सपनों की उड़ान
स्नेहा बहुत ही मासूम, चंचल, और कुशाग्र बुद्धि की लड़की थी। वो पढ़ाई में इतनी होशियार थी कि पूरा गांव कहता था कि यह एक दिन हमारे गांव का नाम जरूर रोशन करेगी, बस थोड़ा फुदकना छोड़ दें।
पर स्नेहा तो कापी-किताब के साथ भी पेड़ों पर ही मिलती थी।
उसके दिनभर इधर-उधर फुदकने के कारण, वो स्नेहा के नाम से कम और गिलहरी के नाम से ज़्यादा मशहूर थी।
दिन, साल, महीने गुजरते गए। स्नेहा बड़ी हो चुकी थी, उसका सपना IPS officer बनने का था, तो वो बहुत मन लगा कर पढ़ती थी, पर जब वो पढ़ते-पढ़ते थक जाती, तो बस पहुंच जाती पेड़ पर लटकने, इधर-उधर फुदकने...
उसने UPSC का Prelims, mains and interview exam qualify कर लिया। अब उसे कुछ ही महीनों में physical training के लिए जाना था।
और एक दिन वो पेड़ पर से कूदते हुए गिर पड़ी और उसके पैरों में इतनी तेज चोट लग गई कि उसे bed rest के लिए बोल दिया गया।
सारे गांव भर से लोग उसे देखने आ रहे थे और वो सबसे यही कहती, आपकी गिलहरी ने फुदकना छोड़ दिया है।
उसकी इस बात से सबकी आंखों से अविरल धारा बह निकलती और सब उससे यही कहते, हमने ऐसे नहीं सोचा था। तुझे ही तो गांव का नाम रोशन करना था, अब तुम नहीं तो, कौन करेगा ऐसा...
एक दिन गांव के सरपंच आए, अपनी गिलहरी से मिलने, और आते से ही बोले, कैसी है मेरी गिलहरी?
आपकी गिलहरी ने फुदकना छोड़ दिया...
कोई नहीं, सपनों की उड़ान तो नहीं छोड़ी न?
पर काका, कैसे उड़ूं? मेरे तो पंख ही टूट गये....
वो खूब ज़ोर से हंसे, फिर बोले, पंख कब टूटे?
स्नेहा ने अपने पैर की ओर इशारा कर दिया...
अरे बिटिया यह तो पैर हैं।
सपनों के पंख नहीं...
सपनों के पंख.... वो क्या होते हैं? सोचती हुई स्नेहा, सरपंच जी को एकटक देखने लगी...
अरे गिलहरी इतना भी नहीं पता...
सपनों के पंख, कुछ कर दिखाने का जज्बा और जुनून देते हैं और जिनमें यह रहता है, उन्हें अपने सपनों की उड़ान भरने से कोई नहीं रोक सकता है।
न कोई इंसान और न कोई हालात... पर शायद तुम्हारे अंदर वो जज्बा और जुनून नहीं रहा..
वो मुझमें कम नहीं हुआ है काका...
तो बैठकर अफ़सोस किस बात का कर रही हो? उठो और उठाओ, पूरे जोश से अपने कदम अपनी मंजिल की ओर...
यह कहकर सरपंच जी, स्नेहा की wheelchair मैदान में ले आए।
स्नेहा ने अपने अंदर के आत्मविश्वास को झकझोरा और अपने घायल पैर पर खड़े होने की कोशिश की...
इस कोशिश में उसे बहुत दर्द हुआ, शायद चोट लगने से भी ज्यादा...
पर वो सरपंच जी को दिखाना चाह रही थी कि आज भी उसमें उतना ही जज्बा और जुनून है, अपने गांव को सर्वोच्च सिद्ध करने का...
अब से हर रोज़ सरपंच जी, कुछ देर के लिए उसके पास ज़रूर जाते।
उनका आना, स्नेहा को अपने को सिद्ध करने का सबब होता है।
हर रोज़ का प्रयास, स्नेहा को पूर्ण रूप से सक्षम बना गया और आखिर वो दिन भी आ ही गया, जब उसे physical training के लिए जाना था।
स्नेहा ने अपनी physical training complete की और वो सहायक पुलिस अधीक्षक (प्रशिक्षु) यानी ASP (trainee) के पद पर तैनात हो गई।
और जब उसकी posting, अपने गांव पर थानाध्यक्ष के रूप में हुई, तो वो सबसे पहले अपने सरपंच जी के पास गयी और बोली, आपने मेरे सपनों को उड़ान भरने में जो सहयोग दिया था, आज उसके कारण ही मैं अपने और गांव वालों का सपना पूरा कर सकी।
आप सच कहते हैं, सपनों की उड़ान, जज्बे और जुनून से भरी जाती है और जिसमें यह क़ायम है, उसे अपनी मंजिल को पाने से कोई नहीं रोक सकता है, न कोई इंसान न कोई हालात...
इतना कहने के साथ ही उसने सरपंच जी के पैर छू लिए और उनसे ढेरों आशीर्वाद अपनी झोली में समेट लिए...