Monday, 26 May 2025

India's Heritage : वट सावित्री व्रत या बरगद अमावस्या व्रत

आज, वटसावित्री व्रत या बरगद अमावस्या का व्रत है, जिसमें सुहागिन स्त्रियां पूजा-पाठ करके अपने पति की लंबी आयु की कामना, अखंड सौभाग्य की कामना करती हैं।

पर क्या वजह है कि इस व्रत को वटसावित्री व्रत या बरगद अमावस्या का व्रत कहते हैं। 

आज के India's Heritage segment में इसी को share कर रहे हैं...

हिन्दू धर्म में, एक सुहागिन स्त्री के लिए, उसके जीवन में ईश्वर के पश्चात् उसके पति का ही सबसे महत्वपूर्ण स्थान होता है। जिसके जीवन की मंगलकामना के लिए बहुत सारे व्रत और पूजन होते हैं, करवाचौथ, तीज, और वटसावित्री व्रत इत्यादि...

सबका अलग-अलग विशेष महत्व है, सबके अलग-अलग पूजा-पाठ...

आज क्योंकि वटसावित्री व्रत या बरगद अमावस्या का व्रत है, तो इसके विषय में ही समझ लेते हैं।

वटसावित्री व्रत या बरगद अमावस्या व्रत


सावित्री और सत्यवान की कहानी एक प्रसिद्ध धार्मिक कथा है, जो भारतीय संस्कृति में पति-पत्नी के प्रेम और भक्ति का प्रतीक है। यह कहानी सावित्री के साहस और दृढ़ संकल्प को दर्शाती है।

मद्रदेश के राजा अश्वपति व रानी मालती के कोई संतान नहीं थी, तब उन्होंने, बहुत दिनों तक माता सावित्री की पूजा-अर्चना की...

माता सावित्री ने प्रसन्न होकर उन्हें पुत्री प्रदान की। क्योंकि उन्हें वह पुत्री माता सावित्री के आशीर्वाद से प्राप्त हुई थी, अतः उन्होंने उसका नाम सावित्री रखा।

सावित्री बहुत सुंदर, सुशील, बुद्धिमान, धैर्यवान, दृढ़ संकल्प वाली, सर्वगुण संपन्न राजकुमारी थी... 

जब वह विवाह योग्य हुई, तो उसके लिए विवाह के अनेकानेक प्रस्ताव आने लगे। राजा अश्वपति ने सभी के लिए बहुत विचार किया, पर उन्हें राजकुमारी सावित्री के लिए कोई सुयोग्य न‌ जान पड़ा, अंततः उन्होंने सावित्री से कहा, वह स्वयं अपने लिए सुयोग्य वर तलाश ले।

एक दिन गौतम ऋषि के आश्रम में सावित्री ने सत्यवान को देखा, जो जंगल से लकड़ियां लेकर आ रहे थे। 

सत्यवान, शाल्व देश के राजा द्युमत्सेन के पुत्र थे, जो नेत्रहीन होने के कारण, अपने भाई के धोखा देने से अपना राज्य खो चुके थे और वन में रहते थे।

सावित्री सत्यवान पर मोहित हो गई और मन ही मन उसे पति मान लिया। सावित्री ने अपनी पसंद राजा अश्वपति को बताई।

राजा ने नारद जी से इस विवाह का भविष्य जानना चाहा, तो नारद जी ने बताया कि सत्यवान की आयु केवल एक साल की बची है, फिर उसकी मृत्यु हो जाएगी।

राजा ने सावित्री को समझाया कि वह सत्यवान से विवाह का विचार त्याग दे।  लेकिन सावित्री सत्यवान से इतनी प्रभावित थी कि उसने सत्यवान के साथ प्रेम, सम्मान और विश्वास के बंधन को चुना, भले ही सत्यवान अल्पायु हो। 

उसने अपने पिता से कहा कि वह सत्यवान को पति के रूप में चुन चुकी है, और बार-बार पति का चुनाव नहीं किया जाता है, आप मेरे भविष्य की चिंता न करें, क्योंकि जिसके भविष्य में जो होता है, उसको उसका ही निर्वाह करना होता है।

अश्वपति ने भारी मन से अपनी लाडली राजकुमारी सावित्री का विवाह, राजा द्युमत्सेन के पुत्र सत्यवान से कर दिया।

सावित्री, पूर्ण श्रद्धा और विश्वास से अपने सास-ससुर व सत्यवान की सेवा करने लगी।

ठीक एक वर्ष पश्चात जब साल का आखिरी दिन था,  सावित्री भी सत्यवान के साथ जंगल में लकड़ी लेने गयी। 

लकड़ी काटने के बाद थककर बरगद के वृक्ष, जिसे वटवृक्ष भी कहते हैं, वहीं लेट गए और कुछ देर बाद निष्चेष्ट हो गये। उस दिन अमावस्या थी।

सावित्री को एक वर्ष पहले से ही इस दिन का ज्ञान था, वो ऐसा देखकर तनिक भी विचलित नहीं हुईं। बल्कि वो मृत्यु के देवता, यमराज जी की प्रतीक्षा करने लगी।

जब यमराज सत्यवान के प्राण हर के ले जाने लगे, तो सावित्री भी साथ चल दीं।

यमराज ने कहा, देवी अभी आप का जीवन शेष है, आप अभी हमारे साथ नहीं चल सकती हैं।

सावित्री बोली, जब मेरे पति सत्यवान को अपने साथ ले जाएंगे, तो उनके बिना मेरा कैसा जीवन? अतः मैं तो साथ चलूंगी।

इस तरह से सावित्री और यमराज जी के मध्य चर्चा चल पड़ी।

सावित्री साथ न चले, इसलिए उन्होंने सावित्री को तीन वर मांगने का अवसर दिया। सावित्री ने पहले अपने ससुर का राज्य वापस मांगा, व उनकी आंखों की रोशनी, दूसरे वरदान में अपने पिता के लिए पुत्र और अंत में अपने लिए सौ पुत्र मांगे। यमराज ने बिना सोचे-समझे वर दे दिए, लेकिन जब सावित्री ने सौ पुत्रों की बात कही तो यमराज को समझ आया कि बिना सत्यवान के यह संभव नहीं है।

अतः उन्होंने सावित्री से हार मानते हुए, सत्यवान को जीवन प्रदान किया, और कहा कि एक सुहागिन स्त्री, अपनी श्रद्धा, विश्वास और भक्ति से अपने पति का जीवन भी वापिस प्राप्त करके उसे चिरायु आरोग्य बनाकर अखंड सौभाग्य प्राप्त कर सकती है।

सावित्री ने सत्यवान के साथ उस वटवृक्ष की पूजा की और उन्हें अनेकानेक आभार व्यक्त किया, कि उनकी छाया में उन्हें जीवन के सभी सुख मिल गये।

उस दिन के बाद से ही अखंड सौभाग्य के इस व्रत की परंपरा चल गई। 


अमावस्या का था दिन,

 और वटवृक्ष की छाया।

सावित्री ने आस्था से,

अखंड सौभाग्य था पाया।।


आप सभी को वटसावित्री व्रत या बरगद अमावस्या व्रत पर हार्दिक शुभकामनाएँ। 

माँ सावित्री व वटवृक्ष हम सब को अखंड सौभाग्य व सुख-समृद्धि की छाया प्रदान करें 🙏🏻