अब तक आपने पढ़ा, पिया और रतन का विवाह हो जाता है, पिया को अपना मनचाहा ससुराल मिला। पर आये दिन रतन की job छूट जाने से सब की ज़िन्दगी में तनाव आ गया था, पर पिया ने हार नहीं मानी। अब आगे......
जीवनसंगिनी (भाग -३)
हम लोगों का परिवार teacher
का परिवार है तो business भी सोने-चाँदी का नहीं, अध्ययन
से जुड़ी चीजों का
ही होगा।
जिसका अनुभव, तुम्हें, मुझे और पिता
जी को भी है। तुम्हारे business
के लिए हम दोनों customer लायेगें, पिता
जी की जान पहचान भी हमारी
मदद करेगी, बस
तुम्हें जम के मेहनत
करनी होगी, जिसमे
तुम माहिर हो। और जहां
तक रही पैसों की बात, मेरे पिता जी सस्ते में ब्याज पर
पैसे दिलवा देंगे। जिन्हें हम चुकाएंगे। और हाँ पैसा भी अपनी जमा-पूंजी से
कम लेंगे। जिससे
घाटा होने पर हम उसे चुका भी पाएँ ।
पिया अपने मायके से मदद मांग कर, या सोने-चाँदी
की दुकान खुलवा कर रतन को हमेशा के लिए उन पर निर्भर होता नहीं देखना चाहती थी।जब सब, यहाँ तक
की रतन भी निराश हो
चुका था, तब
केवल वही थी, जिसे विश्वास था, कि
रतन एक न एक दिन सब के सामने अपने-आप को prove कर देगा।
रतन और पिया बहुत से schools, colleges, और shops में गए, जिससे
उन्हें पता चला कि उन्हें business
के लिए क्या समान
चाहिए, और कहाँ से माल उठाना होगा।
दोनों अपना business खड़ा
करने में जुट गए। पिया
सुबह कॉलेज निकल जाती, और
घर आते ही business के
लिए रतन का हाथ बंटाती। कभी रतन कमजोर पड़ता तो, वो उसमें दुगना
उत्साह भरने में लग जाती।
दिन रात की मेहनत रंग लाने लगी। रतन का business
चल निकला,
अब रतन में भी जोश बढ़ने लगा था।
उन लोगो ने अपने business का
विस्तार करना शुरू कर दिया था। अब रतन को पिया की मदद की आवश्यकता पड़नी बंद
हो गयी,
वो अब सारे काम बखूबी
करने लगा।
सब जगह
रतन के चर्चे होने लगे। पर रतन ये अच्छे से जानता था, और उसे इसे स्वीकारने में कोई झिझक नहीं थी कि ये सब
संभव हो सका है, तो केवल उसकी जीवनसंगिनी
की वजह से, उसके विश्वास और सहयोग ने ही
उसे ये मुकाम दिलाया था।