Monday, 13 January 2025

India's Heritage : महाकुंभ महोत्सव

महाकुंभ, एक ऐसा महोत्सव, एक ऐसा पर्व, एक ऐसा मेला, जो आस्था और उपासना का सबसे बड़ा प्रयोजन होता है। 13 January (पौष पूर्णिमा) से इस महोत्सव का प्रारंभ हो रहा है, जो कि 26 February (महाशिवरात्रि) तक चलेगा।

और इस बार के महाकुंभ का महोत्सव प्रयागराज के त्रिवेणी (गंगा, यमुना, सरस्वती) संगम पर सम्पन्न होने जा रहा है।

ईश्वर के सामीप्य और उनके श्री चरणों के अमृतपान का सुखद अवसर हैं यह... 

इस समय प्रयागराज पहुंचने वालों को जो आलोकिक अनुभूति होनी है, वो अवर्णनीय है।

हमारे लिए इसका विशेष महत्व इसलिए भी है, क्योंकि इस बार महाकुंभ, हमारी जन्मभूमि प्रयागराज पर होने जा रहा है। 

हे जन्मभूमि, अगर आप की पावन धरती पर माथा टेकने का सुअवसर न भी मिले, तो भी मेरा दंडवत प्रणाम स्वीकार कीजिएगा। 

चलिए आप को बताते हैं कि क्यों महाकुंभ का आयोजन किया जाता है? 

क्या है इसका महत्व? और किन चार शहरों को इस आयोजन को कराने का सौभाग्य प्राप्त है? 

महाकुंभ महोत्सव


ईश्वर ने मुझे अपनी भक्ति में लीन होने के लिए दो रूपों में जोड़ा है, आध्यात्मिक और वैज्ञानिक रूप में...

तो आज, हम आपको दोनों तरह से महाकुंभ की विशेषता का वर्णन करेंगे। आस्था और पौराणिक रुप में और वैज्ञानिक और तथ्यों के रूप में भी...

ईश्वर की आस्था और उपासना ही जीवन का मुख्य उद्देश्य है तो आपको पहले महाकुंभ का पौराणिक महत्व ही बताते हैं।


1) पौराणिक कथा के अनुसार :

पौराणिक मान्यता के मुताबिक, देव और दानवों के मध्य समुद्र मंथन का आयोजन किया गया था, जिसमें समुद्र मंथन से 14 रत्न निकले थे, जो कुछ इस प्रकार हैं...

सबसे पहले निकला कालकूट (या हलाहल), फिर ऐरावत, कामधेनु, उच्चैःश्रवा, कौस्तुभ मणि, कल्पवृक्ष, रंभा अप्सरा, महालक्ष्मी, वारुणी मदिरा, चंद्रमा, शारंग धनुष, पांचजन्य शंख, धन्वंतरि, और सबसे अंत में अमृत से भरा हुआ कुंभ (कलश, घड़ा)...

कालकूट या हलाहल, बेहद ज़हरीला विष था, जिसके निकलने पर सब इधर-उधर हटने लगे, किन्तु यह तय था कि जो भी निकलेगा, उसे देवता या दानव में से किसी एक को लेना ही होगा...

ऐसे में महादेव, सामने आए और उन्होंने विषपान किया और उसे अपने कंठ में ही रोक लिया, नीचे नहीं उतरने दिया। विष के प्रभाव से उनका कंठ नीला हो गया, तब से ही देवों के देव महादेव, नीलकंठ कहलाए। 

आगे निकलने वाली चीजें, कुछ देवों के और कुछ दानवों के हिस्से में आई।

अंत में अमृत कुंभ को पाकर देवता और दानव आपस में लड़ने लगे। इस बीच, दानवों से बचाने के लिए इंद्र के पुत्र जयंत अमृत कुंभ लेकर भागने लगे। दानवों ने भी उनका पीछा किया। भागते-भागते जयंत के हाथ से अमृत कलश से कुछ बूंदें पृथ्वी की तीन नदियों और चार स्थानों पर गिर गईं।

 

2) तीन नदियां और चार शहर :

समुद्र मंथन के पश्चात् अमृत कुंभ द्वारा जिन तीन नदियों और शहरों में अमृत की बूंदें गिरी थी, वो थी गंगा नदी, क्षिप्रा नदी, और गोदावरी नदी और वो चार शहर हैं, प्रयागराज और हरिद्वार, गंगा नदी के तट पर, उज्जैन क्षिप्रा नदी के तट पर और नासिक गोदावरी नदी के तट पर...

बस उसी कुंभ को symbolic मानकर कुंभ मेले का आयोजन होने लगा, जो अमरता और आध्यात्मिक पोषण का प्रतीक है...

अब प्रश्न उठता है कि नदी में स्नान क्यों?


3) नदी में स्नान का महत्व :

तो पौराणिक कथा के अनुसार, जब महाकुंभ आता है तो उस नदी विशेष का पूर्ण जल, अमृत में परिवर्तित हो जाता है, तो उसमें स्नान करना, अर्थात् साक्षात अमृत जल का सानिध्य प्राप्त करना है।

अब आपको महाकुंभ का वैज्ञानिक महत्व बताते हैं कि क्यों इन चार शहरों में ही महाकुंभ का आयोजन करते हैं, क्यों नदी का स्नान शुभ फलदाई होता है। और क्यों लाखों-करोड़ों लोग इस समय प्रयागराज पहुंचने का प्रयास कर रहे हैं?


