वो भयानक रात (भाग - 4) के आगे....
वो भयानक रात (भाग -5)
दरअसल, राकेश जी अपने कड़क स्वभाव के लिए पुलिस चौकी में प्रसिद्ध थे।
अभी सब शांत पड़ना शुरू हुआ ही था कि पुलिस वाले कुछ और लोग भी आ गए। क्योंकि नीचे आते-आते राकेश जी फोन करते हुए आए थे।
पुलिस वाले तुरंत संजीव और दोनों गुंडों को अपने साथ ले गए, साथ ही आशा को अस्पताल चलने को कहने लगे।
पर आशा ने कहा कि उसको इतने घावों की आदत है, वो बस जल्द से जल्द अपने बच्चों को सुरक्षित करना चाहती है, अतः उसे गांव भेजने की व्यवस्था कर दी जाए।
राकेश जी ने order दिया कि इसके घावों की मरहम पट्टी करा के इसे गांव छोड़ आया जाए।
आशा ने सुनीता, सुरेश जी, बच्चों, पड़ोसी और विशेष रूप से राकेश जी का बारम्बार धन्यवाद दिया और गांव के लिए जाने लगी।
आशा के जाने के पहले, सुनीता ने उसे उस महीने की तनख्वाह के साथ 5 हजार ऊपर दे दिए।
आशा ने तनख्वाह के अलावा, बाकी रुपए लेने को मना किये, वो बोली दीदी, अब न जाने कब मिलना हो, शायद रुपए चुका भी न पाऊं...
सुनीता ने कहा कि, तुम्हें अभी रुपयों की बहुत आवश्यकता है, इन्हें रख लो...
अगर तुम लौट कर आ पाओगी, तो मुझे अच्छा लगेगा, पर तुम्हारी और बच्चों की सुरक्षा पहले है, तो अगर तुम न आ पाओ, तब इन्हें हमारे रिश्ते के अच्छे समय की सौगात समझ कर रख लेना।
दीदी, मैं जरूर आऊंगी, इन्हें लौटाने, पर कब वो नहीं पता। एक बार सारी व्यवस्था हो जाए बस... तुम्हारे उपकार को मैं जिंदगी भर नहीं भूलूंगी... आशा की आंखें आंसुओं से भरी हुई थी और आवाज कंपकंपा रही थी... बेहद मार्मिक दृश्य बन गया था...
अपना सबका ध्यान रखना दीदी, मैं जरूर आऊंगी... यह कहते हुए वो घर से निकल गई...
थोड़ी देर में सब चले गए।
आशा के आने से जो टूट-फूट हुई थी, उसे ठीक करने में सुरेश जी के हजारों रुपए ठुक गये।
आज इस बात को बहुत साल गुजर गए थे, पर सुनीता को आज भी वो भयानक रात सिहरन दे जाती थी।
उसे आज भी इंतजार था, आशा के लौटने का... रुपए वापस पाने की आस में नहीं, बल्कि इस बात को जानने की लालसा में कि, आशा और उसके बच्चे कैसे हैं?...
जबकि, सुरेश जी और बच्चे नहीं चाहते थे कि आशा, कभी भी लौट कर आए, क्योंकि उन्हें डर था कि अगर आशा, वापस लौटी, तो उसके पीछे संजीव भी आ सकता है...
और वो भयानक रात, उन्हें फिर से अपनी ज़िंदगी में कभी नहीं चाहिए थी।