हमारे भारत वर्ष के हर क्षेत्र में आपको रत्नों का भंडार मिलेगा। आज आप को विरासत के अंतर्गत एक ऐसी महान विभूति के विषय में बताने जा रहे हैं, जो सिर्फ और सिर्फ भारत में होना संभव है।
एक ऐसी स्त्री के विषय में जिनकी सहजता की जितनी भी तारीफ की जाए कम है।
आज हम अध्यात्म और गुरु-शिष्य के सम्बन्ध को उजागर करने की कोशिश कर रहे हैं।
सहजो बाई
सहजो बाई, एक ऐसा नाम जो मिसाल है, शिष्य की। अगर आप के अंदर भी सहजो बाई जैसी आस्था और विश्वास भर गया तो ईश्वर तो स्वयं आप के द्वार पहुंँच जाएंगे।
सहजो बाई, चरणदास जी की अनन्य शिष्य थीं। उनकी अपने गुरु जी पर अटूट आस्था थी। वो मानती थीं, कि गुरु बिना जगत के कोई कार्य नहीं हो सकते हैैं, और ईश्वर प्राप्ति तो उनके बिना संभव ही नहीं है।
वह अपने गुरु जी से हमेशा कहती थीं कि एक बार उसके घर में पधारें, जिससे उसका घर पावन हो जाए, मंदिर बन जाए।
सहजो की इतनी अनुनय विनय को सुनकर, गुरु ने कहा कि, मैं आज तुम्हारे घर आ रहा हूंँ, तुम अपने घर जाओ और मेरे आने की व्यवस्था करो।
यह सुनकर सहजो अत्याधिक आनन्दातिरेक से भर गई। वो शीघ्र अतिशीघ्र अपने घर राजस्थान पहुंच गई और अपने गुरु के लिए व्यवस्था करने लगी। उसने गुरु के लिए आसन बुना, भोजन आदि की व्यवस्था की।
अब वो बहुत बेसब्री से अपने गुरु की प्रतीक्षा करने लगी।
चंद घंटे बीतने के बाद उसे दूर से गुरु जी आते दिखाई दिए।
उन्हें देखकर वो इतनी प्रसन्न हो गईं कि वो अश्रुपूरित हो गईं।
अभी गुरु नजदीक भी नहीं पहुंचे थे कि पूरा वातावरण तेजोमय हो गया।
सहजो ने देखा उस तेज़ में अति कान्तिमय स्वरुप प्रकट हो गया।
सहजो जब तक समझती कि वो कौन हैं? तब तक गुरु एकदम नजदीक आ गये थे और उस स्वरुप के आगे नतमस्तक हो गये।
हे प्रभु! आप यहांँ? मैं धन्य हो गया आपके दर्शन कर के।
प्रभु बोले, मुझे तो आना ही था।
सहजो घर के भीतर गई और लोटे में पानी भरकर लाई। उसने पहले गुरु के फिर प्रभू के पांँव पखारे।
अब आसन प्रदान का समय था, उसके पास एक ही आसन था। उसने गुरु को आसन प्रदान किया और ईश्वर को पंखा पकड़ा दिया और कहा हे प्रभु! आप मेरे गुरु को पंखा से हवा कीजिए, मैं शीघ्र अतिशीघ्र आप दोनों की जलपान व्यवस्था करती हूँ।
यह कहकर वो रसोई में चली गईं। गुरु बोले, हे प्रभु! यह मुझे पाप का भागी बनाएगी... आप आसन ग्रहण करें, मैं आपको पंखे से हवा करता हूंँ।
प्रभु बोले, मैं तुम्हारे लिए नहीं आया हूँ, बल्कि उसके गुरु के प्रति अटूट आस्था और विश्वास को देखकर, प्रसन्न होकर आया हूंँ।
मैं तो सहज ही उसको मिल जाता हूँ, जिसमें अटूट आस्था, विश्वास और प्रेम होता है।
और जिसका यह भाव अपने गुरु के लिए हो, उसे मुझे पाना निश्चित है।
गुरु तो वैसे भी ईश्वर से उच्च स्थान रखता है।
प्रभु ने अपनी बात समाप्त की और सहजो बाई जलपान के साथ आ गई।
उसने प्रभू से कहा, अब आप दोनों जलपान ग्रहण करें, मैं आप लोगों को हवा देने का कार्य करती हूँ...
चरणदास जी और ईश्वर ने जलपान ग्रहण किया। और अपने-अपने मार्ग पर चले गए।
सहजो अत्याधिक प्रसन्न थी, आज गुरु जी ने घर में पधार कर उसका घर पावन कर दिया, उसके घर को मंदिर बना दिया।
चरणदास जी प्रसन्न थे कि आज सहजो के कारण हरि दर्शन हो गए।
ईश्वर प्रसन्न थे सहजोबाई की भक्ति आस्था, श्रृद्धा और विश्वास देखकर।
सहजोबाई की बानी में उपलब्ध चंद रूढ़ियाँ...
सहजो कारज जगत के गुरु बिन पूरे नाहिं।
हरि तो गुरु बिन क्यों मिलैं समुझि देख मन माहिं।।
गुरु है चार प्रकार के, अपने अपने अंग।
गुरु पारस दीपक गुरु, मलयागिरि गुरु भृंग।।
सहजो गुरु ऐसा मिलै, मेटै मन संदेह।
नीच ऊँच देखै नहीं, सब पर बरसै मेह।।