योग भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग है। यह भारत द्वारा विश्व को दिए कई बहुमूल्य खज़ानों और धरोहरों में से एक है। योग का शाब्दिक अर्थ है जुड़ना, और इसका उत्सव मानवता का उत्सव है।
इसे प्रधानमंत्री श्री मोदी जी ने अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के माध्यम से वैश्विक चेतना का विषय बनाया है। आज पूरी दुनिया न सिर्फ योग दिवस मना रही है, बल्कि योग को दैनिक जीवनशैली का अभिन्न हिस्सा मान चुकी है।
आज India's Heritage segment में इसी विषय में विचार करेंगे।
सर्वे सन्तु निरामया
जैसा कि भारतीय संस्कृति का मूल मंत्र है;
'सर्वे भवन्तु सुखिन:, सर्वे सन्तु निरामया…'
तो यह संभव कैसे है?
उसका ही सार है कि नित्यप्रति योग करें, योग करने से निरोगी रहेंगे और जब निरोगी रहेंगे तो सुखी भी रहेंगे।
कहा जाता है, 'योग: कर्मसु कौशलम्…'
अर्थात् यदि आप की जीवन शैली में योग एक अभिन्न अंग है, तो आप अधिक कुशलता से अपने कार्य को कार्यान्वित कर सकते हैं।
क. योग के प्रथम गुरू :
योग के प्रथम गुरू, देवों के देव - महादेव हैं। आपको बहुत जगह पद्मासन मुद्रा में यौगिक ध्यानस्थ शिव-मूर्ति भी देखने को मिल जाएंगी।
अगर अवतरण रूप में देखा जाए तो, ऋषि पतंजलि जी, को प्रथम गुरु माना जाता है, जो कि शेषनाग के अवतार हैं।
ख. योग और भारतीय ऋषि :
योग भारतीय ज्ञान की हज़ारों वर्ष पुरानी शैली है।
योग, प्राचीन भारतीय ऋषि-मुनियों और तत्त्व-वेत्ताओं द्वारा प्रतिपादित एक विशिष्ट आध्यात्मिक प्रक्रिया है, अर्थात विभिन्न ऋषियों ने बहुत पहले ही योग को कैसे किया जाए और उसकी सहायता से कैसे मोक्ष प्राप्त किया जाए, बता दिया था।
इन ऋषियों में, पतंजलि जी ने 'चित्त की वृत्तियों के निरोध' को योग कहा है। व्यास ने समाधि को ही योग माना है। योगवासिष्ठ के अनुसार योग वह युक्ति है जिसके द्वारा संसार सागर से पार जाया जा सकता है।
ग. योग के प्रकार :
योग के कई सारे अंग और प्रकार होते हैं, जिनके जरिए हमें ध्यान, समाधि और मोक्ष तक पहुंचना होता हैै।
'योग' शब्द तथा इसकी प्रक्रिया और धारणा हिन्दू धर्म, जैन धर्म और बौद्ध धर्म में ध्यान प्रक्रिया से सम्बन्धित है। योग शब्द भारत से बौद्ध पन्थ के साथ चीन, जापान, तिब्बत, दक्षिण पूर्वी एशिया और श्रीलंका में भी फैल गया है और इस समय सम्पूर्ण विश्व में लोग इससे परिचित हैं।
हिन्दू संस्कृति को सनातन बनाने में योग का विशेष स्थान है।
घ. योग शब्द का उल्लेख :
सबसे पहले 'योग' शब्द का उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है। इसके बाद अनेक उपनिषदों में इसका उल्लेख आया है।
ङ: हठयोग :
कठोपनिषद में सबसे पहले योग शब्द उसी अर्थ में प्रयुक्त हुआ है जिस अर्थ में इसे आधुनिक समय में समझा जाता है। माना जाता है कि कठोपनिषद की रचना 3rd century और 5th century B.C.E. के बीच में हुई थी।
पतञ्जलि का योगसूत्र योग का सबसे पूर्ण ग्रन्थ है। इसका रचनाकाल 1st century C.E. या उसके आसपास माना जाता है। हठ योग के ग्रन्थ 9th से लेकर 11th century C.E. में रचे जाने लगे थे। इनका विकास तन्त्र से हुआ।
जैसा कि आधुनिक काल में समझा जाता है, इसका क्या अर्थ है?
प्राचीन काल में योग साधना का मुख्य उद्देश्य, आध्यात्मिक था, मोक्ष प्राप्ति था, ईश्वर प्राप्ति था।
पर आधुनिकता काल में योग को हठयोग के रूप में लिया जाने लगा है, इसमें body fitness and relaxation को highlight करते हैं। इसके लिए विभिन्न आसन हैं, साथ ही different techniques भी use करते हैं।
स्वामी विवेकानंद को जब Europian countries में name and fame मिला, तब कुछ गुरुओं ने भारत के आधुनिक योग का प्रचार-प्रसार विभिन्न देशों में जाकर किया, जिसकी सर्वत्र प्रशंसा की गई और खुले दिल से अपनाया भी गया।
जिसकी विशेषता सम्पूर्ण विश्व जान रहा, मान भी रहा है। आइए, हम सब मिलकर अपने इस भारतीय धरोहर को मान प्रदान करते हुए उत्सव मनाते हैं।
जिससे; 'सर्वे भवन्तु सुखिन:, सर्वे सन्तु निरामया…'
हमारा पिछले योग दिवस का heritage segment भी अवश्य पढ़ें।, और अपनी भारतीय संस्कृति से जुड़ें - पतंजलि योग सूत्र का उद्भव: एक अनोखी कथा
जय हिन्द, जय भारत 🇮🇳