Thursday 14 September 2023

Poem : हिन्दी

हिन्दी अपनी ही लगती है, जैसे किसी प्रेम के रिश्ते से जुड़े हों, उसी भाव को उकेरती मिठास से भरी रचना

हिन्दी


हिन्दी है माँ सी सरल,

हिन्दी है सम्पूर्ण।

हिन्दी साहित्य के,

रस से है परिपूर्ण।


हिन्दी है पिता सी विस्तृत,

ज्ञान है इसमें अपार।

गूढ़ हो या हो सरल,

कुछ नहीं है इसके पार।


हिन्दी है बहन सी सरस,

प्रेम में डूबी हुई।

जिसने ना हिन्दी पढ़ी,

उसकी जिंदगी ना पूरी हुई।


हिन्दी है भाई सी प्रबल,

इसके रंग हज़ार।

तर्क कोई जो इससे करे,

निश्चय ही जाए हार।


हिन्दी है दोस्त सी निश्छल,

नहीं करे किसी से भेद।

ज्ञानी हो या अज्ञानी,

प्रेम से, सबको ले समेट।

 

हिन्दी भारत माता की, 

बहुत प्रिय संतान।

इसकी आन में ही,

भारत माँ का सम्मान। 


हिन्दी हममें बसी हुई,

हिन्दी में बसे हैं हम।

सर्वत्र इसका विकास करें,

यही प्रण लेते हैं हम।


जय हिन्दी जय भारत 🇮🇳 


आप सभी को हिन्दी दिवस पर हार्दिक 

शुभकामनाएं 🙏🏻💐 


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Short story: मौन प्रेम

मौन प्रेम  



चिराग और रुही की नई नई शादी हुई थी। विवाह के एक हफ्ते बाद ही रुही चिराग के साथ दिल्ली आ गई।

अपनी नई नवेली दुल्हन को चिराग जहां भर की खुशियां देना चाहता था। 

दोनों राशन की दुकान पर पहुंचे, दोनों को ही ना तो कीमत का अंदाजा था और ना इसकी समझ कि क्या चीज़ कितनी लेनी चाहिए। 

चिराग सोच रहा था कि सब कुछ कम कम लें, पर रुही सब कुछ ज्यादा लेना चाह रही थी, जिससे रोज़ रोज़ चक्कर ना लगाना पड़े।

कुछ कम कुछ ज्यादा सामान उन्होंने ‌‌‌‌‌ले लिया। रुही को काजू बहुत पसंद थे, तो वह उन्हें 1 kg. लेना चाह रही थी। पर चिराग 250 gm. से ज्यादा कैसे भी लेने को तैयार नहीं था। Finally बात 300 gm. में fix हुई।

घर लौट कर रुही जब सामान रखने लगी तो उसे लगा काजू 300 gm से ज्यादा हैं, शायद ½kg. वो बहुत खुश हो गई, पर उसने चिराग से कुछ नहीं कहा...

धीरे धीरे घर के सभी सामान इकट्ठा हो गए और जिंदगी रवानगी से चलने लगी। 

राशन के लिए, कभी चिराग ने mall या online के लिए कहा, पर रुही हमेशा उससे ही राशन लेती, जिससे पहले दिन लिया था, क्योंकि अब तो रुही, काजू खरीदे या ना खरीदे वो दुकानदार, सामान के साथ ½ kg. काजू जरुर रख देता था।

रुही को नहीं पता था कि वो ऐसा क्यों करता था, पर उसे दुकानदार का काजू रखना बहुत अच्छा लगता था। वो सोचती, जो बात कभी चिराग ने नहीं सोची, दुकानदार ने सोच ली। अब तो सारी जिंदगी यहीं से राशन लेना है।

कुछ साल बाद उन्होंने घर बदल लिया, जो दुकान से चार किलोमीटर दूर था, अब सब सामानों की दुकानें बदल गई पर नहीं बदली तो बस राशन की दुकान...

शादी को दस साल बीत गए, आज आते से ही चिराग ने बताया कि वो तुम्हारा राशन वाला कल हमेशा के लिए अपने गांव जा रहा है।

क्या! रुही की चीख निकल गई और आंखों से टप टप आंसू बहने लगे। फिर वो तेजी से कमरे के अंदर गई और चंद मिनटों में तैयार हो कर बाहर आ गई व घर से बाहर जाने लगी।

चिराग और बच्चों ने पूछा कि क्या हुआ?  कहां जा रही हो? 

वो बोली राशन वाले के यहां...

