सोच
*समुद्र सभी के लिए एक ही है*
*पर...,*
*कुछ उसमें से मोती ढूंढते है*
*कुछ उसमें से मछली ढूंढते है*
*और*
*कुछ सिर्फ अपने पैर गीले करते है*
*ज़िदगी भी...समुद्र की भांति ही है*
*यह सिर्फ हम पर ही निर्भर करता है कि*
*इस जीवन रुपी समुद्र से हम क्या पाना चाहते है,*
*हमें क्या ढूंढ़ना है ?*
आज इन lines को पढ़ के लगा, क्या ज़िन्दगी को सब एक ही तरह से जी सकते हैं?
नहीं हमें ऐसा नहीं लगा।
चलिए देखते हैं, एक ही व्यक्ति के लिए, जो इन lines से प्रेरित हो कर अपना ध्येय मोती ढूंढ़ना बना लेता है।
मोती अर्थात सर्वश्रेष्ठ।
पर सर्वश्रेठ है क्या? चलिए इस विषय में सोचते हैं।
अगर इंसान को भूख लगी है, तब वो मोती ले कर क्या करेगा? या पैर गीला करके क्या करेगा ?
उस समय उसे सर्वश्रेठ मछली ही लगेगी, क्योंकि वही एक मात्र है, जो उसकी भूख मिटाएगी।
अब चलते हैं, यदि मनुष्य बहुत अधिक थका हुआ है, या बहुत अधिक गर्मी लग रही हो, या पैर जल रहे हों, तो उस समय पैर गीले करने से श्रेष्ठकर उसे कुछ प्रतीत नहीं होता है। ना तो मोती ना ही मछली।
यदि आप सब चीज़ों से तृप्त हैं, और आपको श्रृंगार की आवश्यकता है, तब सबसे प्रिये मोती ही प्रतीत होगा। मछली या पैर भीगना कहीं भी स्थान नहीं पाएंगे।
कहने का आशय यह है, कि आप किसी को भी श्रेष्ठ नहीं कह सकते हैं, क्योंकि श्रेष्ठ की परिभाषा तो परिस्थिति निर्धारित करती है।
तो ये कहना भी कहाँ तक उचित है, हम जो चाहे वो, अपनी जिंदगी में पा सकते हैं।
सब तो ईश्वर द्वारा रचित है, और निर्धारित भी।
तब हमे परिस्थिति के अनुसार ही कर्म करने चाहिए।बस ध्यान सिर्फ इतना रखना चाहिए, कि हमारे द्वारा जानते बुझते किसी का अनिष्ट नहीं होना चाहिए, किसी का दिल नहीं दुःखना चाहिए, और न ही किसी का अपमान होना चाहिए। क्योंकि बस यही है, जो ईश्वर माफ नहीं करता।
बाकी आप कर्म कीजिये, शेष ईश्वर पर छोड़ दीजिये। अगर आपका ईश्वर पर विश्वास है, और आपका मन साफ है, तो स्वयं ईश्वर आपको उचित करने की प्रेरणा देंगें।
यह हमारी सोच है, कदापि आपकी इससे पूर्णतः भिन्न हो, कृपया अपने विचारों की अभिव्यक्ति अवश्य व्यक्त करें।