मकर
संक्रांति
क्यों है, मकर
संक्रांति इस साल 15 जनवरी को? क्यों खाते हैं इसमें तिल गुड़ के लड्डू?
ऐसे ही बहुत से सवाल आपके मन में भी
होंगे, तो आपको आज यही सब बताते
हैं।
मकर संक्रांति हिन्दू धर्म का प्रमुख
पर्व है। ज्योतिष के अनुसार, मकर संक्रांति के दिन सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है। सूर्य के
एक राशि से दूसरी में प्रवेश करने को संक्रांति कहते हैं। मकर संक्राति के पर्व को
कहीं-कहीं उत्तरायण भी कहा जाता है। मकर संक्राति के दिन गंगा स्नान, व्रत, कथा, दान और भगवान सूर्यदेव की उपासना करने का
विशेष महत्त्व है।
कब है मकर संक्रांति?
ज्योतिषीय गणना के अनुसार, इस बार सूर्य, मकर राशि में 14 जनवरी की रात 02:07 बजे प्रवेश करेगा, इसलिए संक्रांति 15 जनवरी को मनाई जाएगी।
काशी हिंदू विश्व विद्यालय के
ज्योतिषाचार्य पं गणेश मिश्रा के अनुसार 14 जनवरी को मकर संक्रांति पहली बार 1902 में मनाई गई थी।
इससे पहले 18 वीं सदी में 12 और 13 जनवरी को मनाई जाती थी। वहीं 1964 में मकर संक्रांति
पहली बार 15 जनवरी को मनाई गई
थी। इसके बाद हर तीसरे साल अधिकमास होने से दूसरे और तीसरे साल 14 जनवरी को, चौथे साल 15 जनवरी को आने लगी। इस तरह 2077 में आखिरी बार 14 जनवरी को मकर संक्रांति मनाई
जाएगी।
राजा हर्षवर्द्धन के समय में यह पर्व 24 दिसम्बर को पड़ा था।
मुगल बादशाह अकबर के शासन काल में 10 जनवरी को मकर संक्रांति थी। शिवाजी के जीवन काल में यह
त्योहार 11 जनवरी को मनाया जाता
था।
इसका क्या कारण है : पं मिश्रा के अनुसार सूर्य के धनु से मकर राशि में प्रवेश करने को मकर संक्रांति कहा जाता है। दरअसल हर साल सूर्य
का धनु से मकर राशि में प्रवेश 20 मिनट की देरी से होता है। इस तरह हर तीन साल के बाद
सूर्य एक घंटे बाद और हर 72 साल में एक दिन की देरी से मकर राशि में प्रवेश करता
है। इसके अनुसार सन् 2077 के बाद से 15 जनवरी को ही मकर संक्रांति हुआ करेगी।
ज्योतिषीय आकलन के अनुसार सूर्य की गति
हर साल 20 सेकेंड बढ़ रही है। माना जाता है कि आज से 1000 साल पहले मकर संक्रांति 1 जनवरी को मनाई
जाती थी। पिछले एक हज़ार साल में इसके दो हफ्ते आगे खिसक जाने की वजह से 14 जनवरी को मनाई जाने लगी। ज्योतिषीयों के
अनुसार सूर्य की चाल के आधार पर यह अनुमान लगाया जा रहा है कि 5000 साल बाद मकर संक्रांति फरवरी महीने के
अंत में मनाई जाएगी।
खरमास की समाप्ति और शुभ कार्यों की
शुरुआत है मकर संक्रांति।मकर संक्रांति के दिन से ही घरों
में शादी-ब्याह, मुंडन और नामकरण जैसे शुभ कार्य शुरू हो जाते हैं। साथ ही इस दिन तिल और
गुड़ से बने लड्डू और खिचड़ी हर घर में बनते हैं। मान्यता है
कि मकर संक्रांति के दिन ना सिर्फ तिल खाया जाता हैं बल्कि इन्हें पानी में डालकर
स्नान भी किया जाता है।
मकर संक्रांति से अग्नि तत्त्व की शुरुआत
होती है और कर्क संक्रांति से जल
तत्त्व की। इस समय सूर्य उत्तरायण होता है। इस समय किए जप और दान का फल अनंत गुना
होता है।
जानें तिल का क्यों है इतना महत्व : पहले हम आपको पौराणिक कथा के माध्यम से बताते हैं।
पौराणिक कथा : इसके अनुसार शनि देव को
उनके पिता सूर्य देव पसंद नहीं करते थे। इसी कारण सूर्य देव
ने शनि देव और उनकी मां छाया को अपने से अलग कर दिया। इस बात से क्रोध में आकर शनि
और उनकी मां ने सूर्य देव को कुष्ठ रोग का श्राप दे डाला।
पिता को कुष्ठ रोग में पीड़ित देख यमराज
(जो कि सूर्य भगवान की दूसरी पत्नी संज्ञा
के पुत्र हैं) ने तपस्या की। यमराज की तपस्या से सूर्यदेव कुष्ठ रोग से मुक्त हो
गए। लेकिन सूर्य देव ने क्रोध में आकर शनि देव और उनकी
माता के घर 'कुंभ' (शनि देव की राशि) को जला दिया। इससे
दोनों को बहुत कष्ट हुआ।
यमराज ने अपनी सौतेली माता और भाई शनि को
कष्ट में देख उनके कल्याण के लिए पिता सूर्य
को समझाया। यमराज की बात मान सूर्य देव शनि से मिलने
उनके घर पहुंचे। कुंभ में आग लगाने के बाद वहां सब कुछ जल गया था, सिवाय काले तिल के अलावा। इसीलिए शनि देव
ने अपने पिता सूर्य देव की पूजा काले तिल से की। इसके बाद सूर्य देव ने शनि को
उनका दूसरा घर 'मकर' मिला।
तभी से मान्यता है कि शनि देव को तिल की
वजह से ही उनके पिता, घर और सुख की प्राप्ति हुई, तभी से मकर संक्रांति पर सूर्य देव की
पूजा के साथ तिल का बड़ा महत्व माना जाता है।
आइये अब आपको बताते हैं...
