज तो जितनी variety है, बच्चों के नाटक भी उतने ही ज्यादा हैं। क्योंकि उन्हें भूख का एहसास नहीं है। उनके एक mood पर, उनकी पसंद का खाना या तो बना दिया जाता है, या order कर दिया जाता है। उसके बाद भी आज बच्चे कुपोषण का शिकार हैं।
इस तरह बच्चों को बहुत सारी  choice, देकर हम उन्हें बहुत बड़े comfort zone  में लाते जा रहे हैं। जिससे adjustment level low होता जा रहा हैउसी का नतीजा है, बढ़ती हुई असंतुष्टि, एक जगह टिक कर ना रहना, रिश्तों में बढ़ती हुई दूरी, self centered होना, बढ़ते हुए तलाक और न जाने क्या-क्या
क्योंकि हम तो अपने बच्चों को बहुत सारी choice दे सकते हैं। पर life, full of choice नहीं होती है। इसमें बहुत कुछ ऐसा भी होता है जो हमारी choice के विपरीत भी होता है।
तो कहीं हम और आप बच्चों को बहुत सारी choice  दे कर उन्हें comfort zone में जकड़ तो नहीं दे रहे हैं। अगर आप सचमुच चाहते हैं, कि आपका बच्चा हमेशा खुश रहे, तो उन्हें कभी बहुत सारी choice के साथ, और कभी no choice means without choice के रह कर ड़ा होने दीजिये, अगर वो सब condition  में adjust  कर सकेंगे, तभी वो संतुष्ट रहेंगे, और खुश भी।