Tuesday 17 July 2018

Kids Story : पतंग

पतंग


राजू  को पतंग उड़ाने का इतना शौक था, कि उसके आगे उसे किसी बात का होश ही नहीं रहता था। अपनी गली में वो राजूपतंगी के नाम से ही मशहूर था। सुबह हुई, बाबू जी दुकान के लिए निकले नहीं कि बस वो चल दिया पतंग उड़ाने। अपनी माँ का बेहद लाडला था, माँ उसके पतंग उड़ाने के शौक में बराबर साथ देतीं। गुड्डी को बोल देती, देख ना भाई पतंग उड़ाने गया है, उसके लिए चाय नाश्ता छत पर ले जा तो जरा।

गुड्डी को भी भाई कि ऊंची उड़ती पतंग से बड़ा लगाव था। वो तुरंत भाई के लिए चाय नाश्ता ले के दौड़ जाती। और छत पर पहुँचते ही चिल्लाती, भाई भाई, वो काली वाली.... अरे वही जो उड़ती हुई हमारी पतंग के पास आ रही है।
राजू के पतंग काटते ही भाई के साथ वो भी चिल्लाती- वो काटामाँ के पास दौड़ी जाती, और बोलती माँ, भाई ना एकदम कमाल हैं, क्या पतंग उड़ाते हैं, देख के मज़ा ही आ जाता है। माँ भी अपने लाल पे वारी जाती।
इस घर में राजू का पतंग उड़ाना किसी को नापसंद था, तो वो थे बाबू जी। बाबू जी के दुकान लौटने तक राजू खूब पतंग उड़ाता, और जहाँ बाबू जी घर पे कदम रखते, पूरा घर कामकाज में जुट जाता।
बाबू जी हमेशा माँ से कहते, अरी भागवान! अपने लाडले को थोड़ा समझा-बूझा ले, दिन भर पतंग उड़ाने से काम नहीं चलेगा, थोड़ा दुकान का काम भी सीख ले, कुछ हिसाब-किताब सीख ले, आखिर मेरे भरोसे कब तक दुकान चलेगी।
माँ कहती, बच्चा है, अभी उसके खेलने-खाने के दिन हैं, जब बड़ा होगा, आपसे भी अच्छी दुकान चला के दिखाएगा।
अच्छा महारानी, अपने लाल से इतना तो बोल ही सकती हो ना, कि होश में पतंग उड़ाया करें, उन जनाब को तो पतंग दिखी नहीं कि वो दीन-दुनिया से बेखबर हो जाते हैं। उसको देखकर मेरा दिल बैठा रहता है, ना जाने कब छत से गिर पड़े।
आप शुभ शुभ बोलें, कुछ ना होगा मेरे लाल को। रोज़ बलाए लेती हूँ। तो देवी थोड़ा समझा भी दिया करो। पर ये बातें माँ बाबू जी में हो कर ही रह जाती, राजू को कोई कुछ नहीं कहता।
एक दिन राजू पतंग उड़ाने में मगन था, तभी एक पीली पतंग उड़ती हुई उसी ओर चली आई, राजू उसे काटने के लिए पीछे खिसकते खिसकते कब छत के एकदम किनारे पहुँच गया, वो देख ही नहीं पाया, और छत से नीचे गिर पड़ा। उसकी चीख से माँ दौड़ी गयी, देखा राजू खून से लथपथ था। बाबू जी को फोन कर दिया गया। तुरंत आनन-फानन में अस्पताल ले जाया गया।
पर आज राजू को अपने एक पैर से हाथ धोना पड़ा। ठीक होने के बाद, राजू बाबू जी के साथ दुकान में बैठने लगा। और अब आते जाते हर पतंग उड़ाने वाले को समझाता, होश में रह कर पतंग उड़ाना भाई, नहीं तो मेरे जैसा हाल हो जाएगा। उसकी बात सुन के बाबू जी की आँखों में आँसू आ जाते, काश मेरे बेटे को ये समझ पहले होती, तो उसकी ये अवस्था ना होती।                

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