क्यूँ नहीं वो स्वाद - (भाग -२)
अब तक आप ने पढ़ा,अनंत के घर खाना बनाने वाली खाना बनाती है, वो बहुत अच्छा खाना बनाती है, फिर भी अनंत को कुछ कमी सी लगती है..... अब आगे
रात को अनंत
माँ के कमरे में आ गया, और उनसे पूछने लगा। माँ
आप ने भी तो वही सब डाला था, जो कुंता
दीदी डालती है, तो स्वाद में अंतर
क्यूँ था?
माँ मैं कुछ
समझा नहीं? देख बेटा जब मैं आटा गुँधती
हूँ, तो
जो तुम्हें पानी दिखता है, वहाँ मेरा प्यार होता है, जिससे मैं आटा गूँध
रही होती हूँ।
जब सब्जी बनाती
हूँ, तब
मेरे मन में ये भाव रहते हैं इसे मेरा बच्चा खाएगा, तो ऐसी सब्जी बने कि वो उसे बहुत
ही स्वादिष्ट लगे। उसके लिए चूल्हे की मद्धम
आंच रखनी होती है और थोड़ी आंच अपने प्यार की
देनी होती है।
वो दो रोटी ज्यादा खा ले, पर भूखा नहीं रहे। और मेरा बनाया खाना ऐसा हो, कि इसे खाकर मेरा बच्चा सेहतमंद हो जाए। उसके लिए सही मात्रा में तेल मसाले डालेंगे। जो बच्चे को नहीं पसंद है, उसे नहीं डालेंगे।
वो दो रोटी ज्यादा खा ले, पर भूखा नहीं रहे। और मेरा बनाया खाना ऐसा हो, कि इसे खाकर मेरा बच्चा सेहतमंद हो जाए। उसके लिए सही मात्रा में तेल मसाले डालेंगे। जो बच्चे को नहीं पसंद है, उसे नहीं डालेंगे।
जबकि जो खाना बनाने
आती हैं,
वो इस सोच में आती हैं,
कि जल्दी से खाना बने,
और वो अपने घर जाएँ, अपने बच्चों
के पास। उसके लिए वो जल्दी जल्दी तेज़ आंच पर खाना बनाएँगी, उसके लिए वो ज्यादा तेल
मसाला डाल देती हैं।
उससे खाना जल्दी बन जाता है, उन्हें सेहत की कोई परवाह नहीं रहती। और अगर उनसे एक भी ज्यादा रोटी बनाने को बोल दो तो, वो तुरंत टाइम देखेंगी। अब और नहीं बना पाऊँगी, कल जल्दी आकर करती हूँ। और वो कल आए, ऐसा ये कभी नहीं चाहती हैं। अनंत को कुछ समझ आया और कुछ नहीं।
उससे खाना जल्दी बन जाता है, उन्हें सेहत की कोई परवाह नहीं रहती। और अगर उनसे एक भी ज्यादा रोटी बनाने को बोल दो तो, वो तुरंत टाइम देखेंगी। अब और नहीं बना पाऊँगी, कल जल्दी आकर करती हूँ। और वो कल आए, ऐसा ये कभी नहीं चाहती हैं। अनंत को कुछ समझ आया और कुछ नहीं।
आज माँ को लेकर नीति हॉस्पिटल गयी थी। मैं घर पहुंचा,
तो पाया, आज कुंता दीदी नहीं आयीं थी।
फोन किया तो, वो बोली साहब, आज सिर्फ
आपका ही खाना बनना है, माँजी और मेमसाहब तो वहीं
खाएँगी, आप
मेरे घर से खाना ले जाइए। आज मेरा मुन्ना बीमार है। रहने दीजिये, मैं मैनेज कर लूँगा।
अरे साहब, आज
हम गरीबों के घर का ही बना खा लीजिये, मैंने आपके लिए भी बना
लिया है।
मैं वहाँ से
खाना ले कर आ गया। आज के खाने में माँ के हाथ जैसा ही स्वाद था। मुझे बहुत गुस्सा आ रहा था, कि ऐसा खाना
ये घर में क्यूँ नहीं
बनातीं हैं। उनके घर से ज्यादा अच्छे तेल-मसाले और सब्जी हम देते
हैं।
तभी माँ भी आ गईं।
क्या हुआ? तू इतने गुस्से में
क्यूँ है? माँ
आप खाना खाइये, आज मैं कुंता दीदी के
घर से खाना लाया हूँ। इसमें बिलकुल आपके हाथ जैसा ही स्वाद है।
होगा ही बेटा, वो खाना उन्होंने अपने
बेटे के लिए जो बनाया
है, तो
वो उसी भाव में बना होगा जिसमें मैं तुम्हारे लिए बनाती हूँ।
आज समझ
आया, कि माँ क्या
समझा रहीं थीं। माँ के हाथ के खाने जैसा स्वाद क्यूँ नहीं आता है। वैसे भी
जहाँ भी प्यार होगा, वहीं संतुष्टि और तृप्ति रहेगी।