अब तक आपने पढ़ा, कांता बहुत गरीब औरत है, जो अपने बीमार बच्चे को डॉ. समीर को दिखाना चाहती है, पर clinic बन्द होने के कारण दुखी है। क्योंकि Sunday को डॉ. घर में देखते हैं, जो बहुत दूर है, तभी वहाँ सरजू रिक्शेवाला आ जाता है......
अब आगे.....
मजबूरी का सौदा (भाग-2)
तो चलो, हम छोड़ देंगे, सरजू ने अपनेपन से बोला। पर हमारे पास पैसे नहीं है, तुमको देने के लिए, सरजू भैया। सिर्फ 700 रूपया हैं, डॉ. की फीस और दवा के लिए। अरे भौजी, पराया ना करो। बाद में दे देना, और नहीं भी दोगी, तो भी चलेगा। कितना तो तुम सबके काम आती हो, आज जा
कर तो हमें मौका मिला है।
सरजू, कांता और मंगलू, डॉ.
समीर के घर की ओर बढ़ गए।
डॉ. के घर पहुँचने पर वो डॉ. समीर से मिले।
वो गौर वर्ण के ऊंचे लंबे कद के थे। उनके चहरे पर आत्मविश्वास
का एक अलग ही तेज था। वो शायद इसलिए, क्योंकि उन्होंने अब तक
ना जाने कितने मरीज़ों को ठीक किया था। उन्होंने अंदर आने को कहा, आवाज़ में कठोरता का भान था, और साथ ही नियम से बंधे
होने का भी पुट था।
कांता अंदर घुसते से ही बोलने लगी, डॉ. बाबू हम बहुत दूर से बड़ी उम्मीद के साथ आए हैं।
इतनों को ठीक किया है, मेरे मंगलू को भी ठीक कर दीजिये।
डॉ. समीर बहुत ही रूखे स्वर में बोले, मेरी 1 हज़ार रुपए फीस है।उतने रुपए लाई हो?
हज़ार रुपया..... नहीं डॉ. बाबू मैं गरीब मजबूर औरत हूँ, मेरे पास
इतने रुपए कहाँ
हैं? मैं तो बड़ी मुश्किल से 700 रुपए,
आपकी फीस और दवाई के लिए लाई हूँ। आप 500 रुपए ले लीजिये।
डॉ. समीर बोले आज Sunday है, आज मैं हज़ार रुपए ही लेता हूँ।कह कर सामने लगे board को दिखा दिया, जहां लिखा था Sunday 1000, अन्य दिन 500। कल आना तब 500 रुपए ले लूँगा।
कैसी बात कर रहे हैं, डॉ.
बाबू, कल तक तो ना जाने मंगलू का
क्या होगा? आप आज ही देख लो ना। बहुत मजबूर
हूँ मैं, बड़ी दूर से उम्मीद बांध कर आई हूँ, गरीब हूँ, देख लो ना बाबू।
क्या डॉ. समीर कांता की
मजबूरी को समझ कर 500 रुपए में मंगलू को देख लेंगे? पढ़ते हैं मजबूरी का सौदा (भाग-3)