Permission
स्निग्धा, बेहद खूबसूरत और सीधी-सादी सी लड़की थी।
उसके बचपन में ही उसकी मां का साया, उससे हमेशा के लिए दूर हो गया।
जिसके कारण वो बहुत ही गुमसुम और खामोश, अपने में खोयी हुई सी रहती।
उसका एक कारण शायद यह था कि उसके पिता सुखदेव, उसको लेकर बहुत चिंतित रहते थे, वो उसे जितना अधिक चाहते थे, उतने ही अधिक strict भी...
कोई भी काम स्निग्धा, सुखदेव जी से पूछे बिना नहीं कर सकती थी।
स्निग्धा बड़ी हुई तो उसकी शादी शिखर से हो गयी।
स्निग्धा, जितनी introvert थी, शिखर उतना ही extrovert..
स्निग्धा अब हर काम, शिखर की permission से करने लगी। हालांकि शिखर को यह बिल्कुल पसंद नहीं था, पर स्निग्धा, बिना permission के एक पत्ता न हिलाती।
स्निग्धा खाना बहुत स्वादिष्ट बनाती थी, जो भी एक बार उसके हाथ का बना खाना खा लेता, तो बड़े से बड़े होटल का खाना भूल जाता...
एक दिन शिखर के मामा मामी आए थे तो स्निग्धा ने उनके लिए बहुत variety का खाना बनाया।
मामा जी का hotels में laundry provide करने का business था।
जब उन्होंने स्निग्धा के हाथ का खाना खाया, तो वो ख़ुशी से उछल गये।
बोले, अरे मेरी बिटिया रानी, तुम कहां थी अब तक?
किसी को समझ नहीं आया कि मामा जी ऐसे क्यों बोल रहे हैं, सब मामा जी की ओर ताकने लगे।
मामा जी बोले, अरे शिखर, तूने कोहिनूर हीरा छिपा रखा है।
तू तो जानता ही है कि मेरा hotels में laundry provide कराने का business है। एक से बढ़कर एक बड़े होटल में उठना बैठना है। पर कहीं इतना स्वादिष्ट भोजन नहीं खाया।
स्निग्धा को अपना खुद का एक होटल खोलना चाहिए।
मामा जी के द्वारा इतनी अधिक तारीफ सुनकर, एक बार को स्निग्धा के मन में भी अपना होटल खोलने की इच्छा हुई। उसने कहा, मामा जी उसका finance कहां से आएगा।
चाहो तो 20% की partnership पर मैं finance कर दूं।
सुनकर, स्निग्धा को अपना सपना, सच होता दिखने लगा, एक ऐसा सपना, जिसे उसने खुली आंखों से देखा था, पर कभी किसी को बताया नहीं था।
अब वो permission के लिए, शिखर का मुंह देखने लगी।
पर हमेशा आगे से आगे सोचने वाले शिखर ने permission देने से इंकार कर दिया।
स्निग्धा बेहद मायूस हो गई। क्योंकि बिना शिखर की permission के स्निग्धा कुछ नहीं सोच सकती थी। काम तो छोड़ो, वो शिखर की permission के बिना घर से एक कदम बाहर तक नहीं निकालती थी।
मामा जी को भी शिखर का रवैया नागवार गुजरा, उन्हें बिल्कुल अंदाज नहीं था कि शिखर permission देने को मना कर देगा।
वो नाराज़ होकर जाने लगे तो शिखर बोला, रुकिए मामा जी, एक बात सुनकर जाइएगा। मैंने न अभी permission दी है न कभी दूंगा।
बल्कि मैं होता कौन हूं, जो इसको permission दूं, न मैं इसका पिता हूं, न गुरु, और न मालिक...
मैं इसका जीवनसाथी हूं, तो मेरा हक, मेरा अधिकार यह है कि, मैं इसका साथ दूं न कि इसे permission दूं।
तो मेरी प्यारी स्निग्धा, मैं तुम्हें permission नहीं दूंगा, बल्कि तुम्हारा साथ दूंगा, उस हर जगह, जहां तुम चाहोगी...
स्निग्धा प्यार से शिखर को देख रही थी कि उसे कितना अच्छा जीवन साथी मिला है, जिसे सही मायने में जीवन साथी होने का अर्थ पता है।