समस्या: खिलौने बहुत तोड़ता है।
कहानी:तोड़ने
का नतीजा।
राजू अपने माँ-पापा का अकेला बेटा है।
उसके पापा उसके लिए बहुत खिलौने लाते थे। पर कुछ ही दिन बाद राजू के सारे खिलौने
टूट जाते थे, क्योंकि वो खिलौनों से ना तो ठीक से खेलता था और ना ही ठीक से रखता था।
एक बार गर्मी की छुट्टी में वो अपने माँ-पापा
के साथ अपने मामा के यहाँ गया। उनकी बेटी स्नेहा के साथ उसे बहुत मज़ा आया। क्योंकि उसका घर ढेर सारे अच्छे-अच्छे खिलौनों से भरा हुआ था। और
तो और उसके सारे खिलौने बहुत अच्छे से रखे थे और स्नेहा उनसे खेलती भी अच्छे से थी।
दोनों बच्चे दिन भर खेलते, और जब थक जाते तो स्नेहा सारे खिलौने संभाल के रख देती।
कुछ दिन बाद राजू अपने घर आ गया, पर उसकी खिलौने तोड़ने और ठीक से ना रखने की आदत नहीं छूटी।
एक साल बीत गया और अगली छुट्टी में भी वो मामा के यहाँ जाने की ज़िद करने लगा। उसे याद था कि उसने
पिछले साल कितने मज़े किए थे।
अबकी बार तो स्नेहा के पास पहले से दोगुने खिलौने थे, ये देख कर राजू चौंक गया।
उसने अपने माँ-पापा से कहा कि देखिये
मामा जी स्नेहा को कितने खिलौने दिलाते हैं! मैं पिछले साल
आया था तो भी कितने सारे खिलौने थे अबकी तो और भी ज़्यादा हैं। राजू की ये बात उसके
मामा भी सुन रहे थे। उन्होने राजू को बुलाया और बोले “बेटा ध्यान से देखो कि आधे से ज़्यादा
खिलौने क्या वही नहीं हैं जिनसे तुम पिछले साल खेले थे? असल में बात ये है कि स्नेहा
अपने खिलौनों से अच्छे से खेलती है और फिर उन्हें संभाल के रखती है। वैसे जितना मैं जानता हूँ कि तुम्हारे
पापा भी खिलौने कम नहीं दिलाते पर बात ये है कि तुम
उन्हे ठीक से नहीं रखते”।
अब राजू सोचने लगा “मामा तो ठीक ही कह रहे हैं कि पापा तो मुझे बहुत खिलौने दिलाते हैं पर गलती
मेरी ही है। अगर उसने भी स्नेहा कि तरह खिलौने ठीक से रखे होते तो आज उसके पास
स्नेहा से भी ज़्यादा खिलौने होते”। अब राजू को समझ आ गया था कि संभाल के रखने से ही सब-कुछ बढ़ता है।