आजकल नवरात्र चल रहे हैैं। पूरे भारत वर्ष में माता रानी की पूजा अर्चना, भजन कीर्तन चल रहे हैं।
पर क्या आप के मन में कभी आया कि कैसे हुआ दुर्गा माँ का जन्म?, क्यों माँ ने अपनी सवारी के रूप में सिंह को ही चुना? और क्यों नवरात्रि में कन्या पूजन से मां का आशीर्वाद मिलता है?
आज के विरासत के इस अंक में हम शारदीय नवरात्र पर्व के विषय में ही जानते हैं।
शारदीय नवरात्र
नवरात्र : नवरात्र यानी महाशक्ति की पूजा के 9 दिन, जिसमें देवी के 9 स्वरूपों की अराधना की जाती है।
हिंदू धर्म में नवरात्रि के पर्व का खास महत्व होता है। नवरात्र पर्व साल में दो बार आते हैं, चैत्र नवरात्र व शारदीय नवरात्र (जो अश्विन मास में पड़ती है)
दोनों ही नवरात्रि में माता रानी की पूजा अर्चना भजन कीर्तन होता है। लेकिन अश्विन माह में पड़ने वाली शारदीय या शरद नवरात्र का आम जनमानस के बीच प्रचलन अधिक है।
इस साल शारदीय नवरात्रि की शुरुआत 15 अक्टूबर 2023 से होने जा रही है और 24 अक्टूबर को विजयदशमी के साथ इसका समापन होगा।
नवरात्रि, शक्ति की अराधना का पर्व है. इसमें देवी के 9 स्वरूपों की पूजा होती है। हिंदू शास्त्र में मां दुर्गा के जन्म से लेकर युद्ध में विजय पाने तक उन्हें अनेक रूपों में बताया गया है।
नवरात्रि में नवदुर्गा यानी मां दुर्गा के 9 रूपों की पूजा का विशेष महत्व होता है. मां दुर्गा के इन रूपों को महाशक्ति कहा गया है। हिंदू धर्म शास्त्रों में मां दुर्गा के जन्म से लेकर महिषासुर से युद्ध और युद्ध में विजय पाने तक उनकी शक्ति को अनेक रूपों में परिभाषित किया गया है।
'या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता, नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:'
नवरात्रि की शुरुआत होते ही 9 दिनों तक घर, मंदिर और पूजा पंडालों में दुर्गा सप्तशती के इस मंत्र के जाप किए जाएंगे। देवी के इस मंत्र का अर्थ है- हे माँ! आप सर्वत्र शक्ति के रूप में विराजमान हैं, हे माँ अम्बे, आपको मेरा बारंबार प्रणाम है।
चलिए अब जान लेते हैं कि माँ दुर्गा का जन्म कैसे हुआ? क्यों इन्हें शक्ति भी कहते हैं?
कैसे हुआ देवी दुर्गा का जन्म?
हिंदू धर्म में देवी के कई रूप बताए गए हैं, लेकिन मान्यता है कि देवी का जन्म सबसे पहले दुर्गा के रूप में हुआ था।
राक्षस महिषासुर का वध करने के लिए माँ दुर्गा का जन्म हुआ था, इसलिए माँ दुर्गा को महिषासुर मर्दिनी भी कहा जाता है।
पौराणिक कथा के अनुसार, राक्षस महिषासुर का अत्याचार देवताओं पर खूब बढ़ गया था। उसने अपनी शक्तियों से देवताओं को परेशान करना शुरू कर दिया. इतना ही नहीं महिषासुर ने देवताओं के स्वर्ग पर कब्जा कर लिया। ऐसे में सभी देवता परेशान हो गए और समस्या के समाधान के लिए त्रिदेव के पास गए।
महिषासुर, सृष्टिकर्ता ब्रम्हा का महान भक्त था और ब्रम्हा जी ने उन्हें वरदान दिया था कि कोई भी देवता या दानव उस पर विजय प्राप्त नहीं कर सकता।
अब समस्या यह आयी कि जब कोई भी देवता या दानव महिषासुर का वध नहीं कर सकता तो उस पर विजय कैसे पाई जाए?
