वरदान या श्राप
एक बार की बात है कि तीन मित्र थे। वे चाहते थे कि उन्हें ज़्यादा मेहनत ना करनी पड़े, पर उन्हें सभी सुख-समृद्धि मिल जाए।
एक दिन उनकी मुलाकात एक महात्मा से हुई। उन्होंने उन तीनों को कहा, ईश्वर से सर्वशक्तिशाली कोई नहीं है। अगर तुम लोग, पूरी आस्था और लगन से तपस्या करो और ईश्वर को खुश कर सको, तो तुम लोगों की मनोकामनाएं अवश्य पूर्ण होगी।
तीनों तपस्या में लीन हो गए। चंद महीनों की तपस्या के पश्चात, ईश्वर प्रसन्न हुए।
उन्होंने तीनों से कहा, मेरे पास तीन वरदान हैं, जिसको जो लेना हो, ले लो।
पहला - चारों तरफ बढ़िया खाना, खूब सारे लोग और सब लोग, चाह रहे हों कि तुम उनके पास रहो।
दूसरा - बढ़िया आलीशान कमरा, जिसमें पूरे time, AC चलता रहे और खूब सारे आदमी-औरत तुम्हारी सेवा करें।
तीसरा - तुम्हारे चारों ओर, सोना-चांदी, हीरे-जवाहरात हों।
पहला बहुत चटोरा था, उसने सोचा, खूब सारा खाना पीना और सब चाहें कि वो ही सब के पास रहे। मतलब खाना-पीना और शोहरत, यही तो चाहिए थी उसे। उसने झट बढ़िया खाना रहे, वो वरदान मांग लिया।
दूसरा बहुत आलसी था, उसने सोचा, दिनभर आराम और आदमी-औरत उसकी सेवा करें। उसकी, ऐसी ही ज़िंदगी की कामना थी। उसने झट दूसरा वरदान ले लिया।
तीसरा बहुत लोभी था, उसने सोचा कि यह दोनों मूर्ख हैं, जिसके पास सोना-चांदी, हीरे-जवाहरात सब हों, उसे किस बात की कमी? अच्छा हुआ, दोनों ने अपने-अपने दुर्गुणों के कारण, असली चीज़ नहीं मांगी और उसने खुशी-खुशी तीसरा वरदान ले लिया।
ईश्वर ने कहा, आज से ठीक चार दिन बाद, तुम लोगों की इच्छा पूरी हो जाएगी।
चौथे दिन, पहले मित्र को एक बड़े होटल में वेटर की नौकरी लग गई। उसके हर तरफ खाना-पीना था, खूब सारे लोग उसके चारों तरफ थे। सब उसे आवाज़ दे रहे थे और चाहते थे कि, सबसे पहले वो उनके पास आए।
काम बहुत ज़्यादा था, वो चक्करघिन्नी बना घूमता रहता, पर काम खत्म नहीं होता। उसे अपने खाना खाने का समय भी नहीं मिलता।
दूसरे मित्र का बहुत बड़ा accident हो गया, वो ICU में भर्ती हो गया। दिन भर बिस्तर पर लेटा रहता, पूरे time AC चलता और खूब सारे आदमी-औरत उसकी सेवा करते।
तीसरे मित्र को एक बहुत पुरानी बड़ी सी गुफा मिली, जहाँ सोना चांदी, हीरे जवाहरात सब थे। उसमें घुस तो वो गया, पर उससे बाहर निकलने का रास्ता उसे दिखाई नहीं दे रहा था।
वहाँ, उसके अलावा कोई नहीं था, खाना-पीना भी नहीं था।
कुछ दिन पश्चात तीनों ही मृत्यु को प्राप्त हुए। तीनों ईश्वर के पास गए और बोले कि हे ईश्वर, यह कैसा वरदान था?
ईश्वर बोले, जब भी तुम चटोरे, आलसी और लोभी बनकर कोई भी कामना करोगे। वरदान, श्राप में ही बदल जाएगा।
जब भी परिश्रम, लगन और निष्ठा से काम करोगे, तभी तुम्हें सुख समृद्धि और प्रसिद्धी का वरदान मिलेगा।
इन सब को पाने का कोई shortcut नहीं है। जिसकी intention गलत होती है, उसके लिए वरदान भी श्राप बन जाता है...