पड़ाव (भाग-1)... और
पड़ाव (भाग-2)... के आगे...
जब बहू मुझे parlour ले गयी, तब मुझे समझ नहीं आया, सारी जवानी तो बिना parlour के निकाल दी, तो आज क्यों? खैर बहू की इच्छा के आगे चुप रही।
जिस दिन anniversary थी, मैं पूजा-पाठ की तैयारी में जुट गयी, और इंतज़ार करने लगी कि पंडित जी आने वाले होंगे।
पड़ाव (भाग-2)... के आगे...
पड़ाव (भाग-3)
जिस दिन anniversary थी, मैं पूजा-पाठ की तैयारी में जुट गयी, और इंतज़ार करने लगी कि पंडित जी आने वाले होंगे।
पर मेरी सोच के विपरीत कोई पंडित नहीं आए। मन खिन्न हो गया, सास थीं, तो कम से कम कथा हो जाती थी, आज तो वो भी नहीं।
शाम को बहू मुझे फिर parlour ले गयी, जहाँ उसने मुझे दुल्हन सा
सजा दिया। कुछ समझ नहीं आ रहा था, आखिर इतनी साज-सज्जा क्यों?
सजा दिया। कुछ समझ नहीं आ रहा था, आखिर इतनी साज-सज्जा क्यों?
फिर मैं और बहू उस होटल में पहुँचे, जहाँ मेरे पति, बेटा, बेटी, दामाद और बहुत सारे मेहमान थे, वो भी जिनकी मैंने कभी कल्पना भी नहीं की थी।
सब उससे भी अच्छा था, जैसा मैंने पहली anniversary में कल्पना की थी।बहुत बड़ा cake, बिल्कुल फिल्मी set जैसी decoration, और सब से मिल रहा VIP treatment, बहुत सारी variety वाला menu, सब कुछ मेरी कल्पना से परे, मानों मैं सपनों की दुनिया में पहुँच गईं हूँ, कुछ पल तो मैं सपनों की
दुनिया में ही रही।
पर जब धरातल में लौटी, तो सोचने लगी, ऐसी 25 anniversary तो नहीं सोची थी मैंने।
पर बच्चों और पति का जोश और मुझे खुश करने की चाह ने चेहरे पर खुशी बरकरार रखी।
घर पहुँची, तो हमारा कमरा तो बेटे-बहू के कमरे से भी ज्यादा सुन्दर सजा था। ऐसा
तो तब भी ना सजा था, जब मैं नयी नवेली आई थी। बेटे और बेटी ने कान में धीरे से कहा, ये सब बहू ने सजाया है।
कब आ कर उसने किया, मुझे तो एहसास ही नहीं हुआ, हाँ याद आया, हमे खाने की table में बैठाकर हम लोगों की ज़िम्मेदारी बेटी को सौंप कर वो आधे घंटे के
लिए दिखी नहीं थी। शायद तब यहीं आई होगी।
बच्चों के सामने कमरा सजा देखकर मुझे इतनी लाज आई, कि बिना किसी के कहे, मैं अन्दर चली गयी।
पति जब अन्दर आए, तो...
कहानी का अंतिम भाग पढ़ें पड़ाव(भाग-4) में...