गर्मियों की छुट्टियों में रद्दी वाले का आना और घर से तमाम चीज़ें ले जाना, याद दिला देता है, गुज़रा ज़माना, आज उसी को याद कर, चंद पंक्तियाँ लिखीं हैं...
कितनी कहानियाँ ले गया...
किसी का बचपन,
किसी की जवानी,
किसी का बुढ़ापा ले गया
रद्दी वाला आया,
और घर से
कितनी कहानियाँ ले गया.....
वो पहला खिलौना,
जो मेरा बचपन था सलौना
वो पहली साइकिल,
जो सौगात में दी थी नानी ने
जो ख़ज़ाना था मेरा,
वो कौड़ी के भाव ले गया।
किसी का बचपन,
किसी की जवानी,
किसी का बुढ़ापा ले गया
रद्दी वाला आया,
और घर से
कितनी कहानियाँ ले गया.....
जिन किताबों ने हमें बहुत ज्ञान दिया था,
जिसके कारण समाज ने
बहुत सम्मान दिया था
उन किताबों को जिल्द से
अलग कर मानों,
बेदाम ले गया।
किसी का बचपन,
किसी की जवानी,
किसी का बुढ़ापा ले गया
रद्दी वाला आया,
और घर से
कितनी कहानियाँ ले गया.....
गुलाबी कागज़ पर लिखे
वो दिल के किस्से,
जिनकी बदौलत आप का
साथ आया था मेरे हिस्से।
उन कागजों की रंगत
वो सरेआम ले गया।
किसी का बचपन,
किसी की जवानी,
किसी का बुढ़ापा ले गया
रद्दी वाला आया,
और घर से
कितनी कहानियाँ ले गया.....
वो दादा जी का
टूटा हुआ चश्मा,
जिसने उन्हें तर्जुबा
तमाम दिया था,
ता जिंदगी बहुत
आराम दिया था।
उनके अनुभव का
साजों सामान ले गया।
किसी का बचपन,
किसी की जवानी,
किसी का बुढ़ापा ले गया
रद्दी वाला आया,
और घर से
कितनी कहानियाँ ले गया.....