महाकुंभ महोत्सव, जिसकी पूरे विश्व भर में चर्चा हो रही है, आपने सोचा, कभी पहले इतनी चर्चा क्यों नहीं होती थी?
आखिर इस साल ऐसा क्या हो गया है कि देश-विदेश में बच्चा-बच्चा जानता है कि महाकुंभ हर 12 वर्ष में आयोजित किया जाता है।
आखिर कैसे हर कोई जान रहा है कि महाकुंभ का आयोजन प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में होता है।
आखिर क्यों इन्हीं शहरों में आयोजित होता है।
हां, अगर आप को अभी भी नहीं पता है, तो महाकुंभ महोत्सव का article पढ़ सकते हैं।
पर इतनी अधिक चर्चा के पीछे की वजह क्या है?
महाकुंभ का आयोजन तो कांग्रेस और सपा के कार्यकाल में भी होता था...
पर इतना विशाल और भव्य नहीं। क्यों? आखिर क्यों?
तो उसकी सिर्फ़ और सिर्फ़ एक ही वजह है, और वो है, सोच के फ़र्क की...
महाकुंभ महोत्सव - सोच का फ़र्क
कांग्रेस के काल में, महाकुंभ महोत्सव पर पहुंचने पर tax लगता था। आयोजन की सुव्यवस्था और सुरक्षा से उनका कोई लेना-देना ही नहीं होता था।
उनके सोच में न तो, सनातन संस्कृति का महत्व था और न ही साधु-संत लोगों की कोई कद्र...
नतीजा, महाकुंभ के विषय में विदेश तो क्या, देश में भी लोग बहुत अधिक नहीं जानते थे...
फिर आया, सपा का काल...
जिन्होंने राम मंदिर निर्माण न होने देने के लिए कार सेवकों को जेल भेज दिया और उस धार्मिक कार्य में, न जाने कितने लोगों की मृत्यु हो गई...
आपको लगता है कि वो समझते थे, महाकुंभ की महत्ता को?....
चलिए जब बात आई है, तो बताते हैं आपको...
महाकुंभ महोत्सव, सनातन संस्कृति का बहुत बड़ा महोत्सव होता है। अतः उसके आयोजन की सुरक्षा और व्यवस्था सुचारू रूप से हो, इसके लिए लगभग एक वर्ष का अथक प्रयास और परिश्रम चाहिए होता है।
पर सपा के काल में देखा जाए तो, उनका प्रयास कांग्रेस से तो काफ़ी हद तक ठीक था, पर पूर्णतः उचित कहना न्याय संगत नहीं होगा ।
उन्होंने जनवरी में होने वाले, इतने बड़े आयोजन की सुव्यवस्था का प्रारंभ करने के लिए नवम्बर में अनुमति दी और उससे भी बड़ी बात कि इस आयोजन का प्रमुख बनाया आज़म खां को...
यह कोई सामान्य आयोजन नहीं था कि उसका संचालन किसी ऐसे हाथों में सौंप दिया जाए, जिसको सनातन का स तक न पता हो।
जिसे न तो यह पता हो कि महाकुंभ क्यों कराया जाता है, न ही पता हो, मकरसंक्रांति, मौनी अमावस्या और बसंत पंचमी की विशेषता का...
उसे क्या मतलब, साधु-संत लोग से? और उनके क्रिया कलापों से...
पूरी सुरक्षा व्यवस्था के लिए चंद गोताखोर ही रखे गये थे, और क्या-क्या हुआ, वो तो क्या ही कहें।
हां, क्या नहीं हुआ, वो जरूर से बता देते हैं। एक तो अखिलेश यादव, एक दिन भी नहीं गये अपने कार्यालय के महाकुंभ महोत्सव में और दूसरा है महाकुंभ महोत्सव के सुयश की देश-विदेश में चर्चा नहीं हुई....
