Tuesday, 25 February 2025

Story of Life: जीवन क्या है (भाग -4)

 जीवन क्या है (भाग-1),

जीवन क्या है (भाग-2) व… 

जीवन क्या है (भाग - 3)  के आगे...

जीवन क्या है (भाग - 4) 




ऐसे में यही कहूंगा कि,  ऐसे अपनों का सानिध्य, जीवन तो बिल्कुल नहीं है... 

दूसरा प्रश्न था कि क्या धनार्जन जीवन है?

तो बता दें कि धनार्जन से जीवन है, पर जीवन धनार्जन नहीं है।

ईश्वर ने हमें धनार्जन करने के लिए नहीं भेजा है।‌ धनार्जन तो हमने सभ्यता के विकास के साथ करना आरंभ किया है।

पुरातन काल में मनुष्य भी अन्य पशुओं के समान विचरण और भ्रमण करके ही अपना जीवन पोषण करता था, किन्तु समयांतर के साथ ही मनुष्य में धनार्जन करने की बुद्धि विकसित हुई।

तो धन कमाना आवश्यक ज़रूर है पर धन के पीछे सब छोड़ देना सर्वथा अनुचित है। अपना स्वास्थ्य, अपनों का सानिध्य, अपने लिए व्यतीत किए जाने वाला समय, सबको ताक पर रख कर दिन-रात सिर्फ धनार्जन में लगे रहना, किसी भी नजरिए से जीवन नहीं है 

तुमने पूछा था, क्या सफलता जीवन है? 

तो सुनो, सफलता और असफलता तो जीवन के दो पहलू हैं, पर जीवन नहीं...

लक्ष्य की प्राप्ति करने का प्रयास अवश्य करना चाहिए, किन्तु उसके पीछे सबको भूल जाना उचित नहीं है।

आखिरी प्रश्न, क्या ईश्वर में समर्पण जीवन है?

तो ईश्वर में समर्पण ही तो जीवन है, यह तो सत्य सनातन है।

पर ऐसे में बहुत लोगों के मन में यह विचार आ रहा होगा कि सब कुछ परित्याग कर ईश्वर में समर्पित हो जाना चाहिए? क्या कर्तव्यों से विमुख हो जाना उचित है?

तो उसके लिए यही कहना है, हमारे जन्म लेने के साथ ही हमारे बहुत सारे कर्तव्य भी हम से जुड़ जाते हैं, तो उन सबका निर्वाह करते हुए ईश्वर को समर्पित होना, यही सच्चे अर्थों में जीवन है और इसका सफल और प्रत्यक्ष उदाहरण, स्वयं प्रभु श्री राम जी और भगवान श्री कृष्ण जी ने दिया है।

जब तक कर्तव्यों से जुड़े हैं तब तक कर्तव्यों के साथ ईश्वर में समर्पित रहें और कर्तव्यों का पालन पूर्ण हो जाने के पश्चात्, लोककल्याण करते हुए सम्पूर्ण रूप से ईश्वर में समर्पित हो जाए..

बाकी जीवन का सही अर्थ है समय अवधि, एक सशक्त समय अवधि, जो ईश्वर ने हमें कुछ अर्थपूर्ण करने के लिए दी है। अब यह हम पर निर्भर करता है कि हम उस दी गई समय अवधि का किस तरह सदुपयोग या दुरुपयोग करते हैं।

यह समय अवधि, एक निश्चित समय तक ही सीमित होती है। और वो कट ही जाएगी, अच्छी-बुरी, सही-गलत वैसी ही जैसे आप कर्म करोगे। 

इन प्रश्नों के उत्तर देने के पश्चात् साधु महाराज जी क्षण भर को मौन हो गये।

थोड़ी देर बाद लगभग सभी आए हुए लोग उठ खड़े हुए और कहने लगे कि आप के इन उत्तरों में ही हमारे भी उत्तर निहित हैं। हमको आप आशीर्वाद दें कि हम सभी अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए ईश्वर को समर्पित हो जाएं।

इसके पश्चात सबको, हाथों में पुष्प लेकर, एक विशेष कक्ष में ले जाया गया। जहां बहुत बड़े बड़े शीशे लगे थे, जिसमें लोगों को अपना ही प्रतिबिंब दिखाई दे रहा था साथ ही कुछ फ्रेम थे, जिसके आगे माता-पिता लिखा था। पर कहीं भी साधु महाराज की मूर्ति नहीं थी।  

लोगों को समझ नहीं आ रहा था कि कहां पुष्प अर्पित करें। थोड़ी देर बाद सब चले गए और सभी पुष्प वहीं अर्पित थे, जहां माता-पिता लिखा था।