उसे श्लोक की jeans में एक गुलाबी, खूशबूदार काग़ज़ और एक दस का सिक्का मिला।
काग़ज़ को पढ़कर श्वेता के पैरों तले जमीन खिसक गई...
प्यार पर घात (भाग-2) के आगे…
प्यार पर घात (भाग-3)
आह! यह क्या?
उसने बहुत बार उस कागज़ को पढ़ा, पर हर बार स्नेहा से प्रेम अनुरोध ही दिखा...
“प्रिय स्नेहा
तुम इतनी सुन्दर हो, कि न चाहते हुए भी तुमसे स्नेह हो जाता है। श्वेता की बेडोल figure के आगे, तुम्हारी figure तो कमाल की है। उसके साथ रहते हुए मेरी जिंदगी नीरस हो गई है। उसके साथ कहीं बाहर निकलने का भी मन नहीं करता, कौन drum के साथ घूमने जाए। अगर तुम्हें ऐतराज़ न हो, तो ज्यादा नहीं, बस क्या शाम के कुछ घंटे मुझे दे सकती हो, मेरा प्रेम अनुरोध समझकर...
तुम्हारे स्नेह के प्रति उत्तर में श्लोक...”
आखिर कब और कैसे श्लोक स्नेहा से स्नेह करने लगा?
तभी उसे याद आया कि एक दिन, जब वो सारे काम खत्म करके श्लोक के पास आई थी, तो उस ने कहा था कि सारे काम निपटा लो, बस मेरा ही मत सोचा करो, कि कभी मेरे पास भी जल्दी आ जाओ...
अरे इतने काम रहते हैं, खत्म ही नहीं होते, कितना भी जल्दी कर लूं। तुम्हारा क्या है, office से आकर खा-पीकर आराम से बिस्तर पर। श्वेता तुनककर बोली...
श्लोक भी भरा बैठा था, इंतजार करते हुए, तो चिढ़कर बोला - तुम भी वही हो, काम भी वही, पर जब अपना ही शरीर बोझ हो, तो काम कैसे जल्दी हो...
श्लोक! चीख पड़ी थी श्वेता।
फिर अपनी तकिया उठाकर सोफे पर जा धंसी थी, पूरी रात रोते-रोते कटी थी... पर श्लोक बेखबर सोता रहा।
ओह! श्लोक बाबू, स्नेहा से दिल लगा बैठे थे, तभी मुझे जलीकटी सुना रहे थे...
हाय! अब मेरा और मेरे बच्चों का क्या होगा, निर्मोही श्लोक पर सारी जवानी तबाह कर दी। अब जैसी वो दिखती है, ऐसे में कौन उसे पूछेगा?
उसने भारी मन से फोन करके office से तीन दिन की छुट्टी ले ली।
वो पूरे दिन अनमनी सी रही... रो-रोकर उसकी आंखें लाल हो गई थीं...
आगे पढ़ें, प्यार पर घात (भाग-4) में…