पर क्यों? चिराग ने आश्चर्यचकित हो कर पूछा...

तुम को कुछ भी कभी भी समझ आएगा? अभी तुम ने बोला ना कि वो हमेशा के लिए गांव जा रहा है...

ओह! तो क्या हुआ ? और कहीं से ले लेंगे राशन, उसमें क्या है?

तुम को कभी भी कुछ समझ नहीं आएगा, मैं होकर आती हूं, वहां से...

जब रुही वहां पहुंची तो राशन वाले ने तुंरत उसे एक काजू का पैकेट दे दिया।

पैकेट हाथ में लेते ही रुही की आंखें डबडबा गई। उसने कहा आप क्यों जा रहे हैं? यहां सब अच्छे से तो चल रहा था...

क्या कहें भाभी जी, हमारी बरसों पुरानी जमीन हमें कल ही वापस मिली है। वरना चिराग भैय्या को छोड़कर कौन जाता। बहुत ही अच्छे हैं वो...

किस मामले में अच्छे?

अरे वो ही तो हमारी ज़मीन दिलाने में मदद किए हैं, वरना हमारी तो सारी जिंदगी यहीं कट जाती, परिवार से दूर रहकर... उसकी आंखों से कृतज्ञता साफ झलक रही थी।

ओह! तो, यह सब चिराग का किया धरा है, रुही मन ही मन कुढ़ रही थी...

हमने तो चिराग भैय्या से अपनी पत्नी से प्यार कैसे करते हैं, वो भी ना... सीखा है उनसे, दुकानदार थोड़ा लज्जा से भरा हुआ बोला... 

प्यार और चिराग से... ऐसा भी क्या देख लिया?रुही ने चिढ़ते हुए बोला...

अरे भाभी जी, जब आप पहली बार आयीं थी, तब से लेकर आज तक आपको ½ kg काजू हमेशा देने के लिए वही तो बोले हैं और तो और उसके लिए हमेशा advance में पैसा भी दे देते थे।

अभी हमने एक दूसरे राशन वाले से भैय्या जी की पहचान करा दी है, वो आपके घर से ½ km. की दूरी पर ही है। भैय्या उसको भी काजू के लिए advance दें आए हैं।

यह बात सुनकर रुही को तो चक्कर ही आ गये... 

क्या?... मन ही मन वो अपने आप से बोल रही थी, और मैं दस साल राशन वाले को बहुत अच्छा समझकर यूं ही खुश होती रही। 

ठीक है भैया, आप जाओ गांव और अपने परिवार के साथ खुश रहो।

जिस तेजी से वो घर से गयी थी, उतनी तेजी से ही घर लौट आई...

क्या हुआ बड़ी जल्दी लौट आयी?

जल्दी कहां? पूरे दस साल लग गए, तुम्हारे मौन प्रेम को समझने में... 

सच पर आज जो लौटी, तो तुम्हारे साथ बिताए वो प्रेम के दस साल का एक एक पल जीकर आई हूं। आज ही मुझे एहसास हो रहा है कि कैसे तुमने, मेरी हर छोटी-बड़ी खुशी का मुझे बिना बताए, बिना जताए ध्यान रखा है। कभी सोच ही नहीं पाई कि एक दुकानदार मुफ्त में किसी को कुछ नहीं देता है।

यह तो कोई वो ही कर सकता है जो आपको आप से भी ज्यादा चाहता हो। जो आपको इसलिए खुश नहीं रखना चाह रहा हो कि बदले में उसे आपसे खुशी चाहिए।  

उसका मौन प्रेम, सिर्फ और सिर्फ आपको खुश देखना चाहता है, बिना किसी स्वार्थ के बदले... उसे तो आप से पलटकर प्रेम की चाह भी नहीं है... 

और मैं उस मूर्ख मृगनी सी प्यार की कस्तूरी सर्वत्र ढूंढ रही थी, जिसकी मदहोश करने वाली खुशबू उसके ही सबसे नजदीक थी। 

यह कहकर वो चिराग की बाहों में समा गई। उन दस सालों को पलों में समेटने के लिए।

चिराग तो रुही को सालों से प्रेम करता था मौन प्रेम, वो सब रुही की इच्छा का करता था, बस कभी जताता नहीं था। पर आज रुही को सच्चाई का एहसास हो गया था। और यह पल, उन दोनों के अमर प्रेम का पल था।

कुछ देर बाद ही, बच्चे खेल कर लौट आए, उनकी बाहर से आवाज़ें आने लगी, जिसे सुन चिराग और रुही दरवाजे की ओर बढ़ गये...