Tuesday 17 December 2019

Story Of Life : पड़ाव (भाग-2)

पड़ाव (भाग-1) के आगे... 


पड़ाव (भाग-2) 



ज़िंदगी यूँ ही चलती रही, कभी मेरे मन की बातें भी होती रही। 

अब मैं युगल से परिवार में बदल चुकी थी। बच्चों के छोटे बड़े फैसले लेते हुए, वो ना जाने कब जवान हो गए। कभी अच्छे कभी बुरे पल आते रहे, ज़िंदगी अपनी करवटें लेती रही। 

एक दिन वो भी आ गया, जब मुझे अपने बच्चों के जीवन साथी ढूंढने थे। आज मेरा वो नज़रिया था, जो माँ का था, और बच्चे मेरी तरह सोच रहे थे।

मैंने उन्हें बहुत प्यार से उनकी नानी और अपनी बात समझाई, 
बेटी ने तो बात मन ली, और हमारी पसंद के लड़के से शादी कर ली। वो बहुत सुख से अपना जीवन जी रही है। पर बेटा अड़ गया, कि उसकी पसंद से अच्छी कोई नहीं है।

कुछ दिन तक बेटे-बहू ने शादी घसीटी, पर तीन साल में उनकी शादी ने दम तोड़ दिया। फिर बेटा मेरे पास आया, माँ आप सही कहती थी। अनुभव से बढ़कर कुछ नहीं।

कुछ साल बाद बेटे को भी हमारी पसंद की प्यारी सी लड़की 
मिल गयी, अब  बेटा-बहू दोनों बहुत खुश थे।

मेरी ज़िंदगी अपनी रवानगी से चल रही थी, मेरी पच्चीसवीं anniversary आने वाली थी।


मेरे पति को मेरी पहली anniversary की इच्छा याद थी। सास-ससुर तो अब थे नहीं उन्होंने बेटे-बहू से बात की। 

उन्हें मेरे मन के अरमान बताए, वे बोले माँ ने अपने मन की ना करके हमेशा हम सब के लिए किया है। 25वीं anniversary जिंदगी का बड़ा पड़ाव होता है, हमे खूब धूम से करना चाहिए।

मुझे बिना इस बात के भनक लगे, सबने मिलके बहुत बड़ा होटल book किया, काफी सारे लोगों को invitation दिया गया, ऐसा भव्य आयोजन मानों शादी ही हो।

जब बहू मुझे parlour ले गयी, तब मुझे समझ...... 

आगे पढ़े पड़ाव (भाग-3) में...