Saturday, 28 June 2025

India's Heritage : जगन्नाथ रथयात्रा - एक विरासत

आज India's heritage segment में विश्व की सबसे बड़ी रथ यात्रा के विषय में वर्णन कर रहे हैं।

ओडिशा के पुरी शहर में हर साल होने वाली जगन्नाथ रथ यात्रा को दुनिया भर के लोग बहुत श्रद्धा और उत्साह से देखते हैं।

जगन्नाथ, अर्थात् सम्पूर्ण जगत के नाथ, भगवान श्री हरि के आठवें अवतार भगवान श्रीकृष्ण से जुड़ी कथा व मान्यता है। 

आइए जानते हैं कि रथ यात्रा की शुरुआत कैसे हुई…

जगन्नाथ रथयात्रा - एक विरासत


रथयात्रा की शुरुआत :

स्कंद पुराण के अनुसार, एक दिन भगवान जगन्नाथ की बहन सुभद्रा ने नगर देखने की इच्छा जताई।

तब जगन्नाथ और बलभद्र ने उन्हें रथ पर बिठाकर नगर भ्रमण करवाया। इस दौरान वे अपनी मौसी गुंडिचा के घर भी गए और वहां सात दिन ठहरे, तभी से इस यात्रा की परंपरा शुरू हुई। आज भी यही यात्रा रथों के माध्यम से मंदिर से गुंडिचा मंदिर तक होती है।


27 जून से 8 जुलाई :

इस साल यह यात्रा 27 जून से शुरू होकर 8 जुलाई तक चलेगी। भगवान जगन्नाथ अपने भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ विशाल रथों पर सवार होकर पुरी के मुख्य मंदिर से गुंडिचा मंदिर तक जाएंगे। 

यह यात्रा 12 दिन तक चलती है और इसके हर दिन का एक खास महत्व होता है।


विशेष दिवस :

कुछ विशेष दिन जैसे रथ यात्रा के पहले दिन पुरी के राजा खुद ‘छेरा पन्हारा’ रस्म निभाते हैं, जिसमें वे सोने के झाड़ू से रथ के नीचे का हिस्सा साफ करते हैं। यह विनम्रता और सेवा भाव का प्रतीक माना जाता है।

‘हेरा पंचमी’ के दिन देवी लक्ष्मी गुंडिचा मंदिर जाकर नाराज़गी जताती हैं कि भगवान उन्हें छोड़कर क्यों चले आए? 

यह आयोजन पूरी यात्रा को और भी रोचक बना देता है।


रथ की रस्सियों के नाम :

बहुत कम लोगों को यह पता होता है कि भगवान के इन तीनों रथों को खींचने वाली रस्सियों के भी अपने नाम होते हैं। भगवान जगन्नाथ के 16 पहियों वाले रथ को “नंदीघोष” कहा जाता है। इस रथ की रस्सी का नाम है शंखाचुड़ा नाड़ी है।

बलभद्र जी का रथ, जिसमें 14 पहिए होते हैं, उसे “तालध्वज” कहा जाता है और उसकी रस्सी को बासुकी नाम से जाना जाता है। 

देवी सुभद्रा का रथ, जिसमें 12 पहिए होते हैं और जिसे “दर्पदलन” कहा जाता है, उसकी रस्सी का नाम है स्वर्णचूड़ा नाड़ी। 

ये रस्सियां न सिर्फ रथ को खींचने का माध्यम होती हैं, बल्कि इन्हें छूना भी बहुत बड़ा सौभाग्य माना जाता है।


कौन खींच सकता है रथ :

पुरी की रथ यात्रा की एक सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसमें किसी तरह का भेदभाव नहीं होता। कोई भी व्यक्ति, चाहे वो किसी भी धर्म, जाति या देश का हो, रथ खींच सकता है।

शर्त बस इतनी है कि उसका मन सच्चे भाव से भरा हो। 

मान्यता है कि रथ की रस्सी खींचने वाला व्यक्ति जीवन और मृत्यु के चक्र से मुक्ति पाकर मोक्ष की ओर बढ़ता है।

हालांकि, कोई भी एक व्यक्ति ज्यादा देर तक रथ नहीं खींच सकता।

ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि हर आने वाले श्रद्धालु को यह अवसर मिल सके, और अगर कोई रथ न भी खींच पाए तो भी चिंता की बात नहीं, क्योंकि इस यात्रा में सच्चे मन से शामिल होना भी हजारों यज्ञों के बराबर पुण्य माना जाता है।


जगन्नाथ रथयात्रा से जुड़ी अन्य रोचक जानकारियों के लिए नीचे दिए गए link पर click करें -

https://shadesoflife18.blogspot.com/2023/06/article_20.html?m=1


जय जगन्नाथ 🙏🏻 

श्रीहरि विष्णु, सबकी मनोकामनाओं को पूर्ण करें।