इस बार की सुव्यवस्था की चर्चा तो संपूर्ण विश्व में ही हो रही है, फिर चाहे बात हो रही हो, देश-विदेश से आने वाले लोगों की, या महाकुंभ महोत्सव की भव्यता और दिव्यता की...
वहां की सुरक्षा व्यवस्था की, या वहां उपस्थित साधु-संत लोगों की अखंडता की...
वहां मिल रहे पुन्य की या वहां पर व्यापार या सेवा देने वाले लोगों के लाभ की...
और यह सब संभव हो रहा है, केवल सोच के कारण...
सनातन संस्कृति के महत्व को समझने के कारण...
साधु-संत लोगों को मान देने के कारण।
अपने देश को समृद्धशाली और विख्यात बनाने की इच्छा रखने के कारण...
जब सोच सही दिशा में होगी तो कार्य भी सही दिशा में ही होगा... सफल होगा, सुव्यवस्थित होगा और संपन्नता, दिव्यता, भव्यता और प्रसिद्धि लाने वाला होगा।
फिर प्रत्यक्ष को प्रमाण क्या?
जो है सबके सामने है।
बहुत ही विशाल प्रांगण में आयोजन, मुफ़्त से लेकर बहुत महंगी व्यवस्था अर्थात् छोटे स्तर से लेकर बड़े स्तर के लोगों के रहने की, खाने-पीने की व्यवस्था, हर एक की सुचारू सुरक्षा के लिए 300 trained गोताखोर, श्रद्धालुओं को आने-जाने के लिए 50 हज़ार QR code लगाए गए हैं।
इस मेले में 75 हज़ार से ज्यादा पुलिसकर्मी तैनात किए गए हैं, जिसमें जिलाधिकारी (DM) और पुलिस अधीक्षक (SP) भी शामिल हैं।
इन पुलिसकर्मियों के अलावा, कई central agencies और paramilitary forces को भी शामिल किया गया है। साथ ही NSG के commando, special task force, anti-terror squad, NDRF, NCC के commando भी तैनात किए गए हैं।
सदियों से चले आ रहे शाही स्नान और पेशवाई का नाम बदलकर, उसे अमृत स्नान और कुंभ मेला छावनी प्रवेश रखकर उसे और अधिक सनातन संस्कृति से जोड़ दिया।
ऐसा नहीं कि प्रयागराज में बिल्कुल भी परेशानियां नहीं हो रही है, सड़कों में जाम लगना, लोगों से अनाप-शनाप मूल्य की मांग इत्यादि सब चल रहा है वहां...
पर क्या इसमें पूरी तरह सरकार को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है?
इतनी अधिक भीड़ की व्यवस्था, मेला प्रांगण में तो है, पर किसी शहर का क्षेत्रफल तो रातोंरात बड़ा नहीं किया जा सकता है। तो उस असुविधा को समझते हुए ही महाकुंभ के लिए प्रस्थान करना होगा।
जहां तक रही, मनमाने दाम की मांग, तो वो सरासर ग़लत है, क्योंकि यह तो उस शहर के मांग रखने वाले लोगों को सोचना चाहिए, कि उनकी चंद दिनों की कमाई, उनके अपने शहर का किस तरह अपयश कर रही है।
उनके शहर में इतना बड़ा धार्मिक आयोजन हो रहा है तो कुछ धार्मिक सोच वो भी रख लें, लोगों से उचित दाम की मांग करें, वहां आने वाले लोगों की हर संभव मदद करें, वो भी उचित मापदंडों के साथ...
क्योंकि सरकार ने तो, मेला प्रांगण तक पहुंचने के लिए मुफ्त बस सेवा दी हुई है। पर सब तो उससे नहीं पहुंच सकते हैं।
जब सोच बड़ा करने की है, तो सोचना सही दिशा में हर एक को होगा।
हर एक को सनातन संस्कृति और देश की ख्याति को सर्वप्रथम रखकर एक साथ आगे बढ़ना होगा, तभी हमारा देश सर्वश्रेष्ठ बनेगा।
जय भारत, जय सनातन 🚩