इतनी जल्दी किस बात की
आज कल सोच किस तरफ जा रही
है, ना जाने
खुद की पढ़ाई के लिए समय चाहिए, job लगने के बाद settlement के लिए time चाहिए। शादी जल्दी
करनी नहीं है। 32-35 में जब शादी हो जाएगी, तब family बढ़ानी नहीं है।
एक
दूसरे को समझने के लिए,
understanding के लिए proper time चाहिए। उसमें भी 5-7 साल निकाल देंगे। मतलब 40-42 साल में parents बनेंगे। यानि आधी ज़िन्दगी, निकालने के बाद।
बस अब, time चाहिए वाली बात खत्म।
बच्चा बेचारा साल भर का हुआ नहीं, कि उसके लिए play school की खोज शुरू।
और दो साल से ज्यादा तो माँ-पापा से
झेला ही नहीं जाएगा।अरे भाई बहुत energetic है, बहुत active है, या कुछ बोलता नहीं
है। अब और time नहीं दे सकते इसके लिए, आखिर कब तक इसके लिए अपने सारे काम छोड़ कर घर बैठे
रहें, और माशा अल्लाह छोटे मियाँ पहुँचा
दिये जाएंगे play school॰
नहीं जी, इतने से काम नहीं
चलेगा। जहाँ school जाना शुरू हुआ नहीं कि कुछ ही दिनों में इन छोटे छोटे नौनिहालों पर लादना
शुरू किया जाएगा, अपनी महत्वाकांक्षाओं का बोझ। उन्हें पढ़ाई तो गधा बनकर
करनी ही है, साथ ही dance, music, games, abacus आदि से भी नहीं बक्शा जाएगा।
फिर जरा और बड़े हुए नहीं, कि दुनिया की tuition, वो कहाँ पीछा छोड़ने
वाली हैं। तो लीजिये जो दुनिया भर की extracurricular activities कराई जाती है। उनमें से किसी में अगर बच्चे का मन रम गया है, तो उसे दरकिनार करके
अब भागती हुई दुनिया का साथ देने के लिए दिन रात बस पढ़ो, पढ़ो, और पढ़ो। कभी भागते
भागते tuition, कभी भागते भागते घर।
फिर बच्चा अपनी ज़िंदगी कब जिये?
जिएगा, ना वो भी आपकी ही
तरह, उसके बाद सब कुछ late कर कर के।
आखिर हम सब कुछ balance करके क्यों नहीं चल सकते। पहले हमारे माँ-पापा की सही समय से शादी, फिर सही समय से ही
बच्चे, हो जाते थे। जिससे बच्चों को बचपन के लिए समय मिलता था।
अब शादी देर से, फिर बच्चे और देर से, पर बचपन ना
जाने कहाँ खो गया? क्योंकि फिर हम चाहते हैं, बच्चों का सारा settlement time से हो जाए।
क्या ऐसा नहीं हो सकता, सब कुछ समय से हो? किस बात की दौड़ है? जबकि सब होना समय से
ही है।
क्यों हम बच्चों पर इतना बोझ डालते जा
रहें हैं? क्यों उन्हें उनका बचपन जीने नहीं दे रहे हैं? किस बात की इतनी
जल्दी है?
ज्यादा अच्छा ना होगा, समय से पढ़ें, समय से नौकरी, समय से शादी, समय से बच्चे।
जिससे उनके होने के बाद कुछ समय उन्हें
भी अपने बचपने के लिए मिले। जिसके फलस्वरूप स्वस्थ, संतुष्ट, और सुदृन समाज का
गठन हो।
बच्चों को भी उनके होने का एहसास होने
दीजिये, इतनी जल्दी किस बात की है? उन्हें अपना बचपन तो
जीने दीजिये।