आज कल श्राद्ध के दिन चल रहे हैं, जिसे पितृपक्ष या श्राद्ध पक्ष भी कहते हैं।
पर क्यों कहते हैं पितृपक्ष या श्राद्ध पक्ष? मातृपक्ष क्यों नहीं कहते हैं?
क्यों कहते हैं पितृपक्ष या श्राद्ध पक्ष?
यह हमारी generation में अधिकांश लोग जानते होंगे पर हमसे पहले वाली generation में तो सभी लोग जानते होंगे।
पर हमारे बच्चे और आने वाली पीढ़ियां जानेंगी, इसकी बहुत remote chance है।
कारण... आधुनिकता की अंधी दौड़ में हम अपनी भारतीय संस्कृति को किस कदर पीछे छोड़ते जा रहे हैं, इसका हमें एहसास भी नहीं है।
जबकि भारतीय संस्कृति, हिन्दू समाज, केवल यही है जो कि सत्य है सनातन है और सर्वश्रेष्ठ है।
सिर्फ और सिर्फ इसमें हर एक को उचित सम्मान दिया गया है, फिर चाहे वो देवता हों, देवियां हों या हमारे पूर्वज... सबको ही विशेष, पवित्र, पूजनीय और शक्तिशाली समझा गया है।
यही कारण है कि हिन्दू धर्म में पूर्वजों की भी पूजा अर्चना के लिए, साल में 16 दिन निर्धारित किए गए हैं।
पूर्वजों के लिए दिन निर्धारित किए गए हैं, वो तो ठीक है, पर उसे पितृपक्ष क्यों कहते हैं?
आप को बता दें कि जिस हिंदी को हम निम्न समझकर, तिरस्कृत किए रहते हैं, उससे सटीक, स्पष्ट और सार्थक भाषा, केवल उसकी जननी संस्कृत भाषा ही है। संस्कृत भाषा तो सम्पूर्ण विश्व में सबसे सर्वश्रेष्ठ है, अन्यथा हिन्दी से बेहतर कोई भाषा नहीं है।
हम क्यों कह रहे हैं, हिंदी को विशेष, उसके बहुत से कारण हैं, जिनमें से एक है कि, इसमें सब कुछ बहुत स्पष्ट है।
अब आते हैं पितृपक्ष क्यों?
तो आपको बताएं कि साल में, महीने 12 होते हैं...
जानते हैं, जानते हैं, आप सबको पता है कि 12 महीने होते हैं। पर हम जनवरी फरवरी मार्च अप्रैल... की बात नहीं कर रहे हैं, वो तो सभी को कंठस्थ हैं।
हम बात कर रहे हैं, पौष, माघ, फागुन, चैत्र, बैशाख... आदि की...
आय हाय! यह क्या है?
यह हैं, महीनों के हिन्दू कैलेंडर के अनुसार नाम..
शायद हम में से किसी को भी नहीं याद होंगे, महीनों के हिन्दू कैलेंडर के अनुसार नाम...,
हां-हां, आप सबके साथ हम भी इसी में शामिल हैं। हम भी कोई इतर थोड़ी ना हैं, आप सब से...
वैसे कुछ महीनों के नाम शायद पता भी हों, जैसे ज्येष्ठ, सावन, भादो.. क्योंकि इनका नाम हम तीज-त्योहारों और व्रतों में सुन लेते हैं।
हां तो हिन्दू कैलेंडर के अनुसार भी, एक साल 12 महीनों में विभाजित होता है। साथ ही हर महीने को 15-15 दिनों में पुनः बंटा हुआ है। जिन्हें शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष कहा जाता है।
प्रत्येक 15 दिन को एक साथ बोलें तो, उसे पक्ष कहते हैं, इसलिए पक्ष...
और शुक्ल और कृष्ण क्यों?
क्या किसी ईश्वर से सम्बन्धित है?
नहीं, बिल्कुल नहीं...
बल्कि चंद्रमा के पृथ्वी के चारों ओर चक्कर लगाने के कारण...
मतलब?
