एकता, बुद्धि और संयम
जैसे ही lockdown की बात पता चली, सारे बिहारी मजदूर परेशान, गांव से आए थे, कुछ कमा लेंगे, यहाँ तो खाने के भी लाले पड़ गए।
सभी को अपने......
बस फिर क्या था, चल दिए सब, बिना इस बात की परवाह किए किे मंजिल बहुत दूर है, और पास कुछ नहीं।
थोड़ी दूर जाने पर पता चला कि बड़ी गलती हो गई है, क्योंकि मीनारें और दुकानें तो बहुत पड़ रही थी, नहीं कुछ दिख रहा था, तो इंसान।
बस सब तरफ वो ही वो थे।
उसमें भी सबकी चलने की गति अलग-अलग होने से वो छोटे छोटे समूह में रह गये थे।
अब धीरे धीरे शरीर की ताकत और हिम्मत दोनों जवाब दे रहे थे।
एक छोटे समूह में ममता काकी भी थीं, बेहद सुलझी हुई और नाम के अनुरूप ममतामई।
उन्होंने अपने थके-हारे समूह से कहा, बिना योजना के आगे बढ़ना असम्भव है, हमें कुछ योजना बनानी होगी, और संयम रखना होगा, तो सब कुशल मंगल गांव पहुंचेंगे।
सब एक स्वर में बोले, क्या करना होगा।
वो बोली, एकता कायम करनी होगी, काम बांटना होगा, बुद्धि चलानी होगी। साधन सीमित हैं तो संयत रहना होगा।
सबसे पहले, सब अपनी धोती, गमछा जो कुछ है, निकाल कर, सारे आदमी लोग टैंट बनाएं, और औरतें जो कुछ है, उसे खाना के लिए निकल लो।
थोड़ी थोड़ी दूरी पर सोने और खाने की व्यवस्था हो गई।
अगले दिन वो बोली, सब थोड़ा इधर उधर देखकर आओ, जो भी फल-सब्जी, गाय बकरी दिखे, ले आओ। फिर सब साथ आगे चलेंगे।
कुछ देर में सब फिर मिले, कोई खाली हाथ ना था, कुछ गाय और बकरी भी साथ हो लीं।
गाय व बकरी का दूध व कंडा था, फल और सब्जियाँ अब हर समय साथ थी, तो खाने की ऐसी व्यवस्था हो गई, कि कोई भूखा नहीं रह रहा था।
बस धीरे धीरे रुकते चलते सब सकुशल गांव पहुंच गए। ना वो भूखे थे, ना बेहद थके हुए।
सब एक ही बात कह रहे थे, सकुशल गांव, सिर्फ ममता काकी के साथ के कारण संभव हुआ है, पर वो बोलीं, सब एकता, बुद्धि और संयम से हुआ है।
यह सब साथ हो, तो कोई जंग बड़ी नहीं है।