दुर्गा पूजा की धूम पूरे भारत वर्ष में है। कहीं गरबा, कहीं दांडिया, कहीं धुनुचि की उमंग है।
भारत वर्ष के अधिकतर प्रांत में पूरे नौ दिन का महत्व है, फिर वो चाहे पंजाब हो, उत्तर प्रदेश हो, दिल्ली हो, गुजरात हो, महाराष्ट्र हो, सब में नवरात्र के नौ दिनों की विशेषता है।
लेकिन बंगाल में नवरात्र पर्व का आरंभ षष्ठी से माना जाता है। वहां इसे नवरात्र पर्व नहीं बल्कि दुर्गापूजा कहा जाता है। और यह वहां पर सबसे विशिष्ट माना जाता है।
आज देखते हैं, क्यों है षष्ठी से वहां पूजा का आरंभ, और कब क्या होता है।
दुर्गा पूजा बंगाल की
षष्ठी तिथि को, यानी कि आज के दिन, ढाकी की थाप के साथ माँ के मुख के दर्शन होने प्रारंभ होते हैं।
षष्ठी तिथि की देवी, कात्यायनी देवी होती हैं। यह देवी ब्रह्मा जी की मानस पुत्री हैं, और भगवान कार्तिकेय की पत्नी व भगवान शिव और माता पार्वती की ज्येष्ठ पुत्रवधू हैं। यही छठ मैया भी हैं, जिनकी पूजा छठ पर्व में होती है।
1. षष्ठी देवी कात्यायनी का स्वरूप :
दिव्य रुपा कात्यायनी देवी का शरीर सोने के समान चमकीला है। चार भुजाधारी माँ कात्यायनी सिंह पर सवार हैं। अपने एक हाथ में तलवार और दूसरे में अपना प्रिय पुष्प कमल लिए हुए हैं। अन्य दो हाथ वरमुद्रा और अभयमुद्रा में हैं। इनका वाहन सिंह हैं।
इनकी पूजा करने से संतान प्राप्ति और संतान सुरक्षा का वरदान मिलता है।
बंगाल में दुर्गा पूजा पांच दिन का महापर्व है जो कि षष्ठी से आरंभ होकर दशहरा के दिन सिन्दूर खेला के साथ समाप्त होता है।
आइए जानते हैं बंगाल में दुर्गा पूजा का क्या महत्व है और वहां के एक-एक दिन की क्या विशेषता है।
2. दुर्गा पूजा का महत्व :
दुर्गा पूजा राक्षसराज महिषासुर पर देवी दुर्गा की जीत को जश्न के रूप में मनाते हैं। दुर्गा पूजा का पहला दिन महालया है, जो देवी के आगमन का प्रतीक है। महालया आश्विन अमावस्या के दिन होता है।
बंगाली समाज शारदीय नवरात्रि की प्रतिपदा तिथि से पंचमी तक दुर्गा पूजा की तैयारी शुरू कर देते हैं।
तैयारियों के दौरान माँ की मूर्ति में मिट्टी चढ़ाई जाती है, और पूजा-पंडाल की सजावट अपने चरम पर पहुंच जाती है। दुर्गा माँ की मूर्ति को सजाया जाता है और फिर छठे दिन से शक्ति की पूजा की जाती है। माँ दुर्गा के महिषासुर मर्दिनी रूप की पूजा बंगाली लोग करते हैं। लोग पंडालों में दुर्गा माँ की मूर्ति के साथ-साथ माँ सरस्वती, माँ लक्ष्मी, पुत्र गणेश और कार्तिकेय की मूर्ति भी स्थापित करते हैं।
3. धुनुची नृत्य :
दुर्गा पूजा में सप्तमी से लेकर नवमी तक धुनुची नृत्य किया जाता है। धुनुची नृत्य या धुनुची नाच बंगाल की एक बहुत ही प्राचीन परंपरा है जिसकी झलक हर दुर्गा पूजा पंडाल में देखी जा सकती है।
4. दुर्गा पूजा के पांच दिन :
A. पहला दिन : कल्परम्भ -
