सच्चा सोना (भाग - 1) के आगे...
सच्चा सोना (भाग -2)
रतन खाना, खाकर संतुष्ट हो गया, आज उसे रुखी-सूखी रोटी भी बहुत स्वादिष्ट लग रहीo थी।
उसने रितेश से कहा, मैं कुछ देर सोना चाहता हूँ, क्या मैं जब तक यहांँ सो रहा हूँ। तुम यहाँ खड़े रहोगे?
रितेश, हकलाता हुआ सा बोला, जी.. जी...
रतन बोला, तुम परेशान ना हो, मुझे पता है तुम काम के लिए निकले हो, मैं तुम्हें आज का पूरा मेहनताना दूंगा।
रितेश, ने सोचा, जब मेहनताना मिलना ही है, तो कहीं और क्या जाना। कितने देर सोएगा? 1 से 2 घंटा...
भला आदमी घड़ी दो घड़ी आराम कर लेगा, तो चंगा हो जाएगा। उसमें मेरा क्या बिगाड़ जाएगा। वो राजी हो गया।
रतन, पेड़ के नीचे ही, गहरी नींद में सो गया...
सुबह से दोपहर, दोपहर से शाम हो गई और रतन सिंह सोता ही रहा, रितेश का सब्र जवाब देने लगा।
अरे... यह तो उठ ही नहीं रहा। शाम हो चुकी है, भूख भी लग रही है और मांँ भी इंतजार कर रही होंगी, इसे उठा देता हूँ। यह सोचते हुए, रितेश ने रतन सिंह को उठाने के लिए, उसे जोर से आवाज दी।
अरे, रतन सिंह जी, उठिए, सुबह से शाम हो चुकी है और आप सोकर नहीं उठे...
रतन सिंह, आंख मलते हुए बोला, शायद थोड़ा ज्यादा ही सो गया?
ज्यादा?.. सुबह से शाम हो गई है, मैंने आधा पेट खाना खाया था, तो मुझे भूख भी लग रही है और मेरी माँ इंतजार भी कर रही होंगी... रितेश सब-कुछ एक सांस में बोल गया।
माफ़ करना भाई, कहते हुए उसने, अपनी दो सोने की अंगूठियाँ, एक सोने का और एक हीरे का हार, रितेश को दे दिया।
यह किस लिए, सेठ जी... रितेश के मुंह से अनायास ही निकल गया।
मैंने कहा था ना कि मेहनताना दूंगा...
इतना क्यों, ऐसा भी मैंने क्या किया है?
तुमने मेरी जान बचाई, मुझे खाना दिया और एक अनमोल सी मीठी नींद... उसी सब के लिए।
नहीं सेठ जी, मुझ गरीब का मज़ाक ना उड़ाएं, मुझे दिन भर का मेहनताना 150 रुपए दे दीजिए।
खाने-पीने, सोने का कोई मोल होता है क्या? और जान तो ऊपर वाला बचाता है, हम और आप उसके आगे क्या हैं।
हाँ, पूरे समय आप की चौकीदारी में गुजर गया, तो काम पर नहीं जा पाया। तो घर जाकर माँ के हाथ में क्या दूंगा।
इसलिए दिनभर की मजदूरी मांग रहा हूँ, बस वही दे दीजिए।
अरे भाई, वही दे रहा हूँ। मैं एक दिन में इतना ही कमा लेता हूँ। जो अनमोल है, उसके लिए तो मैं तुम्हारी ज़िंदगी भर ऋणी रहूंगा।
जब तुम्हें काम की जरूरत हो आ जाना। हमेशा तुम्हारी राह देखूंगा। यह कहते हुए रतन सिंह रितेश को सब पकड़ाते हुए आगे बढ़ गया।
अरे, सेठ जी अपनी आपबीती तो सुनाते जाओ...
जब मिलोगे, तब सुनाऊंगा.... कहते हुए रतन सिंह आगे बढ़ता गया...
क्या थी रतन सिंह की आपबीती? क्या रितेश, रतन सिंह के पास जाएगा?
जानिए के लिए पढ़ें, सच्चा सोना (भाग -3) में....