Sunday 12 August 2018

Story Of Life : रत्ना

रत्ना


रत्ना retired  मेजर खुशवंत सिंह की लाली पोती थी। चुलबुली, मनमोहिनी मासूम सी रत्ना को देशभक्ति तो दादा जी से विरासत में मिली थी। दादा जी की तरह रत्ना में भी देश के लिए मर मिटने का जज्बा कूट-कूट के भरा था और उन्हीं की तरह वो भी बहुत ही जोशीली और हिम्मत वाली थी।
एक दिन अपनी दोस्तों के साथ वो पहड़ियों में घूमने गयी थी, सभी photo ले रहीं थी
जोश जोश में रत्ना ज्यादा ही ऊंची पहाड़ियों की तरफ चली गयी। वो selfy ले रही थी, कि अचानक उसका पैर imbalance हो गया, और वो नीचे गिरने लगी, उसकी सारी दोस्तें चिल्लाने लगीं। तभी एक मजबूत हाथों ने रत्ना को थाम लिया।
वो एक गठीला नौजवान था, बिखरे हुए बाल, सूखे होंठ और फटे हुए कपड़ों में।
रत्ना ने उसको धन्यवाद दिया। और पूछा वो कौन है? यहाँ इस हालत में कैसे है?
जी, आप ने तो सवालों कि बौछार ही कर दी है। मैं राजन हूँ। मुसाफिर हूँ, थोड़ी दूर से आया हूँ। मेरा सारा समान किसी ने चुरा लिया है, दो दिन से कुछ खाने को नहीं मिला है।
रत्ना को उसकी बातें सुन कर तरस आ गया, फिर राजन ने उसकी जान भी बचाई थी, तो वो अपने आपको, राजन से साथ चलने को कहने से नहीं रोक पायी। राजन भी तुरंत मान गया, वैसे भी उसके पास कोई ठिकाना भी तो नहीं था।
रत्ना उसे अपने साथ घर ले गयी, और उसने दादा जी को बताया, कि कैसे राजन ने उसकी जान बचाई। और वो भी बताया, जो आपबीती राजन ने उसे बताई थी। फिर वो दादा जी से बोली, दादा जी मैंने ठीक किया ना, इन्हें अपने साथ ला कर?
दादा जी को अनजाने व्यक्ति पर एतबार नहीं था,....


क्या दादा जी रत्ना के इस तरह से राजन को घर ले आने से क्रोध से आग बबूला हो गए या उन्हे ठीक लगा?जानने के लिए पढ़ें रत्ना (भाग -2)