तब ब्रह्मा, विष्णु और शिव ने अपने शरीर की ऊर्जा से एक आकृति बनाई और सभी देवताओं ने अपनी शक्तियां उस आकृति में डाली। देवताओं की शक्तियों से दुर्गा का जन्म हुआ। जिसकी छवि बेहद सौम्य और आकर्षक थी और उनके कई हाथ थे। देवताओं की शक्ति से जन्म होने के कारण ही इन्हें शक्ति कहा गया।
दुर्गा में सभी देवताओं की शक्ति थी. इसलिए ये सर्वशक्तिमान हुईं। भगवान शिव से उन्हें त्रिशूल प्राप्त हुआ, विष्णु जी से चक्र, बह्मा जी से कमल, पर्वतों के देव हिमावंत से वस्त्र, और इस प्रकार से एक-एक कर देवताओं से शक्ति प्राप्त देवी दुर्गा बनीं और महिषासुर से युद्ध के लिए तैयार हुईं।
अब जान लेते हैं कि, ऐसा क्या हुआ कि नवरात्र पर्व में नौ दिन पूजन किया जाता है?
नवरात्रि का पर्व 9 दिनों का ही क्यों?
कहा जाता है कि मां दुर्गा और महिषासुर के बीच 9 दिनों तक युद्ध चला था और दसवें दिन दुर्गा ने महिषासुर का वध कर दिया। इसलिए नवरात्रि का पर्व 9 दिनों तक मनाया जाता है और दसवें दिन विजयदशमी होती है।
हालांकि 9 दिनों तक नवरात्रि मनाए जाने को लेकर यह भी मान्यता है कि, महिषासुर से युद्ध के दौरान मां दुर्गा ने नौ रूप धारण किए थे. इसलिए 9 दिनों के नवरात्र में अलग-अलग दिन मां दुर्गा के इन 9 रूपों की पूजा की जाती है।
सभी देवी-देवताओं की अपनी अपनी सवारी है, जिसकी सबकी अपनी-अपनी विशेषता है। माता रानी की सवारी शेर है। पर सिंह ही क्यों है सवारी, आइए यह भी जान लेते हैं?
सिंह की सवारी क्यों करती हैं मां दुर्गा ?
मां दुर्गा का वाहन सिंह या शेर है और मां दुर्गा इसी की सवारी करती हैं। इसका कारण यह है कि सिंह को अतुल्य शक्ति से जोड़कर देखा जाता है।
जब माँ शक्ति स्वरूपा हैं तो सवारी भी वैसी ही होनी चाहिए, बस इसलिए ही सिंह उनकी सवारी है।
और मान्यता है कि, सिंह पर सवार होकर मां भक्तों के दुख और संसार की बुराई का संहार करती हैं।
नवरात्रि का व्रत पूजन, तब पूर्ण माना जाता है, जब कन्या पूजन किया जाता है, पर क्यों? आइए नवरात्रि में क्यों जरूरी है कन्या पूजन? यह भी जान लेते हैं।
कन्या पूजन का महत्व
नवरात्र पर्व में दुर्गा माँ ने नौ रुप धारण किए थे, जिसमें कन्या से लेकर दुर्गा माँ तक के रुप धारण किए थे। जो कि इस प्रकार हैं।
पहली शैलपुत्री, दूसरी ब्रह्मचारिणी, तीसरी चंद्रघंटा, चौथी कूष्मांडा, पांचवी स्कंध माता, छठी कात्यायिनी, सातवीं कालरात्रि, आठवीं महागौरी और नौवीं सिद्धिदात्री। ये मां दुर्गा के नौ रुप हैं।
नवरात्र में इन्हीं नौ रुपों की पूजा की जाती है और माँ के हर एक रुप के लिए एक कन्या मानी जाती है। इसलिए ही नवरात्रि में कन्या पूजन का विशेष महत्व है। इस दिन सभी शुभ कार्यों का फल प्राप्त करने के लिए कन्या पूजन किया जाता है। कुमारी पूजन से सम्मान, लक्ष्मी, विद्या और तेज़ प्राप्त होता है. इससे विघ्न, भय और शत्रुओं का नाश भी होता है। होम, जप और दान से, मां दुर्गा इतनी खुश नही होती जितनी कन्या पूजन से होती हैं।
नवरात्रि में 9 कन्याओं की पूजा की जाती है, जिसकी आयु 2-10 वर्ष की होती है. इसे कन्या पूजन या कुमारी पूजन कहा जाता है. छोटी कन्याओं को देवी का रूप माना गया है। शास्त्रों में हर आयु की कन्या के महत्व के बारे में भी बताया गया है।
माता रानी व नवरात्र से जुड़ी और भी बातें हैं, जिन्हें आपको अगली नवरात्र में बताते हैं।
आज के लिए माँ के स्वरूप व नवरात्र की इन्हीं बातों के साथ, विराम लेते हैं...
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माता रानी आप की कृपा सदैव हम सब पर बनी रहे 🙏🏻🙏🏻