House number 1303 (भाग-4) के आगे...
House number 1303 (अंतिम भाग)
सब सही कहते हैं कि वो घर मनहूस है, महा मनहूस.... उसके बाद उसने पलट कर नहीं देखा, बस पकड़ कर सीधे गांव निकल गया।
रमन की बातों से चौकीदार भी थर-थर कांपने लगा और अपने घर को निकल गया...
रमन के जाने के दो दिन बाद, महेश गांव से लौट आया...
महेश गांव से लौटते ही सीधे, रतन से मिलने पहुंचा। वहां उसने देखा, कमरा खुला पड़ा है और रतन वहां नहीं है, कमरे में सामान अस्त-व्यस्त है। बल्ब टूटा हुआ है, साथ ही रतन के सामान और कपड़े भी वहीं पड़े हुए हैं।
उसे समझ नहीं आ रहा था कि आखिर हुआ क्या, रतन कहां चला गया?
इसी उधेड़बुन में वो building के चौकीदार से टकरा गया।
चौकीदार बोला, अरे! महेश तुम्हारे दोस्त ने कल भूत देखा था और वो यहां से आनन-फानन भाग गया।
बल्कि वो जैसे बदहवास सा भाग रहा था, उसे देखकर मैं भी डर कर घर जल्दी चला गया।
अच्छा, यह बात है। मैं आज ही रतन से बात करुंगा, कि भूत - वूत तो कुछ नहीं होता है, कहकर महेश चला गया।
महेश घर आ रहा था, तो उसे उसका दोस्त कार्तिक बोला, अरे महेश तुम दो दिन से कहां थे?
गांव गया था...
अरे, दो दिन पहले दिल्ली में ऐसा भूकंप आया था कि उसने घर के सामान इधर-उधर कर दिए।
भूकंप! अच्छा... चल मैं तुझसे फिर बात करता हूं।
कहकर वो तेज़ क़दमों से आगे बढ़ गया।
उसने घर पहुंच कर रतन को फोन लगाया।
रतन ने फोन उठाया और महेश पर बरस पड़ा, खूब दोस्ती निभाई दोस्त, मुझे भूतों के बीच फंसाकर खुद गांव भाग गया...
नहीं रतन तूने मुझे ग़लत समझा, मेरे दादा जी, गुज़र गए थे, इसलिए मुझे आनन-फानन गांव जाना पड़ा।
ओह! हां, महेश, ऐसे में तो आनन-फानन ही जाना पड़ता है।
पर तू यह बता, तूने कौन से भूत देख लिए? क्या हुआ तेरे साथ, जो तू, अपना सामान तक यहां छोड़कर, कमरा खुला छोड़कर भाग गया?
अरे, तेरा वो महा-मनहूस 1303 वाला घर, जिसमें आगे 13 और पीछे 3, उसमें कल रात वही आए थे, जो वहां रहते हैं।
कौन रहते हैं? क्या पहेली बुझा रहा है? किसे देखा तूने वहां?
अरे भूत और कौन?
तुझे भूत दिखाई पड़े?
भूत कौन से दिखाई देते हैं, जो मुझे दिखते...
पर, मुझे भगाने के लिए, उनका तांडव जरुर दिखा।
तांडव! कैसा तांडव?
कल जब मैं सो गया था, तो पहले बल्ब टूटा, फिर सब सामान इधर से उधर सरकने लगे। बिल्ली के रोने की आवाज़ और भी जाने कैसी-कैसी भयानक आवाज़ें थी...
अच्छा अब मेरी बात सुन, पहले तो कोई नम्बर मनहूस नहीं होता है। यह सब वहम है...
दूसरा उस दिन भूकंप और आंधी-तूफान आया था, जिससे तुझे सारा कुछ लगा।, सामान इधर-उधर होना, तेज़ हवा के कारण, अजीबो-गरीब आवाज़, जानवरों को प्राकृतिक अपदा पहले समझ आ जाती है, इसलिए ही बिल्ली के रोने की आवाजें आ रही थी..
भूकंप, आंधी-तूफान...
हां 5 sec. के लिए भूकंप आया था... और उससे सिर्फ उस कमरे के सामान इधर-उधर नहीं हुए, बल्कि ऊपर वाली, जितनी भी मंजिलें थी, सबके सामान हिले थे।
ओह! एक तो हमारे गांव में भूकंप नहीं आता है,और ऐसा तो कभी नहीं आया कि सामान हिल जाए।
भैया माफ कर दो, हम लोगों की बातों में पड़कर, बेकार ही तुम्हारे घर को बदनाम कर दिए।
पर एक बात और बताएं, शहर आकर हमें एक और बात पता चली कि, जीवन को चलाने में जितना संघर्ष गांव में करना पड़ता है, शहर में उससे ज्यादा करना पड़ता है। साथ ही गांव में जो सुकून है, वो शहर में नहीं...
इसलिए हमारा सामान, गांव भिजवा देना, किसी के साथ, हम नहीं आएंगे अब शहर...
गांव में, अपने घर में जो सुख है वो परदेस में नहीं...
रतन की आंखें खुल चुकी थी कि मनहूस कुछ नहीं होता है, साथ ही गांव से और अपने घर से अच्छा कुछ नहीं...
रतन को महेश ने माफ़ कर दिया, और उसका सामान गांव भेज दिया, साथ ही यह भी कहा, तुम भाग्यशाली हो कि अपने गांव लौट गए...