4) महाकुंभ का वैज्ञानिक महत्व :

पूरे world के map को देखेंगे तो 0° से लेकर 33° latitude तक जो भी part है, उसमें centrifugal force सबसे ज्यादा होता है।

Centrifugal force ऐसा force होता है, जो कि gravitational force से दूर रहकर भी घूमने की क्षमता रखता है। 

हमारे संस्कृति बहुत वैज्ञानिक है, अगर आप सार खोज पाएं तो भारतीय संस्कृति के हर क्षेत्र में विज्ञान मिलेगा। 

और इसका एक बहुत बड़ा उदाहरण है महाकुंभ, 

आइए देखते हैं कैसे?

हमारे ऋषि-मुनियों ने देखा कि भारत इसी latitude में आता है। तो उन्होंने चार ऐसी जगह और खोजी, जिसमें centrifugal force और ज्यादा होता है, जो है प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक...

पर centrifugal force ज्यादा होने से क्या लाभ है? और यह spiritually किस तरह से helpful है?

देखिए आप को spiritually strong होना है, तो उसके लिए ऊर्जा चक्रों को जाग्रत करना होता है। और इन चक्रों को जाग्रत करने के लिए वो स्थान उत्तम होता है, जहां centrifugal force अधिक हो। क्योंकि वो gravitational force के against ऊर्जा के ऊपर उठने में सहयोग करता है। 

इसलिए ही इन जगहों पर महाकुंभ महोत्सव होता है।

अब बात करते हैं, डुबकी लगाने का क्या औचित्य है? 


5) डुबकी का औचित्य :

उसका कारण यह है कि पानी में डुबकी लगाने से cosmic energy लेने की क्षमता बढ़ जाती है। क्योंकि गीले रहने से receptivity बढ़ जाती है, अर्थात् ईश्वरीय ध्यान केन्द्रित करना पूर्ण रूप से सक्षम होता है।

कुंभ तो समझ आया, पर यह महाकुंभ क्या है?

और वो 12 सालों में ही क्यों लगता है?


6) 12 साल में महाकुंभ का आयोजन :


पौराणिक कथा के अनुसार 

अमृत कुंभ को पाने के लिए देवों और दानवों में 12 दिन युद्ध चला था और किंवदंती है कि देवों का 1 दिन, मनुष्यों के 1 वर्ष का होता है।

यही कारण है कि महाकुंभ महोत्सव हर 12 वर्ष के पश्चात् आता है। 

ज्योतिषीय गणना के अनुसार 

महाकुंभ के आयोजन में अमृत के साथ ही तीन और celestial bodies का महत्व है, और वो है, बृहस्पति, सूर्य और चंद्रमा की स्थिति, means Jupiter, Sun and Moon की postion का...

ज्योतिषीय गणना के मुताबिक, बृहस्पति ग्रह हर 12 साल में 12 राशियों का चक्कर लगाता है। इसलिए, कुंभ मेला हर 12 साल में आयोजित होता है।

महाकुंभ मेला प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन, और नासिक में लगता है।

कुंभ मेला हर साल और महाकुंभ मेला हर 12 साल में लगता है।

साल 2025 में महाकुंभ मेला प्रयागराज में लग रहा है।

आइए जानते हैं, कि ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक, ग्रहों की स्थिति के आधार पर महाकुंभ मेले का आयोजन कब किस जगहों पर होता है...


7) प्रयागराज में लगने की स्थिति :

जब बृहस्पति ग्रह वृषभ (Taurus) राशि में हों, सूर्य देव और चंद्र देव दोनों ही मकर (Capricorn) राशि में हों, तो महाकुंभ मेला प्रयागराज में लगता है।

2025 में ऐसी स्थिति ही बनी है, इसलिए महाकुंभ का आयोजन प्रयागराज में सम्पन्न हो रहा है।


8) हरिद्वार में लगने की स्थिति :

जब बृहस्पति ग्रह कुंभ (Aquarius) राशि में हों, सूर्य देव मेष (Aries) राशि में हों, और चन्द्र देव धनु (Sagittarius) राशि में हो, तो महाकुंभ मेला हरिद्वार में लगता है।


9) नासिक में लगने की स्थिति :

जब सूर्य और बृहस्पति सिंह (Leo) राशि में हों, और चन्द्र देव कर्क (cancer) राशि में हो, तो महाकुंभ मेला नासिक में लगता है। 


10) उज्जैन में लगने की स्थिति :

जब बृहस्पति ग्रह सिंह (Leo) राशि में हो, सूर्य देव और चंद्र देव दोनों मेष (Aries) राशि में हों, तो महाकुंभ मेला उज्जैन में लगता है।

महाकुंभ, हिंदू धर्म के सबसे पवित्र और भव्य आयोजनों में से एक है। इस मेले में लाखों श्रद्धालु और संत शामिल होते हैं। ये लोग पवित्र नदियों में स्नान करते हैं और पापों से मुक्ति की कामना करते हैं।


महाकुंभ में शाही स्नान का विशेष महत्व है, वो किस-किस दिन है, क्यों कहते हैं इसे शाही स्नान, आपको अगले के article में बताएंगे...

महाकुंभ के अमृत स्नान 

So stay tuned...