ज़िन्दगी का पड़ाव (भाग -2) के आगे...
ज़िन्दगी का पड़ाव (भाग -3)
मैं नीचे के bathroom में ready हो जाऊंगा, तुम भी जल्दी आ जाना...
कहकर नीलेश नीचे चले गए और मैं बाथरूम में...
जल्दी जल्दी नहा तो मैं ली, पर साड़ी! हाय रे... पागल हो गई मैं, पर जितनी जल्दी कर रही थी मैं, उतना ही उसे सही से पहनना असंभव लग रहा था।
मां ने कितना कहा था कि ठीक से ready होना सीख ले, पर मेरी ही मति मारी गई थी, जो उनकी बात नहीं सुनी थी।
पर अब क्या? आज तो गई बारह के भाव...
तभी भाभी आ गई और उन्होंने झटपट मुझे ready कर दिया, और साड़ी तो इतनी अच्छी पहनाई कि मुझे खुद से ही प्यार हो गया, wow! क्या figure है मेरी...
अब खुद को निहारना बंद करें देवरानी जी, नीचे चलो, नहीं तो तुम्हारे साथ मैं भी नहीं बचूंगी।
अरे भाभी, आज तो आप ने बचा लिया, वरना मैं तो गई ही थी। बहुत बहुत धन्यवाद...
धन्यवाद तो नीलू भैया का करना, उन्होंने ही भेजा था, बहुत ध्यान रखते हैं वो हर छोटी बात का। वो जिसके साथ होते हैं, वो कभी जा नहीं सकता है...
भाभी के साथ मैं नीचे पहुंच गई और जल्दी से kitchen में भी...
तभी बुआ जी की फिर से कड़क आवाज़ सुनाई दी, बहुरिया हमारे जाने के पहले आएगी या हम ही ऊपर जाएं?
नीलेश, बुआ जी के पैर दबाते हुए बोले, अरे बुआ जी, लगता है आप ने बातों में ध्यान नहीं दिया, आप की बहुरिया तो रसोईघर में ही है।
ऐं... रसोईघर में? कब? अब इतनी भी हम बात नहीं कर रहे थे, कहकर बुआ जी, रसोईघर की ओर आगे बढ़ गई...
मैं रसोईघर में ही थी, हलवा भी लगभग बनने को तैयार था, यह सब देखकर बुआ जी प्रसन्न हो गई और शाम को खूब सारा प्यार, आशीर्वाद, और गहना कपड़े देकर चली गई।
बहू, बड़ा खुश होकर गई हैं जीजी, आगे भी ध्यान रखना।
मम्मी जी मुझे और मैं नीलेश को धन्यवाद दे रहे थे कि सब ठीक से हो गया।
Kitchen में हलवा, इतनी जल्दी कभी ना बनता, अगर मेरे आने से पहले सूजी भूनी हुई ना रखी होती, भाभी ने बताया था कि वो भी नीलू भैया...
दो दिन ससुराल में बहुत प्यार और सुख से गुज़रे, मम्मी जी सचमुच बहुत सुलझी हुई थीं।
हमारे इतनी जल्दी Bombay जाने की बात से भी उन्होंने कुछ नहीं कहा कि इतनी जल्दी क्यों जा रहे हो?
बल्कि हमारे जाने की खुद वो आगे से आगे बढ़कर तैयारी कर रही थीं।
मैंने कहा भी कि इतनी जल्दी नहीं जाना मुझे... तो वो बोली, अरे कोई बात नहीं, आते जाते रहना, हम तो यहीं हैं...
दो दिन बाद ही हम Bombay आ गए, और साथ ही बहुत सारी है, जिम्मेदारियां...
ज़िन्दगी अपनी रफ़्तार से चल रही थी, हम दो से चार हो चुके थे...
बहुत कुछ बदल चुका था जिंदगी में, हम दोनों ही बहुत व्यस्त हो चुके थे, मैं बच्चों में और नीलेश अपने काम में..
समय के साथ नीलेश...
पढ़ें ज़िन्दगी का पड़ाव (भाग -4) अंतिम भाग में
अंतिम भाग अवश्य पढ़िएगा, क्योंकि उसमें ही सार है..