फिर माँ ने कहा, अरे शर्माइन, सब तुम ही बताओगी, या कुछ लड़की को भी बोलने दोगी?
क्षण भर सन्नाटा छाया रहा, फिर शर्मा आँटी बोलीं, बस यही कमी है, इस बच्ची में, यह बोल नहीं सकती है......
क्या! ........बोल नहीं सकती.....!
क्षण भर सन्नाटा छाया रहा, फिर शर्मा आँटी बोलीं, बस यही कमी है, इस बच्ची में, यह बोल नहीं सकती है......
क्या! ........बोल नहीं सकती.....!
मुझ पर और माँ पर गाज गिर पड़ी, यह क्या कहा आँटी ने.......?
माँ तो उन पर बिफर ही पड़ीं, क्या सोच कर आयीं थी, शर्माइन? किसी को भी मेरे बेटे के पल्ले बांध दोगी?.....
माँ के स्वर तो आग उगल रहे थे, पर मुझे तो, काटो तो खून नहीं था। मेरा दिमाग सुन्न
हो चुका था, यह मैंने कैसी इच्छा कर दी ईश्वर से?
अगले ही क्षण ईश्वर पर बहुत क्रोधित भी हुआ, कभी भी तो, इतनी जल्दी सुनते नहीं हैं, तो आज इतनी जल्दी क्यों सुन ली? काश, मैं इसी मुगालते में रहता कि मुझे सबसे हसीन लड़की से प्यार हुआ था, जो सबसे perfect थी।
आज जिस की इच्छा की थी, वो मेरी थी, फिर भी मैं आगे बढ़कर उसका हाथ नहीं थाम
पा रहा था।
वो बोल नहीं सकती थी, पर उसकी
आँखें बोल रही थी, “आपको तो मुझ से प्यार हो गया था। मेरे
इतने सारे गुण को छोड़कर, आपको भी मेरी कमी ही बड़ी लगी?
धिक्कार है! ऐसे प्यार को, जो बस एक
छोटी सी कमी से हिल गया, वो चली गयी,
हमेशा के लिए। साथ ही मेरी किसी से भी शादी करने की इच्छा भी साथ ले गयी।
उसके जाने के बाद मैं यह सोचने लगा, हम बिना कुछ आगे-पीछे का सोचे इच्छा कर बैठते हैं। फिर इच्छा पूरी ना हो, तब भी ऊपर वाले को कोसते हैं, और इच्छा अगर, ऐसे पूरी हो, तब भी ईश्वर से क्रोधित ही होते हैं।
माँ, यह कहते कहते
दुनिया से चली गयी, कि बेटा शादी कर ले। पर मन ने फिर किसी
से शादी करने की इच्छा जाहिर नहीं की, और दिमाग ने हिम्मत
नहीं दिखाई, कि विजया का ही हाथ थाम लूँ।