निम्मी और राघवन different culture के हैं. दोनों love marriage करते हैं । जिसे दोनों के ही माँ-पापा पसंद नहीं करते हैं, और उनका रिश्ता divorce के कगार पर पहुँच जाता है, पर वहाँ जो जज था, वो उनका दोस्त था.
अब आगे.......
ना तुम चाहो ना हम (भाग- २ )
Divorce का case
अदालत तक पहुँच गया। वहाँ जो जज
था, वो निम्मी और राघवन के college
का friend था। उसे पता था, दोनों एक दूसरे को कितना प्यार करते थे।
उसने दोनों को अलग अलग examine किया और पाया दोनों में से कोई भी divorce नहीं चाहता था। फिर दोनों की family को भी अलग-अलग बुलाया, और वो समझ गया कि दोनों ही परिवार नहीं चाहते थे, कि निम्मी और राघवन एक हों।
उसने दोनों को अलग अलग examine किया और पाया दोनों में से कोई भी divorce नहीं चाहता था। फिर दोनों की family को भी अलग-अलग बुलाया, और वो समझ गया कि दोनों ही परिवार नहीं चाहते थे, कि निम्मी और राघवन एक हों।
उसने अब निम्मी और राघवन
दोनों को एक साथ बुलाया, और कहा, मैं जो कहूँ ध्यान से सुनना,
और उसे follow करने की कोशिश भी करना।
देखो निम्मी और राघवन,
तुम दोनों के parents इस शादी के खिलाफ थे। इसके ही कारण तुम लोगों की
शादी divorce तक पहुँच गयी है। और ज्यादातर love-marriage इसीलिए successful
कम होती हैं। जबकि arrange marriage ज्यादा टिकती है, क्योंकि उसमें parents का
उद्देश्य शादी को जोड़े रखना होता।
तो हमें क्या करना चाहिए?
पहले तो एक दूसरे को समझने की कोशिश को और बढ़ा देना होगा। दूसरा love marriage लोग कर तो लेते हैं, पर ये भूल जाते हैं, जिस तरह से arrange marriage में माँ-पापा का कर्तव्य होता है, कि उन्होनें जिन्हें
मिलवाया है, उन्हें सदा के लिए एक करवा दें।
वैसे ही love marriage करने वालों का ये कर्तव्य होता है,
कि वे अपने परिवार से अपने जीवनसाथी को इस कदर जोड़ दें,
कि उन्हें सिर्फ यही याद रहे कि हमारे बच्चे की choice सबसे
अच्छी है।
इसके लिए क्या करना चाहिए?
निम्मी और राघवन ने जज की बात बड़े ध्यान से सुनते हुए पूछा।
राघवन तुम्हें पता होगा,
तुम्हारी अम्मा को सबसे ज्यादा क्या पसंद है, वो तुम निम्मी को बताओ,
और निम्मी तुम उससे भागने की नहीं, उसे अपनाने की कोशिश करो। और यही काम निम्मी तुम्हें
भी करना होगा, तुम भी अपने पापा की पसंद राघवन को बताओ,
जो राघवन करे।
और इसके साथ ही तुम्हें
निम्मी की जो बात सबसे ज्यादा पसंद है, वो अपनी अम्मा को बताओ,
और इन दोनों के बीच सेतु का काम करो। और यही निम्मी तुम्हें राघवन और अपने पापा के
बीच करना है।
हमेशा सही का साथ दो,
मतलब जब तुम्हारा जीवनसाथी सही हो, उसका साथ दो और जब parents सही
हों, उनका साथ दो। पक्षपात मत करो। जब सब को पता होगा,
तुम सही का साथ देते हो, तब रिश्ते अपने आप सुलझ जाएंगे। पर कोशिश तुम
दोनों को ही हमेशा जोड़ने की करनी पड़ेगी, क्योंकि इस रिश्ते को जोड़ने की इच्छा तुम लोगों की
ही थी।
और हाँ,
जो सबसे जरूरी है, अपने बीच के मनमुटाव को जितने कम लोगों को बताओगे,
मनमुटाव उतनी जल्दी खत्म हो जाएगा।
अगर ऐसा कर पाये,
तो जो तुम दोनों चाह रहे हो, वही होगा। वरना ज्यादातर divorce के case में यही होता है। अलग होना ना तुम चाहो ना हम,
पर फिर भी अलग हो जाते हैं।
निम्मी और राघवन ने जज की कही बातों को पूरी तरह अपनाया, इसमें उन्हें थोड़ी मेहनत भी करनी पड़ी। पर मेहनत रंग लायी। दोनों ही परिवार एक
दूसरे को समझने लगे। निम्मी राघवन दोनों को अपने ससुराल में प्यार और सम्मान मिलने
लगा। फिर कभी ऐसी situation नहीं आई, जब उन्हें कहना पड़ा हो, ना तुम चाहो ना हम