बुद्धि, धैर्य सबसे बलवान (भाग-1) तथा
बुद्धि, धैर्य सबसे बलवान (भाग-2) के आगे...
बुद्धि, धैर्य सबसे बलवान (भाग-3)
जब नरेंद्र राजा के पास पहुंचा, तब तक तीनों ठग अपनी शिकायत, राजा से कर चुके थे।
राजा ने नरेंद्र के आते ही फरमान सुना दिया कि, उसे सभी को हर्जाना देना होगा।
एक तो अंजाना नगर, ऊपर से राजा जी का फरमान, नरेंद्र अपने साथ लाए, तीनों सोने के हार को हर्जाने के रूप में गंवा चुका था। तीनों ठग सोने का हार हड़प के बहुत खुश थे।
वो बहुत दुखी था कि उसने अपने पिता जी की आज्ञा की अवहेलना क्यों की।
तभी राजकुमार सभा में आ गया और राजा की गोद में आकर बैठ गया, राजा उसे देखकर दुलार करने लगे।
उन्हें देखकर नरेंद्र को अपने पिता जी की याद आ गई, वो भी उसे ऐसे ही दुलार करते थे। उसी समय नरेंद्र को अपने पिता जी द्वारा दी गई शिक्षा याद आ गई कि जब कभी मुसीबत में फंसो तब अपने बुद्धि और धैर्य से काम लेना, उससे अधिक बलवान कोई नहीं होता है।
उसे एक युक्ति सूझी, उसने तुरंत आगे बढ़ कर अपने गले के मोती के हार को राजकुमार को दे दिया। राजकुमार उसे देखकर बहुत खुश हो गया, राजकुमार को खुश होता देखकर, राजा भी खुश हो गया। राजा को खुश हुआ देखकर, राजसभा में मौजूद सभी लोग भी खुश हो गये।
नरेंद्र ने सबसे पूछा, क्या राजा जी को खुश देखकर आप सभी मुझसे खुश हैं। सबने हामी भर दी।
अब नरेंद्र ने भोजनालय वाले से पूछा, क्या आप भी मुझसे खुश हैं? भोजनालय वाले को झक मारकर हाँ कहना पड़ा।
राजा जी, मैंने इन्हें खुश कर दिया है तो, अब इन्हें सोने का हार देने की आवश्यकता नहीं है?
हाँ नहीं है, अब तो यह तुम से खुश हो चुका है।
भोजनालय वाला, भुनभुनाता हुआ वहांँ से चल गया।
नरेंद्र की युक्ति काम कर गर्ई, अब राजा, नरेंद्र की बात सुन रहा था।
वह बोला महाराज, मेरे पिता जी मरकर मछली बन गए थे, मैं उनसे मिलने ही यहाँ आया था, पर बगुले ने मेरे पिताजी को खा लिया था, तो मैंने अपने पिता जी को बचाने के लिए ही बगुले को मारा था। अब बताइए, अपने पिता जी के जीवन की रक्षा करना कौन सा गुनाह किया है और उसका कैसा हर्जाना?
तुम सही कह रहे हो, तुम्हें मछुआरे को कोई हर्जाना देने की आवश्यकता नहीं है।
मछुआरे के मुंह से कुछ नहीं निकला। वो भी वहाँ से चलता बना।
अब नरेंद्र कान कटे व्यक्ति की तरफ मुड़ा और बोला, भाई मेरे पिता जी ने बहुत लोगों के कान लिए थे, तो तुम्हारा कौन सा है, यह मैं पहचान नहीं पाऊंगा, तो तुम एक काम करो, अपना दूसरा कान काटकर दे दो तो मैं उससे मिलाकर तुम्हारा कान दे दूंगा।
यह सुनकर कान कटा व्यक्ति बोला, मुझे हर्जाना नहीं चाहिए ना ही कान चाहिए, उसके बाद वो ऐसा भागा कि उसने पीछे मुड़कर भी नहीं देखा।
राजा, नरेंद्र की बुद्धि और धैर्य से प्रसन्न हो गए और बोले, नरेंद्र तुम्हारे जैसा बुद्धिमान और धैर्यवान व्यक्ति मैंने आज तक नहीं देखा। मैं चाहता हूं कि तुम एक सप्ताह मेरे महल में मेहमान बनकर रहो।
नरेंद्र बोला, माफ़ कीजियेगा महाराज, मेरे नगर में सब मेरा इंतजार कर रहे होंगे अतः मुझे जाना ही होगा।
महाराज मान जाते हैं तथा नरेंद्र को खूब सारे उपहार के साथ अपने महल से विदा करवाते हैं।
उसके बाद नरेंद्र ने हमेशा ही अपने पिता जी की दी हुई शिक्षा पर विशेष ध्यान रखा कि बुद्धि और धैर्य सबसे बलवान होते हैं। साथ ही यह भी कि माता पिता की कही हुई बातों पर विश्वास रखना चाहिए, क्योंकि उनका कहा हुआ मानने से जीवन में कभी भी मुसीबतों का सामना नहीं करना पड़ता है...