Sunday 9 September 2018

Story Of Life : जश्न

जश्न

रजत घर में सबका बहुत लाला था। वो था ही इतने अच्छे दिल वाला, जिम्मेदार इंसान, कि किसी को भी कुछ काम होता, अपना सुख-दुख बाँटना हो, किसी को राज़ बताना या छुपाना हो, कोई ज़िम्मेदारी सौंपनी हो या किसी को बहुत प्यार लुटाना हो, माँ-पापा, भाई–भाभी  सबको सबसे पहले रजत ही याद आता। इन सब की छोड़ दो, नाते-रिश्तेदार हों, या दोस्त हों, सबको ही तो रजत सबसे पहले याद आता था।
विवाह योग्य होने पर रजत ने बहुत सुंदर लड़की नेहा से शादी कर ली। पर उसी दिन से रजत की दुनिया बदलने लगी।
रजत को हमेशा यही एहसास रहता कि, नेहा ने उसकी खातिर ही अपना घर छोड़ के उसे अपनाया है। इसलिए वो हमेशा सबसे पहले उसका ही साथ देगा।
यह एहसास उसके अंदर इस कदर समाता चला गया कि, वो सही-गलत सब में हमेशा नेहा का ही साथ देने लगा। चाहे माँ-पापा हों या भाई-भाभी, अगर किसी के साथ भी नेहा की बात फँसती, तो हमेशा बाकियों को ही गलत ठहराता। जितनी बार बात बढ़ती, उसकी अपने लोगों से दूरी भी बढ़ती गयी। नौबत यहाँ तक पहुँच गयी, कि घर का बँटवारा हो गया।
माँ-पापा, भाई-भाभी साथ-साथ रहने लगे। जाहिर सी बात थी, जब माँ-पापा भाई-भाभी के साथ रहते थे, तो उनका ध्यान और प्यार भी भाई-भाभी की तरफ बढ़ने लगा, जो रजत को बहुत कचोटता
नेहा हमेशा यही कहती, ज़िंदगी-भर आपने जिन के लिए किया, उन्हें ही आपकी कोई चिंता नहीं रहती है, नेहा की ऐसी बातें रजत के मन में नश्तर की तरह चुभ जाती, पर वो ये कभी नहीं समझ पाता कि आखिर सब इतना बदल क्यों गए हैं? आखिर ऐसा भी क्या हो गया है? पर उसे ये कभी खयाल न आता कि शादी के बाद से उसने अपने आपको नेहा के इर्द-गिर्द समेट लिया है।
नेहा का धनाड्य परिवार था, वो आए दिन अपने मायके में चली जाती थी। रजत को भी वहाँ के कामों में ही उलझाए रखती थी। दोनों के इतना अधिक आने से उनका बेटी-दामाद वाला मान भी खत्म होने लगा। अब जिस तरह से रजत अपने परिवार वालों को सबसे पहले याद आता था, अपनी ससुराल वालों को याद आने लगा था। पर एक अंतर था, उसके परिवार में उसको सब मान के साथ काम बताते थे, अपने सुख-दुख में, अपने राज़ में शामिल रखते थे। वहाँ ऐसा नहीं था, अपने ससुराल में वो दुख, कष्ट परेशानी और काम में याद किया जाता था। पर, घर के राज़ और सुख में उसको साथ नहीं रखा जाता था।
एक दिन नेहा के पिता की बहुत बड़ी deal के लिए party को पैसे देने जाना था। इसका काम रजत को सौंपा गया। रास्ते में रजत का छोटा-सा accident हो गया। जिसके कारण वो पैसे देने देर से पहुंचा। तब तक party जा चुकी थी। रजत ने सारी बात नेहा को बता दी।
जब वो घर पहुँचा, तब तक नेहा के पिता को भी पता चल गया था कि रजत के देर से पहुँचने के कारण Party चली गयी थी। रजत के घर पहुँचते ही नेहा के पिता, भाई व माँ सबने रजत को बहुत खरी-खोटी सुनाई। नेहा वहीं चुपचाप खड़ी थी, ना तो उसने किसी को बोला कि रजत का accident हुआ था, इस कारण देर हो गयी थी, और ना ही रजत के दुखी होकर वहाँ से जाने में उसके साथ गई।
जब शाम को वो घर आई, रजत उसको सवाल भरी नजरों से देख रहा था। वो बोली मैं कैसे कुछ बोल सकती थी...


आखिर ऐसा क्या कारण था, कि सब कुछ जानते हुए भी नेहा ने रजत का साथ नहीं दिया था....... जानते हैं जश्न (भाग-2)  

Tip : How to reduce itchiness of itchy veggies

How to reduce itchiness of itchy veggies

There are some veggies which we are truly fond of; but as they cause itching in our throat, we need to compromise. If these tips are followed, then the itching sensation won't happen and you will be able to enjoy the tasty veggie.
  • The veggies should be peeled, properly,coz skin of these type of veggies gives more itching sensation
  • Before cooking, either fry or boil it.coz if the veggie remains even slightly uncooked ( sort of al-danté)it may give itching sensation.
  • If you like tangy flavour, you may add something tangy into it (like a bit of lemon juice, tomato,  tamarind pulp or amchur powder).it also reduces itchiness of the veggie.
  • These steps remove the itching tendancy from the veggies.

These tips can be used in Colocasia in masala gravy, Patra, etc.