गुरु पूर्णिमा पर्व, विशेष क्यों?
गुरु पूर्णिमा पर्व है, गुरु का सम्मान करने का दिन, उनका आभार व्यक्त करने का दिन, अपना जीवन समर्पित करने का दिन और गुरु में ईश्वर के साक्षात्कार करने का दिन...
गुरु पूर्णिमा पर्व, हमारी भारतीय संस्कृति का विशिष्ट पर्व है, जिसकी महत्ता, हमारे जीवन में बहुत अधिक है।
सदियों पुरानी यह परंपरा, आज कुछ चंद जगहों पर ही पर्व के रूप में मनाई जा रही है। जबकि कितने तो ऐसे हिन्दू लोग भी हैं, जो इसके विषय में जानते तक नहीं हैं।
आज का हमारा यह लेख, आप को अवगत करायेगा, कि गुरु पूर्णिमा कब और क्यों मनाते हैं? गुरु की हमारे जीवन में आवश्यकता क्या है?
गुरु पूर्णिमा, कब और क्यों?
महाभारत के रचयिता कृष्ण द्वैपायन महर्षि वेदव्यास जी का जन्म आषाढ़ पूर्णिमा को लगभग 3000 ई. पूर्व में हुआ था। वे संस्कृत के प्रकांड विद्वान थे। उन्हें आदिगुरु भी कहा जाता है।
उनके सम्मान में ही हर वर्ष आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा मनाया जाता है। कहा जाता है कि इसी दिन व्यास जी ने शिष्यों एवं मुनियों को सर्वप्रथम श्री भागवत पुराण का ज्ञान दिया था।
बौद्धों में गुरु पूर्णिमा की आस्था :
एक अन्य किंवदंती के अनुसार, बोधि वृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्त करने के पांच सप्ताह बाद, भगवान बुद्ध, बोधगया से सारनाथ, उत्तर प्रदेश गए। वहां उन्होंने पूर्णिमा के दिन प्रवचन दिया। यही कारण है कि गौतम बुद्ध के अनुयायी उनकी पूजा करने के लिए इस दिन को गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाते हैं और आषाढ़ पूर्णिमा तिथि बौद्धों के लिए महत्वपूर्ण है।
गुरु और शिक्षक में अंतर :
हम सभी को शिक्षक दिवस तो पता है, हर साल, स्कूलों में यह दिन, हम अपने शिक्षकों के सम्मान में 5 सितंबर को मनाते हैं।
पर गुरु पूर्णिमा की विशेषता बहुत ही कम स्कूल में समझी जाती है।
अब आप के मन में सवाल उठ रहा होगा कि गुरु और शिक्षक में अंतर क्या होता है? दोनों ही तो ज्ञान देते हैं...
जी हांँ, दोनों ही ज्ञान देते हैं, पर गुरु और शिक्षक में, देखें तो सूक्ष्म अंतर है और सोचें तो बहुत बड़ा अंतर है। गुरु ज्ञान देता है, शिक्षक शिक्षण करता है।
गुरु-शिष्य की एक परंपरा है, जिसमे गुरु के पीछे जुड़कर शून्य या नगण्य (अ) भी विशिष्ट हो जाता है - गुरु +अ = गौरव।
शिक्षक तो शिक्षा के निमित्त (अर्थ) आए हर शिक्षार्थी के लिए शिक्षण का कार्य करता है।
गुरु क्यों आवश्यक हैं?
गुरु ही शिष्य का मार्गदर्शन करते हैं और वे ही जीवन को ऊर्जा मय बनाते हैं। जीवन विकास के लिए भारतीय संस्कृति में गुरु की महत्वपूर्ण भूमिका मानी गई है। गुरु की सन्निधि, प्रवचन, आशीर्वाद और अनुग्रह जिसे भी भाग्य से मिल जाए उसका तो जीवन कृतार्थता से भर उठता है। क्योंकि गुरु बिना न आत्म-दर्शन होता और न परमात्म-दर्शन।
अर्थात गुरु ही हमारा ईश्वर से साक्षात्कार कराते हैं, और इस नश्वर संसार के आवागमन से मुक्त करा के मोक्ष की प्राप्ति कराते हैं।
मनुष्य जीवन, का मुख्य उद्देश्य मोक्ष प्राप्ति ही है, ना कि मोह माया में उलझ कर काम और अर्थ की प्राप्ति करना। मोक्ष गुरु ज्ञान बिना असंभव है, अतः गुरु, हमारे जीवन की मूलभूत आवश्यकता है। तो सोचिए, जब गुरु मूलभूत आवश्यकता हैं तो गुरु पूर्णिमा पर्व, कितना ज्यादा विशेष है...
गुरु पूर्णिमा पर्व :
भारत के कुछ स्कूलों में बच्चे अपने गुरुओं के पैर छूकर और सम्मान के प्रतीक के रूप में उन्हें कुछ उपहार देकर इस दिन को मनाते हैं। गुरु पूर्णिमा कई साल पहले देश में सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक था।
हम सभी भारतीयों को प्रयास करना चाहिए कि भारत में गुरु पूर्णिमा, पुनः एक पर्व के रूप में प्रतिष्ठित हो।
कहा भी गया है
करता करे न कर सके, गुरु करे सो होए,
तीन लोक, नौ खंड में, गुरु से बड़ा ना कोए।
आप सभी को गुरु पूर्णिमा पर्व की हार्दिक शुभकामनाएंँ 💐
हे गुरुदेव, हम सब पर अपनी कृपा दृष्टि बनाएं रखें 🙏🏻🙏🏻