12 बज गए?
सदियों से सरदारों पर, बहुत से jokes बनाएं जाते हैं, किसी सरदार पर jokes बनाने और सुनाने में लोग जरा सा भी नहीं सोचते! एक सरदार पर joke बनाना लोग बेहद आसान समझते हैं।
कभी संता बंता के चुटकुले, कभी उन पर silly बातों को गढ़कर, या कभी यह कहकर, 12 बज गए क्या? उनका बहुत मजाक उड़ाया जाता है।
लेकिन फिर भी सिर पर पगड़ी और हाथ में कृपाण लिए ये सरदार बेहद खुश रहते हैं। उन्होंने अपने इस अपमान के लिए, कभी किसी का सिर नहीं फोड़ा।
पर कभी आपने सोचा है कि क्यों आखिर सरदारों पर ही इतने चुटकुले बनाए जाते हैं?
क्या, सचमुच 12 बजे, सरदार लोग अपने आपे में नहीं रहते हैं?
जी हाँ, नहीं रहते हैं, अपने आपे में...
और आज हम आपको बताते हैं इस जुमले के पीछे की पूरी हकीकत! और दावा है कि इसे पढ़ने के बाद इन पर चुटकुले बनाने वालों को शर्मिंदगी महसूस जरूर होगी, साथ ही सरदारों के सम्मान में अपना सिर झुकायेंगे।
बात सत्रहवीं शताब्दी की है जब भारत देश पर मुग़ल शासक नादिर शाह ने आक्रमण किया था। उसने दिल्ली को तबाह कर दिया था और लूट-मार का एक खौफनाक मंजर बन गया। उसकी सेना ने बड़े पैमाने पर नरसंहार किए। इस नरसंहार के बीच शाह की सेना ने कई सुंदर महिलाओं को बंदी भी बनाया।
कहा जाता है उसकी सेना ने लगभग 2 हजार महिलाओं को बंदी बना रखा था। इन महिलाओं की रक्षा के लिए, कोई आगे नहीं बढ़ रहा था।
ऐेसे में सिखों ने ही इन बंदी महिलाओं को नादिर शाह की सेना के कब्जे से आजाद कराने का फैसला किया था। मगर नादिर शाह की सेना बहुत बड़ी और ताकतवर थी। सिर्फ हौंसले के दम पर संख्या को हरा पाना मुमकिन नहीं था।
उस समय सरदार जस्सा सिंह, सिख सेना की कमान संभाल रहे थे। उन्होंने ही इस हमले की रणनीति बनाई थी।
गुरिल्ला युद्ध रणनीति अपनाते हुए सिखों ने देर रात 12 बजे शाह की सेना पर हमला कर उसे चौंका दिया।
हमला कर उन्होंने कई महिलाओं को आजाद तो करा लिया था लेकिन इस लड़ाई में कई सिख शहीद भी हो गए। सिखों को आधी रात 12 बजे महिलाओं को आजाद कराने में कामयाबी हासिल हुई थी।
लेकिन इस बात को इतिहास के पन्नों में इतनी जगह नहीं दी, कि लोग इसके बारे में ज्यादा जान सकें। वे नहीं चाहते थे कि सरदारों के शौर्य, पराक्रम व बुद्धिमत्ता का परिचय सम्पूर्ण विश्व को हो।
क्या, अब आप को कारण समझ आया कि क्या है, 12 बज गए में?
12 बज गए में है, उन सरदारों की वीरता
12 बज गए में है, उन सरदारों की शौर्यता
12 बज गए में है, उन सरदारों का हौसला
12 बज गए में है, उन सरदारों की निस्वार्थ सेवा
12 बज गए में है, उन सरदारों की बुद्धिमत्ता
12 बज गए में है, उन सरदारों की युद्धनीति
12 बज गए में है, उन सरदारों की जीत
12 बज गए में है, उन सरदारों की नारी सम्मान के लिए दी गई एक बड़ी कुर्बानी
12 बज गए में है, नादिरशाह की हार
12 बज गए में है, नादिरशाह की सेना का भय
जो जुनून सरदारों में तब था, वो आज भी है।
ऐसे वीरता और साहस के पर्याय सरदारों को '12 बज गए' कह कर उनका मजाक बनाना, उन्हें चिढाना, क्या बेहद शर्मनाक नहीं है?
तो अब जब आप इस बात को जान चुके हैं तो, शायद आगे से आप इस तरह के चुटकुले ना तो सुनाएंगे और नहीं किसी और को इस तरह की शर्मनाक हरकत करने देंगे, बल्कि उन्हें भी इस गौरवशाली इतिहास से अवगत कराएंगे।
बोले सो निहाल सत् श्री अकाल