Sunday 24 March 2024

India's Heritage : होलिका दहन

आप ने कभी ध्यान दिया है? हम हिन्दूओं के सभी त्यौहार, ईश्वर के सानिध्य से जुड़े हुए हैं... 

सोचिए, जरा जब हर त्यौहार में उनका भी अंश है तो उनकी कृपा और आशीर्वाद तो निहित रहना ही है। फिर चाहे वो रामनवमी हो, प्रभू श्रीराम का जन्मोत्सव, नवरात्र हो, माता रानी का प्राकट्य और राक्षस का वध, दशहरा पर प्रभु श्रीराम द्वारा रावण का वध, दीपावली‌ में जिसमें प्रभू श्रीराम वनवास से लौटे, जन्माष्टमी में भगवान श्री कृष्ण का जन्मोत्सव, होली में नरसिंह भगवान का प्राकट्य... ऐसे ही बाकी सभी त्यौहार भी... 

अर्थात जहाँ हर त्यौहार प्रभू से जुड़ा हो, वहाँ उसे पूर्ण आस्था से वैसे ही क्यों ना किया जाए, जैसे सदियों से चला आ रहा है।

आखिर क्यों हर हिंदू त्यौहार पर, उसकी आस्था पर टीका-टिप्पणी और रोक?...

कारण है ज्ञान की, आस्था की कमी..

आप को पता है, हर त्यौहार में जो भी परंपरा या रीति-रिवाज़ हैं, उनका अपना एक significance होता है।

आज होलिका दहन है, तो आज भारतीय विरासत (heritage segment) में उसी के विषय में बात करते हैं।

होलिका दहन

पहले तो उन लोगों को बता दें, जो कि अनभिज्ञ हैं कि क्यों किया जाता है होलिका दहन और क्यों कहते हैं इसे होलिका दहन?

होलिका दहन कोई bonfire नहीं है कि कुछ लकड़ियां इकट्ठी की और जला दी... 

नहीं, बिल्कुल भी नहीं... 

पौराणिक कथाओं के अनुसार, सतयुग में महर्षि कश्यप व माता दिति के दो पुत्र थे; हिरण्यकश्यप व हिरण्याक्ष व एक पुत्री थी होलिका।

महर्षि के दोनों पुत्र व पुत्री बहुत बड़े राक्षस थे, या यूं कहें कि महर्षि कश्यप की तीनों ही संतान कर्म से राक्षस थीं। इन्होंने कठिन साधना द्वारा देवताओं को प्रसन्न कर अत्यंत दिव्य व दुर्लभ वरदान प्राप्त कर लिए थे, जिसके कारण यह अत्याधिक बलशाली या यूं कहें अमर प्राणी बन‌ चुके थे।

क्योंकि होलिका दहन की घटना, हिरण्यकश्यप व होलिका से जुड़ी है तो आगे की घटनाक्रम उसी ओर ले चलते हैं।

असुरराज हिरण्यकश्यप (हिरण्यकशिपु) की पत्नी का नाम कयाधु था। उनकी कुल पांच संतान थी, उनके चार पुत्र - प्रह्लाद, संह्लाद, अनुह्लाद, ह्लाद व एक पुत्री सिंहिका थी।

प्रह्लाद उनमें से सबसे बड़ा था। हिरण्यकश्यप जितना बड़ा राक्षस था, प्रहलाद उतना ही बड़ा भगवान विष्णु जी का भक्त। 

भगवान ब्रह्मा की कठिन साधना कर, दिव्य व दुर्लभ वरदान प्राप्त कर हिरण्यकश्यप अपने आपको भगवान समझता था और भगवान विष्णु को अपना सबसे बड़ा प्रतिद्वंद्वी मानता था और उनसे सबसे ज़्यादा बैर भाव रखता था। 

अब सोचेंगे कि ऐसा भी क्या दिव्य व दुर्लभ वरदान प्राप्त कर लिया था उसने? 

हिरण्यकश्यप को वरदान प्राप्त था कि ना तो उसे देव मार सकते हैं, ना दानव, ना नर, ना पशु, ना दिन में, ना रात में, ना घर के भीतर, ना घर के बाहर... अर्थात वह अमरत्व प्राप्त हो चुका था।

अब क्योंकि हिरण्यकश्यप हरि बैरी था और प्रह्लाद हरि भक्त, अतः दोनों पिता-पुत्र में तनिक भी नहीं बनती थी।

हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को समाप्त करने के लिए अनेक प्रयास किए। कभी पागल हाथी से कुचलवाया, कभी जहर दिलवाया, ऐसे ही अनेक प्रयास किए, पर हरिकृपा से सब निष्फल हो जाते, जिससे हिरण्यकश्यप और कुपित और क्षुब्ध हो जाता।

एक दिन हिरण्यकश्यप व उसकी बहन होलिका का आपस में वार्तालाप हुआ। होलिका अपने भाई को कुपित और क्षुब्ध देखकर बोली, "भैया, आपकी हर समस्या का अंत है मेरे पास। मुझे वरदान प्राप्त है, कि यदि मैं अग्नि में प्रवेश भी कर जाऊं, तब भी मेरा बालबांका नहीं होगा, चाहे साथ की सब चीज़ें राख ही क्यों ना हो जाए। अतः, मैं प्रह्लाद को लेकर अग्नि में प्रवेश कर जाऊंगी और प्रह्लाद जलकर भस्म हो जाएगा।"

हिरण्यकश्यप अति प्रसन्न हो गया।‌ 

अग्नि कुंड की तैयारी की गई, और जैसा कि निर्धारित हुआ था, होलिका व प्रह्लाद, दोनों ही अग्नि में प्रवेश कर गए।