मतलब चंद्रमा, हर 15 तक बढ़ता और घटता है। चंद्रमा, जैसे-जैसे बढ़ता जाता है, रोशनी बढ़ती जाती है। जिससे चंद्रमा उज्जवल या श्वेत होता जाता है। और शुक्ल का अर्थ है - श्वेत, सफेद, शुभ
अतः अमावस्या से पूर्णिमा तक के 15 दिन, शुक्ल पक्ष कहलाते हैं।
पूर्णिमा के पश्चात् चंद्रमा, धीरे-धीरे घटता जाता है, मतलब रोशनी घटती जाती है, और अमावस्या के दिन चंद्रमा, विलुप्त हो जाता है, क्योंकि वो पूर्ण रूप से काला हो जाता है और पूर्ण काला दिखता नहीं है, इसलिए ऐसा प्रतीत होता है कि चंद्रमा विलुप्त हो गया। और कृष्ण का अर्थ है - काला
अतः पूर्णिमा से अमावस्या तक के 15 दिन, कृष्ण पक्ष कहलाते हैं।
तो बस वहीं से आया है पक्ष, क्योंकि श्राद्ध पक्ष या पितृपक्ष के यही 16 दिन होते हैं।
16?... जब पक्ष 15 दिन का होता है तो, दिन 16 कैसे हुए?
16 ऐसे, क्योंकि पहला और पंद्रहवां ( अर्थात सर्वपितृ अमावस्या) दोनों दिनों को गिना जाता है ...
पितृपक्ष, आरंभ से चतुर्दशी और अंत में सर्वपितृ अमावस्या पर पूर्ण होता है...
पक्ष समझने के बाद, अब समझते हैं पितृ क्यों?
संस्कृत में पिता को पितृ कहते हैं। संस्कृत भाषा, हिन्दी भाषा की जननी है अतः हिंदी भाषा में कुछ शब्द, शुद्ध रूप में ही ले लिए गए हैं, जैसा उन्हें संस्कृत भाषा में बोलते हैं।
हमारा देश भारत, पितृ प्रधान देश है। जहां परिवार में, वंश में, सत्ता पिता की समझी जाती है।
इसलिए लड़का, बारात लेकर आता है, विदाई लड़की की होती है। ससुराल को ही लड़की का असली घर कहा जाता है। और surname भी लड़की का ही बदलता है, हालांकि आज कल लड़कियां अपना surname नहीं बदल रही हैं और उसकी आवश्यकता भी नहीं है।
होनी वाली संतानों का surname पिता के surname से ही मिलता है, जो कि अब तक यही है।
हमारे पूर्वज, मतलब हमारे पिता(यहां पिता से तात्पर्य है कि, हमारे वो सभी वंशज, जो हमारे परिवार के थे। फिर वो चाहे दादाजी हों या दादी जी, या उनके माता-पिता, या उनके माता-पिता, अर्थात पूरी वंशावली या अगर किसी के अपने माता-पिता ने रहे हों तो वो भी)... सभी शामिल हैं और वे सब पिता रुप में समझे जाते हैं...
तो आपको पूरी तरह समझ आ गया होगा कि क्यों कहते हैं पितृपक्ष...
और श्राद्ध पक्ष, क्योंकि पक्ष तो वही, 15 दिन... और श्राद्ध इसलिए क्योंकि, इसमें हम अपने पूर्वजों का श्राद्ध और तर्पण विधि करते हैं।
अब आप पूरी तरह, clear हो गये होंगे, कि क्यों पितृपक्ष या श्राद्ध पक्ष कहते हैं...
और यह सब संभव हुआ, क्योंकि हिंदी भाषा बहुत ही सटीक और स्पष्ट है।
और अगर ऐसा है तो, हिंदी भाषा निम्न (कमतर) कैसे हुई?
हिन्दी भाषा को सम्मान दीजिए, उसे अधिक से अधिक उपयोग कीजिये और भारत को गौरवान्वित कीजिए। पर केवल हिन्दी दिवस के इन 15 दिन ही नहीं बल्कि हमेशा...
साथ ही श्राद्ध पक्ष या पितृपक्ष चल रहे हैं, इन विशेष दिनों में अपने पूर्वजों की पूजा अर्चना करें।
साथ ही उनका सम्मान भी करें, उनके बताए सदमार्ग पर चलें और नाम रोशन करें लेकिन केवल इन 15 दिन ही नहीं बल्कि हमेशा...
पर पूर्वजों के साथ साथ अपने माता-पिता, सास-ससुर का भी विशेष ध्यान रखें, मान-सम्मान और प्यार दें 🙏🏻
हम सब पर हमारे पूर्वजों का आशीर्वाद सदैव बना रहे 🙏🏻 😊