निर्लज्ज
तृषा, बहुत ही कर्मठ और शांत स्त्री थी। उसकी शादी काशी के साथ हुई थी, जो बेहद अधीर और आलसी था।
दोनों के विपरीत स्वभाव के कारण, घर का अधिकतम काम तृषा के सिर पर था। घर-बाहर दोनों के काम तृषा बखूबी निभाती थी। फिर भी काशी के मुंह से एक बार भी तृषा की तारीफ नहीं होती थी।
दिन अपनी गति से बढ़ रहे थे। शादी के एक साल बाद ही कार्तिक पैदा हो गया, जिससे तृषा की जिम्मेदारी और बढ़ गई पर तृषा ने इसे भी पूरे जतन से निभाना शुरू कर दिया। वो अपनी छोटी सी दुनिया में बहुत खुश थी।
पर उसकी खुशी को ना जाने किस की नज़र लग गई, काशी को कैंसर हो गया और वो भरी जवानी में तृषा को छोड़कर चला गया।
चंद दिनों की कठनाइयों के बाद, तृषा संभल गई, क्योंकि पहले भी वही सब संभालती थी। उसने अपनी नौकरी के साथ ही अचार पापड़ का business शुरु कर दिया था। उसकी सारी दुनिया कार्तिक के ईर्द-गिर्द सिमट गई। कार्तिक भी अपनी मां को बहुत प्यार करता था।
कार्तिक भी अपनी मां जैसा ही था। समय अपनी रफ़्तार से बढ़ रहा था। कार्तिक जवान हो गया और उसकी बहुत अच्छी नौकरी लग गई।
कार्तिक ने मां से काम करने को मना कर दिया। बोला मां, आपके काम के दिन खत्म हुए और आराम के दिन शुरू हो गये हैं। बहुत दुख देख लिया, मेरी मां अब मेरी सिर्फ़ सुख भोगेगी।
तृषा के सुख के दिन चलने शुरू हो गये। कार्तिक की अच्छी नौकरी थी तो उसके लिए जल्द ही रिश्ते आने लगे।
एक लड़की श्वेता, final की और उसे देखने गए वो लोग...
लड़की स्वभाव से तेज़ लग रही थी, कार्तिक को तो बिल्कुल पसंद नहीं आई, तृषा को भी कुछ ज्यादा समझ नहीं आई। वो हर मामले में कार्तिक से 19 थी।
जब वो लोग उठकर जाने लगे तो श्वेता के पिता ने, तृषा के पैर पकड़ लिए कि ऐसे ना जाएं, मेरी नौकरी का आखिरी महीना चल रहा है, फिर retirement हो जाएगा, तब रिश्ता होना और कठिन हो जाएगा।
हमें आप और आपका बेटा दोनों बहुत पसंद आए हैं, आप से बेहतर, हमारी बेटी को दूसरा रिश्ता नहीं मिल सकता...
आगे पढ़े निर्लज्ज (भाग - 2) में...