होलिका आत्मविश्वास से परिपूर्ण थी, पर प्रह्लाद भी तनिक भी भयभीत नहीं था, क्योंकि उसे अपने भगवान श्रीहरि पर अटल विश्वास और आस्था थी।

कुछ ही पल बीते और अग्नि प्रचंड हो चुकी थी। थोड़ी ही देर बाद चीखें और दर्द भरी आह निकल रही थी। जब अग्नि पूर्णतः जलकर शांत हुई तो देखा गया कि हरि भक्त प्रह्लाद यथावत था, और होलिका जलकर भस्म हो चुकी थी। प्रह्लाद की भक्ति और आस्था पुनः विजयी हुई।

तब से ही होलिका दहन का प्रचलन प्रारंभ हो गया। क्योंकि इसमें होलिका का दहन हुआ था, अतः इसका नाम होलिका दहन ही रख दिया गया। 

माना जाता है कि होलिका दहन के समय पूजन करने से हम में व्याप्त बुराई का अंत हो जाता है और हमारा अंतःकरण हरि कृपा से पूर्ण रूप से शुद्ध और परिष्कृत हो जाता है।


(क) होलिका दहन का वैज्ञानिक कारण :

होलिका दहन से केवल आत्मिक शक्ति नहीं मिलती है, अपितु एक कारण यह है कि होली के पहले शरद ऋतु रहती है और उसके बाद ग्रीष्म ऋतु का आगमन हो जाता है। अर्थात होली का त्यौहार संगम है दो ऋतुओं का।

जब हम होलिका दहन के लिए रात्रि में परिक्रमा और पूजन कर रहे होते हैं, उस समय हमारा शरीर अगले दिन सुबह होली के त्यौहार में रंगों व जल की बौछार को सहन करने के लिए condition हो रहा होता है। इसके कारण ही रंगों और पानी से सराबोर होने के बावजूद हम बीमार नहीं पड़ते हैं।

साथ ही होलिका दहन में हमारे मन में व्याप्त दुनिया भर की बुराई के साथ ही मौसम के संगम से उत्पन्न, विभिन्न, विषैले जीवाणु, किटाणुओं और मच्छरों का भी अंत हो जाता है।


(ख) विधि व पूजन :

जहां होलिका दहन का आयोजन किया जाता है, वहां सबसे पहले बालू डाली जाती है। उसके ऊपर सूखी हुई लकड़ियों का संयोजन किया जाता है, उसे गाय के गोबर के उपले की माला, पुष्प, चन्दन, कपूर, पत्ते, तिल, सूखा नारियल और लौंग आदि से सुसज्जित किया जाता है। पूरे घेरे को हल्दी-कुमकुम आदि से बनाया जाता है। 

अनुरोध है कि जब भी होलिका दहन की तैयारी करें, उसमें कोई भी कूड़ा-करकट, गंदगी आदि ना डालें, वो पूजा अर्चना के लिए सजाई जाती है।

जब पूजन करने के लिए जाते हैं तो एक बड़ी सी थाली में गेहूं की बाली, चने-होरे की बाली, गुलाल, होली के त्यौहार के लिए जो भी पकवान बनाए गए हैं, जैसे गुझिया, मालपुआ मठरी, दही बड़े, दालमोंठ, पापड़, mixture आदि को रखते हैं। एक बड़े से लोटे में जल लेकर जाते हैं। होलिका की परिक्रमा करते हुए सभी कुछ अर्पित करते हैं, जल चढ़ाते हैं। फिर एक-दूसरे के गुलाल लगाते हैं। पकवान के कुछ अंश को घर ले आते हैं जो प्रसाद स्वरूप होता है।

वहां से आकर सभी पकवान जो कि प्रसाद स्वरूप हैं उन्हें घर में रखे पकवान में मिलाकर सभी को प्रसाद तुल्य बना लेते हैं।

होलिका दहन में अर्पित करने के पश्चात् ही होली के त्यौहार के लिए बनाए गए पकवानों को खाया जाता है। और उसके बाद ही होली में एक-दूसरे को रंग लगाया जाता है।

अब आप को समझ आ गया होगा, कि होली के त्यौहार में जितना महत्व रंगों से सराबोर होने का है, उससे अधिक महत्वपूर्ण है होलिका दहन...

अतः होलिका दहन को महज़ bonfire ना समझें और ना ही उसे पर्यावरण प्रदूषण का प्रतीक मानकर उसका विरोध करें, बल्कि होलिका दहन को परंपरा और भारतीय संस्कृति का प्रतीक समझें और आने वाली पीढ़ी को भी इसका महत्व बताएं और संस्कारों का परिवहन करें।

आइए, आज का होलिका दहन का शुभ मुहूर्त भी जान लेते हैं।


(ग) होलिका दहन का शुभ मुहूर्त :

होली का पर्व 24 मार्च, अर्थात् आज से प्रारंभ है। इसी दिन सुबह 9:56 बजे से भद्रा शुरू हो रही है जो रात्रि 23:13 तक रहेगी। 

ऐसी मान्यता है कि भद्रा काल में कोई शुभ काम नहीं किया जाता है, इसलिए रविवार को होलिका दहन भी 11:14 बजे से पहले नहीं किया जाना चाहिए। होलिका दहन का शुभ मुहूर्त रात 12:20 बजे तक रहेगा। अतः 24 मार्च, रात 11:14 से लेकर 12:20 के बीच होलिका का दहन करना ही शास्त्र के अनुसार उचित है।

हिरण्यकश्यप और प्रह्लाद की आगे की कहानी भी बहुत रोचक है, जिसे आपको विरासत के किसी और अंक में बताएँगे।

आप सभी को होलिका दहन की हार्दिक शुभकामनाएं 💐