अब और नहीं
रीना के ससुर जी की आज ही अर्थी उठी थी, पूरे घर में गम का माहौल था। रीना को सबसे ज्यादा अपनी सास नन्दा की
चिन्ता सता रही थी।
उसकी सास बहुत ही भली औरत थीं। पूरे घर की ज़िम्मेदारी वो हँसते
हुए उठाए हुए थीं। घर में ससुर जी का कहा चलता था। उसकी सास का पूरा समय ससुर की
सेवा में जाया करता था। दिन उनके काम से शुरू और रात उनके काम के साथ ही खत्म हुआ
करती थी।
रीना ने अपने पति अमर से कहा, हम माँ जी को यहाँ छोड़ कर कैसे जाएंगे। उन्हें भी अपने साथ ले चलते हैं।
13 वीं होने के दूसरे दिन ही से सब जाने लगे। रीना
ने कहा, माँ
जी अमर की और छुट्टी नहीं हैं, हमें भी जाना
होगा। आप भी साथ चलिये।
नहीं रीना मैं यहीं रहूँगी, माँ जी ने आहिस्ते से कहा। क्यों माँ जी? अब तो
पापा जी भी नहीं हैं, किसका साथ रहेगा आपको?
नहीं चाहिए किसी का साथ। रीना ने गौर किया, जब से पापा जी गए थे। माँ, दुखी नहीं थीं, बल्कि बिल्कुल शांत-सी रह रहीं थी।
रीना ने आकर अमर को बताया, माँ जी ने साथ चलने से मना कर दिया है।
अमर ने कहा, मैं बात करूंगा।
ना जाने उसने माँ जी से क्या कहा? माँ जी ने packing शुरू कर दी थी, आखिर बेटे की बात कैसे टालतीं।
एक दिन रीना सुबह उठ कर आई, तो उसने full sleeves का कुर्ता डाला हुआ था। और एक
हाथ से ही नाश्ता बना रही थी।
माँ जी ने पूछा, क्या हुआ रीना, एक ही हाथ से क्यों काम कर रही हो?