Position
हम इन्सानों के अंदर एक
बहुत बड़ी आदत होती है, परिवर्तन लाने की। परिवर्तन आना विकास का द्योतक भी है।
पर क्या हर किसी का परिवर्तन होना उचित है?
मुझे तो नहीं लगता कि,
परिवर्तन सदैव उचित ही होते हैं। कुछ कार्य, नीतियाँ
अपने मूल रूप में ही सही होते हैं। उन्हें उसी रूप में बनाने के पीछे बहुत से कारण
होते हैं। और उनका स्वरूप बदलने से उससे जुड़े आगे के कार्य व नीतियाँ भी प्रभावित
होते हैं।
अभी यहाँ में बात कर रही
हूँ, position देने की।
आजकल आप देख रहे होंगे, बहुत से
स्कूलों में, स्कूल level competitions में first, second, third….. position नहीं देते हैं। और उसका कारण ये बताते हैं, कि वो
बच्चों में अभी से competition की feeling develop
नहीं करना चाहते हैं, और जो बच्चे कमजोर हैं, उनके अंदर हीन भावना नहीं भरना चाहते हैं।
हमने आपकी सारी बात मन ली, कि आपका
कहना उचित है, कि बच्चों में हीन भावना नहीं आनी चाहिए, competition की
feeling भी एक दूसरे से दूर करती है, सब मान
लिया।
पर माफ कीजिये, मेरी
सोच आपसे, थोड़ी अलग है, या यूं कहें, मेरा मत इस बात को ही है, कि position मिलनी
चाहिए।
अब मैं आपसे बात करती हूँ, कि मेरा
ऐसा मानना क्यों है?
जिस तरह से परिवर्तन विकास
का द्योतक है, उसी तरह से competition
भी विकास के लिए जरूरी है। अगर position नहीं
मिलेगी, तो हम में आगे बढ़ने का कोई उत्साह भी नहीं होगा।
क्योंकि हम जानते होंगे, कि कितनी ही मेहनत कर लो, उससे
कोई position तो मिलेगी नहीं, तो
फायदा ही क्या, इतनी मेहनत करके।
इससे क्या होगा; जो मेहनती
हैं, या कुशाग्र हैं, वो
मेहनत करना बंद कर देंगे। जिसका परिणाम ये होगा जो अच्छे हैं, वो साधारण
हो जाएंगे।
और जो कमजोर हैं, उनका क्या
होगा, उस विषय में भी सोच लेते हैं। हर कोई चाहता है, कि उसकी कमजोरी
किसी को ना दिखे। यही वजह है, कि सभी अपनी कमी को ठीक करना चाहते हैं। उसके लिए मेहनत करते
हैं।
अब बताइये, अगर position मिलेगी ही
नहीं, तो किसी को भी कमजोरी दिखेगी भी नहीं। तो उसका नतीजा ये होगा, कि कमजोर
सदैव कमजोर ही रहेगा।
सोचिये एक ऐसी race, जिसमे कोई भी तेज़ नहीं दौड़ रहा है, क्योंकि किसी को first position नहीं मिलनी है, इसलिए कोई भी मेहनत नहीं कर रहा है। बताइये कैसी लगेगी? एकदम नीरस ना?
सोचिये एक ऐसी race, जिसमे कोई भी तेज़ नहीं दौड़ रहा है, क्योंकि किसी को first position नहीं मिलनी है, इसलिए कोई भी मेहनत नहीं कर रहा है। बताइये कैसी लगेगी? एकदम नीरस ना?
अब बात करते हैं, जब बच्चा
स्कूल से निकल कर professional course या job करता है, तब तो उसे competition
fight करना पड़ेगा ही ना?
पर 14 सालों में तो हमने उसके
अन्दर से पूरी तरह से competition
fight करने की spirit ही खत्म कर
दी है। तो अब जब वो fight नहीं कर पाता है, उसका pressure नहीं झेल
पाता है, तब दोषी कौन है?
कहीं हम ही तो नहीं? जिन्होंने
उसे कभी fight करने ही नहीं दिया। कमजोर बना दिया है।
आप बच्चों को position ना देकर उन्हें बैसाखियाँ मत दीजिये।बल्कि उनमें, उत्साह, जोश और हिम्मत
भरें कि जो मेहनत करता है, अपने लक्ष्य को पाने की ओर अग्रसारित होता है, वही position भी पाता है।
और उसमें ये विश्वास भी भरिए
कि वो किसी से कम नहीं है, अगर वो मेहनत करेगा, तो वो भी
position अवश्य पाएगा। और अगर वो position नहीं पा रहा
है, तो उसे हतोत्साहित मत करिए, बल्कि उसके
अन्दर दोगुना जोश भर दीजिये। आपका प्यार और support उसे जरूर
से जीत दिलाएगा।
position हमे हमारा benchmark भी बताती है, जिससे हमे पता चलता है, कि हम कहाँ stand कर रहे हैं। हमे कितनी और मेहनत करनी चाहिए, कि हमारी भी first position आ जाएगी।
position हमे हमारा benchmark भी बताती है, जिससे हमे पता चलता है, कि हम कहाँ stand कर रहे हैं। हमे कितनी और मेहनत करनी चाहिए, कि हमारी भी first position आ जाएगी।
पर हाँ साथ ही आपको ये भी समझना
होगा, कि आप के बच्चे के लिए कौन सी ऐसी field है, जहाँ उसकी
जीत सुनिश्चित है। उसे उसी field में जाने का मौका दें।
क्योंकि आप छोटे level पर तो उसे
competition से बचा लोगे,
पर ज़िंदगी के competition
का क्या? उनके लिए उन्हें कमजोर मत करिए। comfort zone इतना भी मत बढ़ाइये, कि वो realty से बहुत दूर हो जाएँ।
जो दौड़ता है, race भी वही जीतता
है।