रिश्तों में तुलना क्यों
अक्सर लोगों को यह कहते हुए "हमारी बहू बिल्कुल बेटी जैसी है" या "हमारी सास बिल्कुल माँ जैसी है" बहुत गर्व महसूस होता है।
पर रिश्तों में तुलना क्यों?
कभी कोई यह नहीं कहता है कि हमारी मम्मी, बिल्कुल पापा जैसी हैं या पापा, बिल्कुल मम्मी जैसे हैं। क्योंकि पापा, पापा जैसे ही होते हैं और मम्मी, मम्मी जैसी।
किसी को किसी के जैसा होना भी क्यों है? किसी के जैसा बनना अपने अस्तित्व पर प्रहार करना है।
बेटी जैसी बहू या माँ जैसी सास, आखिर क्यों चाहिए? क्या यह वाक्य सास या बहू के अस्तित्व पर सवाल नहीं उठाता है?
सास या बहू होने में माँ और बेटी जैसे होने का प्रमाण-पत्र क्यों ज़रुरी है?
सास या बहू होना क्या इतना बुरा है? क्या वो इसी रूप में अच्छी नहीं हो सकती हैं?
कोई ऐसा भी क्यों कहता है कि, मैं अपनी सास को माँ जैसा मान दूंँगी। क्या सास का अपना कोई मान नहीं होता है? या वो मान देने लायक नहीं होती हैं?
यही बात तब भी लागू होती है, जब लोग कहते हैं कि बहू को बिल्कुल बेटी जैसा प्यार देंगे। क्या बहू के लिए कोई प्यार नहीं होता है? या उसको देने वाला प्यार देने लायक नहीं होता है?
सास, सास होती है। माँ नहीं
बहू, बहू होती है, बेटी नहीं।
यह तुलना ऐसी नहीं है, जैसे आम से कहा जाए कि तुम सेब जैसे गुणकारी नहीं हो, या सेब से कहा जाए कि तुम आम जैसे स्वादिष्ट और गुदे से भरपूर नहीं हो।
जब बेटी होती है तो वह कोरी किताब होती है, गीली माटी होती है। तब हर माँ अपनी बेटी को हर छोटी-बड़ी बात सिखाती है, उसे संस्कारों के शब्दों से परिपूर्ण करती है। जिससे वो स्वावलंबी बनाती है और एक सुदृढ़ मूर्त रूप में बदल जाती है।
जब वही लड़की, विवाह उपरांत अपने ससुराल आती है, तब वह बहुत कुछ सीखकर आती है। एक सुदृढ़ मूर्त रूप में होती है।
सास, माँ जैसी कैसी हो सकती है, जबकि उसे तो बहू सुदृढ़ मूर्त में संस्कारों से परिपूर्ण मिली है।
सास अपनी बहू को हर कार्य में निपुण बनाकर सम्पूर्ण बनाती है। उसे जीवन में सफल व समृद्ध बनने में सहयोग प्रदान करती है।
उसी तरह से जब एक बेटी जन्म लेती है तो उसकी किलकारी से पूरा घर गूंज उठता है। उसके बचपन से पूरा घर वापस से अपना बचपन जी लेता है।
वहीं बहू पराए घर से आती है। अपना बचपन कहीं पीछे छोड़ कर आती है, तो वो बेटी जैसी कहाँ हो सकती है? और हो भी क्यों, वो बेटी जैसी? जबकि उसका स्वरूप और कर्तव्य ही अलग है।
वह तो लक्ष्मी स्वरूपा होती है। वो घर को समृद्धि से परिपूर्ण करती है। वंश को आगे बढ़ाती है।
तो जब स्वरुप व कर्तव्य सब अलग हैं, तो तुलना क्यों?
ऐसी अपेक्षा करना ही संबंध में दूरी बढ़ाता है, जो दुःख का पर्याय बन जाता है।
सास को सदैव सम्मान दें, क्योंकि वह आपकी ज़िन्दगी को सम्पूर्ण बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
बहू को सदैव प्रेम करें, वो ही आपके वंश को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
तुलना सदैव दूरी बढ़ाती है, जबकि सबके अस्तित्व को सम्मान, प्यार देने से आपसी सम्बन्ध सुदृढ़ होते जाते हैं।
इसलिए तुलना बंद करें और सुखपूर्वक रहें😊