गणपति विसर्जन, अनंत चतुर्दशी में क्यों?
जैसा कि हम सब जानते हैं कि हमारे गणपति बप्पा, जिन्हें हम सुख,समृद्धि दाता और विघ्नहर्ता भी कहते हैं, ऐेसे, भगवान गणेश को भाद्र पद माह की चतुर्थी तिथि पर विधि-विधान के साथ पूजा करते हुए घर पर स्थापित किया जाता है और अनंत चतुर्दशी पर विसर्जन के साथ यह उत्सव समाप्त हो जाता है।
हम सभी सालों से भगवान गणेश जी की चतुर्थी में स्थापना व अनंत चतुर्दशी में विसर्जन करते आ रहे हैं, पर हम में से कितनों को पता है कि-
क्यों चतुर्थी में ही स्थापना की जाती है?
क्यों अनंत चतुर्दशी में विसर्जन किया जाता है?
और क्या कारण है कि स्थापना के लिए अधिकतम समय अवधि, दस दिन ही चुनी गई है?
इसके विषय में हम लोगों की दादी माँ, नानी माँ अवश्य जानती होंगी, शायद हमारी माँ और सास भी जानती हों।पर हम में से कितने लोग जानते होंगे? और आने वाली पीढ़ी तो बिल्कुल ही नहीं जानती है।
तो चलिए आज आप को विरासत के इस अंक में, प्रथम पूज्य श्री गणेश जी से जुड़े इसी तथ्य से उजागर करते हैं...
गणपति विसर्जन:
इस वर्ष, शुक्रवार को अनंत चतुर्दशी तिथि पर गणेश जी का विसर्जन किया जा रहा है।
10 दिनों तक चलने वाला गणेशोत्सव पर्व, अनंत चतुर्दशी तिथि पर घरों और बड़े-बड़े पंडालों में स्थापित भगवान गणेश की प्रतिमा को जल में विसर्जित कर के पूर्ण हो जाएगा।
चतुर्थी में जन्मदिवस :
सनातन धर्म में भगवान गणेश को बु्द्धि, वाणी, विवेक और समृद्धि के देवता माना जाता है।
किसी भी शुभ कार्य में सबसे पहले भगवान गणेश की ही पूजा की जाती है।
ऐसी मान्यता है कि गणेश पूजा से सभी तरह की परेशानियां खत्म हो जाती है। गणेश पूजा से सभी प्रकार के वास्तु संबंधी दोष फौरन दूर हो जाते हैं।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भगवान गणेश का जन्म भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि के दिन हुआ था इसी कारण से गणेश चतुर्थी पर घर पर भगवान गणेश की प्रतिमा स्थापित करते हैं।
शुभ कार्य को करने से पहले अगर भगवान गणेश की पूजा की जाए तो कार्यों में बाधाएं नहीं आती और कार्य अवश्य सफल होता है, और यह पूर्णतः सत्य है।
गणेश विसर्जन का महत्व
एक अन्य मान्यता के अनुसार गणेश विसर्जन की तिथि व दस दिनों की स्थापना का तथ्य उजागर होता है।
गणेश विसर्जन के पीछे एक पौराणिक कथा है। पौराणिक मान्यता के अनुसार महर्षि वेदव्यास ने महाभारत की रचना के लिए गणेशजी का आह्वान किया था।
गणेश जी की गाथा को आगे बढ़ाने से पहले, चलिए कुछ महत्वपूर्ण तथ्य महाभारत के विषय में भी जान लेते हैं...
महाभारत, एक ऐसा महाकाव्यग्रंथ है, जिसको महर्षि वेदव्यास ने काव्य बद्ध किया था, लेकिन इसे लिपिबद्ध करने तो स्वयं प्रथम पूज्य श्री गणेश जी आ गए थे।
जब इन दोनों की महान उपस्थिति थी, तब इसे महाग्रंथ तो होना ही था।
महाभारत, भारत का एक प्रमुख महाकाव्य ग्रंथ है।
यह महाकाव्यग्रंथ, भारत का अनुपम धार्मिक, पौराणिक, ऐतिहासिक और दार्शनिक ग्रंथ हैं।
विश्व का सबसे लंबा यह साहित्यिक ग्रंथ और महाकाव्य, हिन्दू धर्म के मुख्यतम ग्रंथों में से एक है। इस ग्रन्थ को हिन्दू धर्म में पंचम् वेद भी माना जाता है।
यद्यपि इसे साहित्य की सबसे अनुपम कृतियों में से एक माना जाता है, किन्तु आज भी यह ग्रंथ प्रत्येक भारतीय के लिए एक अनुकरणीय स्रोत है।
यह कृति प्राचीन भारत के इतिहास की एक गाथा है। महाभारत में हिन्दू धर्म का पवित्र ग्रंथ, भगवद्गीता, सन्निहित है। गीता में तो, स्वयं भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को संपूर्ण जीवन सार के विषय से अवगत कराया है। इसमें जन्म से मोक्ष प्राप्ति तक का वर्णन किया गया है।
पूरे महाभारत में लगभग १,१०,००० श्लोक हैं, जो यूनानी काव्यों इलियड और ओडिसी से परिमाण में दस गुणा अधिक हैं।
चलिए हम पुनः महर्षि वेदव्यास जी व गणपति जी के वार्तालाप में आते हैं-
महाभारत अत्यंत विशाल महाकाव्य था, साथ ही ईश्वरीय वाणी से जुड़ा हुआ महाग्रंथ था; तो इसमें पूर्णतः शुद्धि भी अनिवार्य थी। अतः महर्षि वेदव्यास ने गणेश जी से महाभारत को लिपिबद्ध करने की प्रार्थना की।
गणेश जी ने उनकी प्रार्थना को स्वीकार तो किया परन्तु उन्होंने एक शर्त रखी कि "मैं जब लिखना प्रारंभ करूंगा तो कलम को रोकूंगा नहीं, यदि कलम रुक गई तो लिखना बंद कर दूंगा। फिर आगे का महाकाव्य आपको ही पूर्ण करना होगा।"
तब वेद व्यासजी ने, गणेश जी की अनुनय विनय करते हुए कहा कि, "भगवन्, आप देवताओं में अग्रणी हैं। विद्या और बुद्धि के दाता हैं, और मैं एक साधारण ऋषि हूं। यदि किसी श्लोक में मुझसे त्रुटि हो जाए तो आप कृपया उस श्लोक को ठीक कर उसे लिपिबद्ध करें।"
No comments:
Post a Comment
Thanks for reading!
Take a minute to share your point of view.
Your reflections and opinions matter. I would love to hear about your outlook :)
Be sure to check back again, as I make every possible effort to try and reply to your comments here.