इसमें मेरा क्या कसूर
आज मैं आपको अपनी कहानी
सुनाने जा रहा हूँ, मेरी कहानी को ज़रा मन से पढ़िएगा, बहुत दिल से अपनी बात कहने जा रहा हूँ। आज तक ये बात मेरे दिल में थी। पर
आप सब इतने अच्छे हैं, कि बात मन से बाहर आ ही गयी।
चलिये बात अपने जन्म से ही
शुरू करता हूँ।
माँ को प्रसव पीड़ा हुई, भरे पूरे खानदान का मैं पहला वारिस था। तो पिता जी के साथ साथ दादा जी, नाना जी, चाचा, ताऊ, फूफा, मामा, मौसा कुछ
अड़ोसी-पड़ोसी सब ही पहुँच गए अस्पताल।
जितना उस अस्पताल में सारे
मरीज़, डॉक्टर, और उनके सारे सहायक मिला कर नहीं थे, उससे बड़ी फौज तो पिता जी के साथ थी।
मेरा जन्म हुआ, जब नर्स ने पिता जी के हाथ में मुझे दिया, मुझे
देखते ही पिता जी चिल्ला उठे। हे भगवान!......
उनके इस कदर चिल्लाने से
पूरे अस्पताल में रोना-पीटना शुरू हो गया। पीछे खड़े, नाना जी, मामा, मौसा बड़ी हिम्मत कर के आगे आए, और सात्वना देते हुए बोले कोई बात नहीं, पहला ही तो
बच्चा है, लड़की हुई तो क्या हुआ, दूजा
लड़का हो जाएगा।
अब तो पिता जी और ज़ोर से चिल्लाये, अरे.... लड़का ही हुआ है, पर पूरा कोयला है। मेरी मधुर मुस्कान किसी ने नहीं देखी, बचे-खुचे लोगों ने भी
दुखी होना शुरू कर दिया। तभी दादा जी बोले, जाय दो गुड़ का
लड्डू टेढ़ा मिठो।
पर जी बात यहीं खत्म नहीं
हुई। मेरी माँ, वो तो सबसे अधिक सदमे में थीं, क्योंकि खुद तो वो दूध-मलाई सी गोरी थीं। और मैं......
उन्होंने माइकल जैकसन की फोटो
मेरे रूम में लगा दी। और भाईसाहब ठान लिया, जब उसकी माँ ने
गोरा कर लिया, तो मैं क्यों ना कर सकूँ।
और भाई जितना तो मुझे दूध
ना पिलाया गया, उससे ज्यादा तो मुझ पर बादाम-दूध मल दिया गया।
खाने को भी जो दें, सब सफेद। क्योंकि कहा जाता है ना, जैसा खाते हैं, वैसा ही होता है, अररररे नहीं नहीं मैं उसकी बात नहीं
कर रहा हूँ। सिर्फ त्वचा!..... त्वचा तक ही रहें। यहाँ तक कि मुझे चाय, काफी तक पीने को नहीं दी गयी।
पर मैं वैसा का वैसा ही
रहा, काले का काला, और खाने के अभाव में दुबला-पतला भी। तो
लो जी तैयार हो गया, करेला वो भी नीम चढ़ा। अब मैं ऐसा हूँ, तो इसमें मेरा क्या कसूर?
भगवान जी भी विशेष मेहरबान थे
मुझ पर, तो बुद्धि का भी अभाव ही रहा। क्या करता, सारा ध्यान
तो मुझे गोरा होना है, इसी पर लगवाया जाता था।
आलम ये था जनाब, कोई लड़की मेरी तरफ देखती नहीं थी। कोई सामने से आ रही होती, तो रास्ता बदल लेती। मुझे देखकर कुछ तो अपने को दुपट्टे से छुपा लेती।
एक
दिन एक लड़की मुझे देखकर डर से सिमटी जा रही थी, उससे मैंने पूछ ही
लिया, मैं राक्षस दिखता हूँ क्या? वो बोली
नहीं, chain-snatcher। मैं तब समझा कि लड़कियां मुझे देखकर मुड़ क्यूँ जाती थीं? अब मैं ऐसा हूँ, तो इसमें मेरा क्या कसूर?