Scientifically benefits
मकर संक्रान्ति के मौकै पर तिल और गुड़
के लड्डू खाए जाते हैं। ये ना सिर्फ खाने
में स्वादिष्ट होते हैं बल्कि यह कई गुणों से भी भरपूर होते हैं। तिल में भरपूर
मात्रा में कैल्शियम, आयरन, ऑक्जेलिक एसिड, अमीनो एसिड, प्रोटीन, विटामिन बी, सी और ई होता है। वहीं, गुड़ में भी सुक्रोज, ग्लूकोज और खनिज तरल पाया जाता है। जब इन दोनों
का combination मिलता है तो इस लड्डू के गुण और बढ़ जाते हैं।
1. सर्दी करे दूर
गर्म तासीर की वजह से ये लड्डू सर्दियों
में होने वाली दिक्कतों जैसे सर्दी-खांसी और जोड़ों में दर्द में आराम दिलाता है।
इसके साथ ही जिन लोगों को ज़्यादा ठंडी लगती है उनके लिए ये लड्डू बहुत फायदेमंद
होते हैं। इसे लगातार खाने से शरीर में गर्मी बनी रहती है और ठंड का लगना कम हो
जाता है।
2. पेट करे ठीक
अगर आपको कब्ज की परेशानी हो या खाने को
पचाने में दिक्कत आती हो तो रोज़ाना इन लड्डुओं को खाएं। जिन्हें तिल पसंद नहीं वो
लोग सिर्फ गुड़ खाने से भी इस परेशानी से राहत पा सकते हैं।
3. अस्थमा में दिलाए राहत
सर्दियां अस्थमा के मरीज़ों के लिए काफी
दिक्कत लेकर आती है. हवा में ऑक्सीजन की कमी और बढ़ता प्रदूषण उन्हें सांस लेने
में दिक्कत देता है। सर्दियों में
खांसी और कफ की वजह से भी सांस लेने में दिक्कत आती है। ऐसे में उनके शरीर को गर्म रखने के लिए और कफ को बाहर निकालने के लिए
रोज़ाना तिल के लड्डू असरदार साबित हो सकते हैं। आप चाहे तो इन लड्डुओं को दूध के
साथ भी ले सकते हैं।
4. जोड़ों में दर्द
रोज़ाना तिल के लड्डू का सेवन जोड़ों के
दर्द में बहुत राहत देता है। क्योंकि गुड़ और तिल में मौजूद आइरन जोड़ों को मज़बूत
बनाता है। आप इन लड्डुओं को रोज़ाना
रात को दूध के साथ खाएं। क्योंकि दूध की मदद से कैल्शियम और विटामिन डी भी आपको
मिलेगा, जो हड्डियों के लिए
और भी फायदेमंद होता है।
5. कमज़ोरी करे दूर
अगर आप हल्का-सा दौड़ने पर थक जाते हैं
या फिर सीढ़ियां चढ़ने से आपकी सांसे फूल जाती हैं तो ये लड्डू आपके लिए कमाल का
साबित हो सकता है। इन्हें
रोज़ाना खाने से शरीर छोटी-छोटी बीमारियों से बचेगा जिससे आपको एनर्जी मिलेगी।
नोट - इस लड्डुओं को गर्मी के मौसम में
खाने से बचें। शरीर में ज़्यादा गर्माहट
से आपको नाक से खून निकलना, चोट के वक्त खून का ज़्यादा बहना और हर वक्त गर्मी लगना जैसी दिक्कतें हो
सकती हैं।
भारत में मनाए जाने वाले सभी तीज त्यौहार
में किए जाने वाले रीति-रिवाज़ का बहुत महत्व होता है, हमारे ऋषि मुनि अत्यधिक गुणी थे, ज्ञान-विज्ञान में पारंगत थे। तिल और धूप की महत्ता वे जानते थे, यही कारण है, कि मकर संक्रांति में तिल के
लड्डू खाने और पतंग उड़ाने की रीत बनाई गयी।
शरीर में हड्डियों को मज़बूत रखने के लिए
दो चीजों कि अत्यंत आवश्यकता होती है, calcium और vitamin
D की। और आपको पता है, दोनों ही एक
दूसरे के पूरक हैं, अर्थात दोनों एक साथ होने से ही
सबसे अधिक लाभ होता है।
ये तो आप सभी को पता ही होगा, कि vitamin D का
एकमात्र स्तोत्र सूर्य की धूप है।
तो तिल से आपको बहुत अधिक calcium मिलेगा, और
धूप से vitamin D.
तो आइये सबसे पहले सूर्य देव की अर्चना
से दिन का प्रारम्भ करते हैं, उसके पश्चात तिल
गुड़ का भोग ग्रहण करके सूर्य देव की धूप का पतंग के साथ आनन्द व लाभ लें।
सूर्य देव
की पूजा अर्चना इस प्रकार की जाती है-
लाल फूल और अक्षत डाल कर सूर्य को अर्घ्य दें.
सूर्य के बीज मंत्र का जाप करें.
मंत्र होगा - "ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं सः सूर्याय नमः".
लाल वस्त्र, ताम्बे के बर्तन तथा गेंहू का दान करें.
मकर संक्रांति की हार्दिक शुभकामनाएँ