दुर्गा पूजा का आरंभ कल्परम्भ से शुरू होता है। इसे अकाल बोधन भी कहा जाता है। इस दिन देवी मां को असमय निद्रा से जगाया जाता है, क्योंकि चातुर्मास के दौरान सभी देवी-देवता दक्षिणायन काल में निंद्रा अवस्था में होते हैं। इस दिन उनकी पूजा करके जगाया जाता है।
B. दूसरा दिन : नवपत्रिका पूजा -
नवपत्रिका पूजा का पर्व नवरात्रि की सप्तमी तिथि को मानते हैं। यह दिन माँ दुर्गा के सातवें स्वरूप माँ कालरात्रि का होता है। नवपत्रिका पूजा में नौ तरह के पत्तों यानी केला, हल्दी, अनार, धान, मनका, बेलपत्र और जौ के पत्तों को बांधकर इसी से माँ को स्नान कराया जाता है। इसके बाद ही माँ को सजाकर प्राण-प्रतिष्ठा की जाती है।
C. तीसरा दिन : संधि पूजा -
तीसरा दिन संधि पूजा का है। संधि पूजा अष्टमी और नवमी तिथि के बीच आती है। इस दिन पारंपरिक परिधान पहनकर देवी मां की पारंपरिक पूजा की जाती है। संधि पूजा अष्टमी तिथि के अंतिम 24 मिनट और नवमी तिथि के प्रारंभ होने के 24 मिनट बाद की जाती है।
D. चौथा दिन : महानवमी पूजा -
नवरात्रि का नौवें दिन मां सिद्धिदात्री का है। इस दिन माँ दुर्गा को दही, शहद, दूध आदि का भोग लगाते हैं और माँ दुर्गा को दर्पण दिखाया जाता है। ये दर्पण वही होता है, जो माँ दुर्गा के स्वागत के समय इस्तेमाल किया जाता है।
E. पांचवा दिन : सिंदूर उत्सव -
दुर्गा पूजा का पांचवा और आखिरी दिन के दिन सिंदूर खेला जाता है। इस दिन महिलाएं माँ दुर्गा को सिंदूर चढ़ाने के साथ एक-दूसरे के सिंदूर लगाती और उसे गुलाल की तरह उड़ाती है। इसलिए इसे सिंदूर खेला भी कहा जाता है।
सिंदूर खेला के बाद शुभ मुहूर्त में माँ दुर्गा की मूर्ति का विधि-विधान के साथ विसर्जन किया जाता है।
बंगाल में माँ के आगमन से विसर्जन के पहले तक का समय अनुपम होता है। पूरे शहर की छटा ही बदल जाती है। जगह-जगह छोटे-बड़े पूजा-पंडाल, सब एक से बढ़कर एक... इनकी खूबसूरती का वर्णन ही नहीं किया जा सकता है, जितनी भी करेंगे, कम ही होगी। हर पंडाल में माँ की भक्ति से परिपूर्ण बंगाली गीत... जो आपको चाहे समझ ना आए, पर कर्णप्रिय अवश्य लगेंगे...
इन पांचों दिन वहाँ घर पर नहीं व्यतीत किए जाते हैं। बल्कि पूरा बंगाल इन दिनों आपको पंडाल में ही दिखेगा, माँ की भक्ति में, उनके सौन्दर्य में, उनके रंग में ही रंगे दिखेंगे।
सब भक्ति, उत्साह और उल्लास में ही दिखेंगे। यह पांच दिन उन्हें कुछ और नहीं सूझता है, पंडाल में ही पूरा दिन गुज़रता है। दुनिया भर के आयोजन होते रहते हैं, खाना-पीना भी वहीं रहता है।
स्त्री, पुरुष, बच्चे और बड़े-बुजुर्ग सब वहीं रहते हैं। कभी आपको मौका मिले तो आप भी उसी रंग में अपने आपको रंग कर देखिएगा। हम को दुर्गा माँ ने यह सुअवसर दिया था...
सच में अद्भुत अनुभूति होती है।
बाकी जहाँ भी ईश्वरीय वातावरण होगा, उस जगह से अद्भुत और रमणीय दृश्य तो कहीं भी और नहीं होगा...
दुर्गापूजा पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं 🙏🏻
माँ की कृपा सभी पर बनी रहे 🙏🏻😊