ये दुनिया तो ऐसी है, कि यहाँ रंग-भेद तो इस कदर है, कि भगवान को तक नहीं
छोड़ते, भगवान कृष्ण को ही लीजिये। कृष्ण का तो अर्थ ही है
काले, उनकी तुलना भी करते थे, कि ऐसे
“काले" जैसे वर्षा से भरे मेघ।
शायद कृष्ण जी भी चोर नहीं
थे, पर शायद गोकुल के सबसे काले बच्चे वही थे, तो जब
कोई भी चोरी होती थी, इल्जाम उन पर आ जाता होगा, चोरी भी तो सब सफ़ेद चीज़ ही होती थी ना, दूध, दही, मक्खन आदि।
पर आप ही देखिये महाभारत
हो या राधा-कृष्ण, किसी में भी उन्हें काला नहीं
दर्शाते हैं, सब में गोरे ही होंगे, या
बहुत हुआ तो नीला दिखा देंगे। क्योंकि हमारे यहाँ तो धारणा ही यही है ना, कि हीरो हमेशा गोरा होता है।
पर कृष्णा जी का समय तब भी
कितना अच्छा था, उन्हें कितनी गोपियाँ मिली हुई थीं, मेरे तो
उसमें भी लाले पड़े थे।
गोपियों की बात छोड़िए, मैं तो एक गोपी से भी काम चला लेता, पर यहाँ तो
बिल्कुल ही सूखा पड़ा था। अब मैं ऐसा हूँ, तो इसमें मेरा क्या कसूर?
शादी के लिए matrimonial में रजिस्टर कराया तो, वहाँ भी वही हाल था, cream तो NRI ले जाते हैं।
उसके बाद जो अच्छी वाली हैं, उन्हें दोनों "I" ले जाएंगे, IIT और IIM, हम जैसों का तो number ही नहीं आएगा।
पूरे पाँच साल हो गए, अब तो उन लोगों ने मुझे सम्मानित भी कर दिया था। उनके matrimonial में आज तक कोई इतने दिन तक मेम्बर नहीं रहा था। या तो लोगों की शादी हो
जाती थी, या दुखी होकर लोग आत्महत्या कर लेते थे।
मुझे सम्मानित करने के साथ साथ ही upgrade भी कर दिया गया। 2 matrimonial के लिए।
मुझे सम्मानित करने के साथ साथ ही upgrade भी कर दिया गया। 2 matrimonial के लिए।
वहाँ मैंने देखा, कुछ जाने-पहचाने नाम भी मिले, जी हाँ, ये वो नाम थे, जिन्होंने मुझे पाँच साल पहले reject कर दिया था।
उनकी शादी हो गयी थी, बच्चे हो गए थे, और वे divorce भी ले चुकीं थीं। पर हद है, अब भी रिजैक्ट ।
अब मैं ऐसा हूँ, तो इसमे मेरा क्या कसूर?
मैं तो आज भी गा रहा हूँ,
" हम काले हैं तो क्या हुआ दिल वाले हैं....... "
मैं तो आज भी गा रहा हूँ,
" हम काले हैं तो क्या हुआ दिल वाले हैं....... "
Disclaimer : यह कहानी एक कल्पना मात्र
है, आप सबको हास्य व्यंग्यात्मक कहानी के जरिए हँसाने की कोशिश की है। किसी को किसी भी तरह की चोट पहुँचाने का इरादा नहीं है।
आप सब से अनुरोध है, किसी के complexion पर उन्हें इस तरह से हेय मत समझे। क्योंकि वो ऐसा है, तो इसमे उसका क्या कसूर? गुणों के लिए वो जिम्मेदार है, रंग, रूप के लिए नहीं।
आप सब से अनुरोध है, किसी के complexion पर उन्हें इस तरह से हेय मत समझे। क्योंकि वो ऐसा है, तो इसमे उसका क्या कसूर? गुणों के लिए वो जिम्मेदार है, रंग, रूप के लिए नहीं।
इंसान को उसके complexion से नहीं उसके गुणों से अपनाएं।कोयले की खान से निकलने वाला हीरा ही सबसे बहुमूल्य होता है।
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