चंद रुपए
बूढ़ा हरिया, मजदूरी कर के एक-एक रुपए जोड़ रहा था, अपनी लाडली लक्ष्मी बेटी की शादी के लिए।
साहूकार का लड़का दिनेश जो कि एक डॉक्टर था, लक्ष्मी से विवाह करना चाहता था। लक्ष्मी, पढ़ी-लिखी, बहुत सुन्दर और सुघड़ थी तो साहूकार भी तैयार था। बस उसे दहेज की मोटी रकम चाहिए थी।
हरिया, बिटिया के अच्छे भविष्य के लिए अपना जी जान लगा रहा था।
वो साहूकार से बोला, मैं 50 हजार और दो बीघा जमीन आपको दे सकता हूं। बाकी कुछ रुपए स्वागत सत्कार के लिए रखें हैं। तो इससे ज्यादा कुछ नहीं दे सकूंगा मालिक...
हालांकि रुपए तो बहुत कम लग रहे थे पर एकलौते पुत्र के प्रेम और लक्ष्मी के शांत और आज्ञाकारी स्वभाव के कारण साहूकार ने हाँ कर दी, वो जानता था, ऐसी लड़कियां ही घर परिवार को लेकर चलती हैं।
पर साथ ही हिदायत दी कि इससे एक रुपए कम में शादी नहीं होगी...
हरिया ने खुशी खुशी स्वीकार कर लिया।
हरिया बैंक से 100 की पांच गड्डी एक झोले में रखकर ले आया और स्वागत बारात की तैयारी में लग गया।
साहूकार शादी के एक दिन पहले आया और बोला, तू पचास हजार रुपए दे दे। मुझे लक्ष्मी के लिए जेवर बनवाने हैं। कोई खाली श्रंगार हमारी बहू मंडप में थोड़ी ना बैठेगी।
हरिया बोला, आप की अमानत है, जब चाहे तब ले लीजिए। आप ले जाएंगे तो मुझे भी चोरी का डर नहीं होगा। शादी का घर है, पचास काम हैं....
जब उसने झोले में हाथ डाला तो चार गड्डी तो थी पर एक नदारद हो गई थी। झोले में एक छेद था, जिससे रुपए लाते वक्त एक गड्डी कहीं गिर गई थी।
साहूकार को जैसे ही रुपए के बारे में पता चला, बोला 40 हजार, ले जा रहा हूं। सुबह तक 10 हज़ार मिल जाए तो बता देना, बारात ले आऊंगा, वरना यह रुपए भी ले जाना।
अब हरिया को कांटों तो खून नहीं, उसने रुपए बहुत ढूंढे, पर मिले नहीं...
उधर वो रुपए बिनेश को मिल गये थे, उसका बेटा बहुत बीमार था। जब उसे वो रुपए मिले तो, उसकी आंखें चमक उठीं, वो उसे भगवान की कृपा समझ कर घर ले गया।
उसकी पत्नी, मालती रुपए देखकर चौंक गयी, बोली इतने रुपए कहां से मिले?
बिनेश बोला, भगवान ने दिए हैं अपने राजू के लिए, अब सवाल मत पूछ, चल जल्दी डॉक्टर साहब को दिखा दें।
मालती ने साफ मना कर दिया, ना जाने किसके रुपए हैं, उनके खो जाने से उसका क्या हाल हो रहा होगा। ले जा जहां से लाया है।
जिसके हैं, उसको मिल जाएंगे तो उसकी दुआ से हमारा राजू अपने आप ठीक हो जाएगा।
बिनेश बड़बड़ाता हुआ चला गया कि मिला रुपया कौन वापस करता है, मूर्ख है मेरी पत्नी... ले जाता हूं, फिर राजू को कुछ हो जाए तो रोती डोलना...
बिनेश वहीं पहुंच गया, जहां पर उसे रुपए पड़े मिले थे, उसने देखा कि एक बूढ़ा आदमी फांसी लगाने जा रहा था।
अररररे.. क्या कर रहे हो बाबा? उसने उसे रोकते हुए कहा...
हरिया बोला, क्या करूं बेटा, मेरी बेटी की बहुत अच्छे घर शादी हो रही थी, पर चंद रुपए गिर जाने के कारण अब कभी नहीं हो सकेगी। तो मैं अब जीकर क्या करुंगा?
रुपए गिर गये? कितने थे?
बेटा, कुछ दस हजार होंगे...
दस हजार रुपए!....
अब आपकी बेटी की शादी जरुर से होगी, मैं आपको दस हजार रुपए देने ही आया हूं...
तुम क्यों?..
मुझे ही पड़े मिले थे...
आह! तुम महान हो, वरना मिले हुए रुपए और सामान कौन लौटाता है? आज भी अच्छे लोग हैं..
नहीं बाबा, मैं नहीं.. मेरी पत्नी... दरअसल मेरा बेटा बहुत बीमार था, इसलिए मिलने पर उठाने से अपने आप को रोक नहीं पाया, मुझे माफ़ कर दीजियेगा। फिर बिनेश ने अपनी पत्नी की बात बताई...
पर अच्छा हुआ जो मैं जल्दी आ गया, वरना आपकी हत्या का पाप कर बैठता...
तुम्हारी पत्नी बहुत अच्छी है, मैं ईश्वर से तुम्हारे बच्चे के लिए दुआ करुंगा।
फिर हरिया कुछ सोचते हुए बोला, मेरा दामाद डॉक्टर है, तुम अपने बेटे को लेते आओ, वो उसे देख लेगा।
हरिया और बिनेश, राजू को लेकर साहूकार के घर पहुंचे और सारी बात बता दी।
दिनेश ने राजू को देखकर दवा दे दी, राजू ठीक हो गया। लक्ष्मी का विवाह धूमधाम से सम्पन्न हुआ।
बिनेश को साहूकार के घर नौकरी मिल गई, बिनेश ने मालती से कहा, तुम सही कहती हो, कभी दूसरे का कुछ नहीं लेना चाहिए, गिरा हुआ मिलने से वो अपना नहीं होता और दुआओं से सब अच्छा हो जाता है।
सच में बिनेश, चंद रुपए भी किसी की दुनिया बर्बाद कर सकते हैं... अपना छोड़ो मत, दूसरे का लो मत... इसी में सुख है...