बुद्धि, धैर्य सबसे बलवान (भाग -1) के आगे...
बुद्धि, धैर्य सबसे बलवान (भाग-2)
नरेंद्र, श्रंखला नगर की सीमा पर पहुंचा, तो वो बहुत भूखा और प्यासा हो गया, उसने देखा, पास ही एक नदी थी। उसने सोचा नदी है, तो उसकी भूख-प्यास शांत करने की व्यवस्था हो सकती है, अतः उसने अपना डेरा वहीं डाल दिया।
उसने मछली पकड़ने का मन बना लिया, पर कुछ देर तक प्रयास के बाद भी उसके हाथ एक भी मछ्ली नहीं लगी, वो हताश होकर लौट ही रहा था कि उसे एक बगुला दिखाई दे गया। नरेंद्र ने सोचा, आज इसी का भोजन करते हैं, इसके साथ ही उसने बाण चला दिया, एक तीर से ही बगुला ढेर हो गया।
नरेंद्र, बगुले को उठाने ही वाला था कि एक आदमी वहाँ चला आया और नरेंद्र से लड़ने लगा, तुमने मेरे पिता को मार दिया...
यह तुम्हारे पिता, कैसे हो सकते हैं? नरेंद्र गुस्से में भरकर बोला..
मेरे पिता ने मरकर बगुले का जन्म लिया है, वो मछली पकड़ कर, मेरी मदद करते थे, जिससे मेरा भरण-पोषण होता था।
अब तुम मुझे हर्जाना दो, नहीं तो मैं राजा जी से तुम्हारी शिकायत करुंगा।
जाओ कर दो, नरेन्द्र क्रोधित होते हुए बोला।
नरेंद्र ने सोचा, अब नगर चल कर ही भोजन किया जाए।
नगर में उसे एक कान कटा व्यक्ति मिला। नरेंद्र को देखते ही बोला, अरे तुम आ गए। मुझे मेरा कान वापिस कर दो।
तुम्हारे पिता जी ने मेरे कान के बदले में मुझे 10 रुपए उधार दिए थे। तुम यह 10 रुपए ले लो, और मुझे मेरा कान लौटा दो।
बकवास मत करो, मेरे पिता जी ने ऐसा कुछ नहीं किया..
तुम मेरा कान वापस करो या हर्जाना दो, अन्यथा मैं राजा जी के पास जाऊंगा।
जा जा, जिसके पास जाना है जा, मैं तुम्हें कुछ नहीं देने वाला..
अब नरेंद्र भूख और ठग लोगों की बातें सुनकर चकराने लगा था।
एक भोजनालय के आगे पहुंच कर उसने खाने के लिए दो रोटी और थोड़ी सी सब्जी खरीदी। जब उसने खाने का मूल्य पूछा तो भोजनालय का मालिक बोला, आप से क्या लेना, आप बस मुझे खुश कर देना।
नरेंद्र ने भोजन खाकर उचित दाम के अनुसार 10 रुपए दिए।
भोजनालय का मालिक बोला, बस इतने से? मैं खुश नहीं हुआ...
नरेंद्र ने 20, 50, 100 तक उसे देने चाहा, पर भोजनालय का मालिक अड़ा रहा, मैं खुश नहीं हुआ। तुम मुझे खुश करो, वरना मैं राजा जी से तुम्हारी शिकायत करुंगा...
नरेंद्र ने 10 रुपए दिए और कहा कि यह उचित मूल्य है, मैं इससे ज्यादा और कुछ नहीं दूंगा, तुम्हें जिससे जो कहना है, कहो।
नरेंद्र दुःखी होकर, अपने खेमे की ओर लौट आया, उसे अच्छे से समझ आ गया था कि क्यों उसके पिता जी यहाँ आने को मना करते थे। इस नगर में तो ठगों की पूरी श्रृंखला है और उनसे बचना भी मुश्किल...
वो इसी उधेड़बुन में था कि उसनेे देखा, राजा के सैनिक पहले ही खड़े थे। नरेंद्र के आने से वो उसे राजा के पास ले गए।
जहाँ वो तीनों दुष्ट व्यक्ति पहले से ही मौजूद थे।
आगे पढ़ें बुद्धि, धैर्य सबसे बलवान (भाग -3) अंतिम भाग में...