Monday 24 September 2018

Article : No Choice

No Choice



जब हम लोग बच्चे थे, तो हमारी life, No choice  हुआ करती थी। पर अगर आप सोचेंगे, तो आप पाएंगे, कि वो समय बहुत अच्छा था।
तब हमारे पास TV के बहुत सारे channel नहीं थे, हमे सिर्फ दूरदर्शन ही देखने को मिलता था। कोई choice नहीं थी, किसी के पास, कुछ और देखने की। अतः सारा परिवार मिलकर TV देखा करता था। और हमें उसके सारे program बड़े ही भाते थे। कितना इंतज़ार हुआ करता था, Friday  के चित्रहार का, Sunday की रंगोली का।
तब सिर्फ Sunday  का ही दिन ऐसा था, जब पूरे दिन program आया करता था। सुबह रंगोली, फिर बच्चों के program, शाम को film । पूरे हफ्ते में TV पर बस एक ही film देखने को मिलती थी। पर तब Sunday, Sunday  हुआ करता था।
अब तो जितने channel हो गए हैं, उतनी ही हमारे पास choice भी हो गयी है। हर segment के भी कई कई channel हो गए हैं। चाहे वो बच्चों के program  हों, या गानों का, फिल्म का हो या न्यूज़ का या फिर ढेरों सीरियल का। जो हर रोज़ दिन भर आते भी रहते हैं। साथ ही programs का कई बार repeat telecast भी होता है। आपके पास अपनी पसंद के program देखने की बहुत सारी choice है।
पर सोचिए क्या अब भी उतना ही मज़ा आता है। नहीं! क्योंकि अब सब का साथ नहीं है, और असली मज़ा सबके साथ ही आता है।
हर रोज़ दिनभर ही प्रोग्राम के आने से किसी भी प्रोग्राम का उतना मज़ा नहीं रह गया है। और इससे एक और बात हो गयी, Sunday भी पहले सा Sunday नहीं रह गया है।
ये choice वाली बात सिर्फ entertainment में ही नहीं, जीवन के अन्य पहलुओं पे भी लागू होती है। मसलन, तब हमारे पास आज के बच्चों जैसे बहुत सारे कपड़े नहीं हुआ करते थे। क्योंकि तब कपड़े भी कुछ ही अवसर, जैसे जन्मदिन, होली, दिवाली, या घर में किसी के विवाह के अवसर में ही मिलते थे। पर हम अपने कपड़े बड़े जतन से रखते थे। साथ ही उन अवसरों का भी बड़ी बेसब्री से इंतज़ार किया करते थे। तब हमारे पास choice कम थी पर मज़ा कई गुना होता था। आजकल हम लोग बच्चों को इतनी dresses दिला देते हैं, कि कुछ तो बिना पहने ही छोटी हो जाती हैं। और बच्चों में भी किसी भी अवसर में कपड़े लेने की कोई इच्छा नहीं रहती है, ना ही उन्हें कपड़ों की कोई कद्र होती है।
हमारे पास खाने की भी बहुत choices नहीं रहा करती थी। उस समय खाने में इतनी variety नहीं थी, ना ही खाना पसंद ना आने पर कुछ और होने की गुंजाइश होती थी। हमें तो जो मिलता था, सब खा लेते थे। तब माँ हम लोगों के पीछे पीछे खाना ले के नहीं दौड़ा करती थी। और आज तो जितनी variety है, बच्चों के नाटक भी उतने ही ज्यादा हैं। क्योंकि उन्हें भूख का एहसास नहीं है। उनके एक mood पर, उनकी पसंद का खाना या तो बना दिया जाता है, या order कर दिया जाता है। उसके बाद भी आज बच्चे कुपोषण का शिकार हैं।
इस तरह बच्चों को बहुत सारी  choice, देकर हम उन्हें बहुत बड़े comfort zone  में लाते जा रहे हैं। जिससे adjustment level low होता जा रहा हैउसी का नतीजा है, बढ़ती हुई असंतुष्टि, एक जगह टिक कर ना रहना, रिश्तों में बढ़ती हुई दूरी, self centered होना, बढ़ते हुए तलाक और न जाने क्या-क्या
क्योंकि हम तो अपने बच्चों को बहुत सारी choice दे सकते हैं। पर life, full of choice नहीं होती है। इसमें बहुत कुछ ऐसा भी होता है जो हमारी choice के विपरीत भी होता है।
तो कहीं हम और आप बच्चों को बहुत सारी choice  दे कर उन्हें comfort zone में जकड़ तो नहीं दे रहे हैं। अगर आप सचमुच चाहते हैं, कि आपका बच्चा हमेशा खुश रहे, तो उन्हें कभी बहुत सारी choice के साथ, और कभी no choice means without choice के रह कर ड़ा होने दीजिये, अगर वो सब condition  में adjust  कर सकेंगे, तभी वो संतुष्ट रहेंगे, और खुश भी।