पहला सावन
Image courtesy : Partrika |
फोन घनघना रहा था, रमा हाथ पोछती हुई आयीं- हाँ माँ, कर ली है पूरी तैयारी, बस पूड़ी ही pack कर रहीं थी। तभी नन्ही रिया ने रमा का हाथ पकड़ कर हिलाया, नानी के घर चलना है ना?
हाँ, मेरी माँ, तुम्हारी नानी का ही phone है।
अच्छा माँ, रखती हूँ, रिया को ready कर के बस निकल ही रहे हैं, बाकी बात मिलकर करूंगी।
रमा के साथ रिया हर साल सावन में नानी के घर ही
जाती थी। उसकी नानी के घर में सावन में बड़ा उत्सव होता था। उसमें झूले भी लगाए
जाते थे, जो रिया को बहुत पसंद थे।
रिया की खूब सारी friends भी
बन चुकी थीं वहाँ।
रास्ते भर रिया, यही गाती रही,
“बदरा छाए, कि झूले
पड़ गए, हाय........
घर पहुँचते ही रिया, नानी के
गले में झूल गयी, नानी..... नानी...... झूले लग रहे हैं ना?
हाँ मेरी प्यारी बिटिया....
रमा बोली, पूरे रास्ते, झूले पड़ गए...... झूले पड़ गए...... यही गाती रही
है।
इस बार नानी ने और ज्यादा झूले लगवाए थे।
नानी इतने झूले क्यों लगवाए हैं?
बेटा, इस बार तेरे बड़े मामा के London
वाले friend, अपनी family के साथ आ रहे हैं, इसलिए मामा ने ही ज्यादा लगवाए
हैं।
माँ, महेश भैया आ रहे हैं, रंजन और भाभी के साथ?
हाँ रमा, पूरे पाँच साल बाद आ रहा है महेश।
तभी तेरा भाई उसके लिए बहुत तैयारी करा रहा है। सबसे अच्छा दोस्त जो है उसका।
वाह! बहुत मज़ा आएगा, कहकर रिया
झूमने लगी।
नानी बोलीं, रमा ये तो ऐसे खुश हो रही
है, जैसे ये रंजन को ना जाने कब से जानती हो।
अरे...... कुछ नहीं माँ, ये झूले
की दीवानी है, बहुत सारे झूले देखकर ही झूम रही है।
पूरा उत्सव बड़े धूम से मनाया गया, पर इस सावन में रिया और रंजन की बहुत पक्की दोस्ती हो गयी, जैसे ना जाने कब के बिछुड़े मिले हों।
दोनों ने इस गाने पर खूब dance किया....
“ बरसो रे मेघा, मेघा....., बरसो रे मेघा मेघा.......”
आगे की कहानी पढ़ें, पहला सावन(भाग-2) में.....